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Chaitra Navratri 2024: दुर्गा सप्तशती के ये 8 मंत्र दूर करेंगे हर समस्या, जाप करने से पहले जान लें नियम

Chaitra Navratri 2024: वैसे तो मां दुर्गा की आराधना के लिए तमाम मंत्रों, स्तोत्रों और साधना विधि का उल्लेख मिलता है. लेकिन इनमें सर्वाधिक मान्यता प्राप्त और अचूक स्तोत्र दुर्गा सप्तशती माना जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि मार्कंडेय ऋषि ने इसकी रचना की थी.

दुर्गा सप्तशती का एक-एक श्लोक एक महामंत्र है और केवल उस मंत्र का पाठ करने से भी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है. दुर्गा सप्तशती का एक-एक श्लोक एक महामंत्र है और केवल उस मंत्र का पाठ करने से भी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 11:01 PM IST

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि के पावन दिन चल रहे हैं. यह पवित्र दिन मां दुर्गा के नवस्वरूपों को समर्पित हैं. वैसे तो मां दुर्गा की आराधना के लिए तमाम मंत्रों, स्तोत्रों और साधना विधि का उल्लेख मिलता है. लेकिन इनमें सर्वाधिक मान्यता प्राप्त और अचूक स्तोत्र दुर्गा सप्तशती माना जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि मार्कंडेय ऋषि ने इसकी रचना की थी. इसका एक-एक श्लोक एक महामंत्र है और केवल उस मंत्र का पाठ करने से भी तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है. ज्योतिषविद कहते हैं कि दुर्गा सप्तशती बिना नियमों की जानकारी के नहीं पढ़ाना चाहिए.

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दुर्गा सप्तशती के मंत्र जाप के नियम
अपनी आवश्यकता अनुसार मंत्र का चुनाव करें. नवरात्रि में मंत्र जाप की शुरुआत करें. कम से कम रोज तीन माला मंत्र जाप करें और लगातार नौ दिनों तक करें. इस दौरान सात्विक रहें. अगर उपवास रखें तो और भी उत्तम होगा. मंत्र जाप लाल चंदन या रुद्राक्ष की माला से करें.

दुर्गा सप्तशती के विशेष मंत्र

प्राप्ति एवं भय मुक्ति मंत्र
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥ 

सर्वकल्याण मंत्र
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥

सर्वकल्याण मंत्र
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्याखिलेशवरी।
एवमेय त्वया कार्यमस्माद्वैरि विनाशनम्॥

बाधा मुक्ति व धन-पुत्र प्राप्ति मंत्र 
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय॥

सौभाग्य प्राप्ति का मंत्र
देहि मे सौभाग्यमारोग्यं देहि में परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

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रोगनाशक मंत्र
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टातुकामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

भय नाश के लिए
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातुन: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोस्तु ते॥

पापों के नाश का मंत्र
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योन: सुतानिव।।

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