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आखिर मां दुर्गा ने क्यों किया था महिषासुर का वध? जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

Chaitra Navratri 2025: आज से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ हो चुका है. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है और उनके नाम के व्रत रखे जाते हैं. मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. श्री दुर्गा सप्तशती के तीसरे और चौथे अध्याय में भी मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध का जिक्र मिलता है.

आखिर मां दुर्गा ने क्यों किया था महिषासुर का वध आखिर मां दुर्गा ने क्यों किया था महिषासुर का वध
मेघा रुस्तगी
  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

देशभर में आज से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ हो चुका है. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है और उनके नाम के व्रत रखे जाते हैं. मां दुर्गा को नवदुर्गा, शक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, पार्वती, जगत जननी, जगदम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी और आदि शक्ति आदि नामों से पुकारा जाता है. साथ ही, मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. श्री दुर्गा सप्तशती के तीसरे और चौथे अध्याय में भी मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध का जिक्र मिलता है. तो आइए सत्यार्थ नायक की 'महागाथा' से जानते हैं कि आखिर कौन था महिषासुर और मां दु्र्गा को क्यों महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है.    

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जिस प्रकार प्रजापति दक्ष की पुत्री दिति ने दैत्यों को जन्म दिया था, उसी प्रकार उनकी दूसरी पुत्री दनु से दानवों का जन्म हुआ जिनका नाम था रंभ और करंभ. एक बार दो दानव भाइयों, रंभ और करंभ ने अजेय होने के लिए तपस्या करने का संकल्प लिया. रंभ, अग्नि को शांत करने के लिए आग की लपटों के बीच खड़ा हो गया जबकि करंभ ने वरुण को प्रसन्न करने के लिए जल के नीचे ध्यान लगाया. दोनों, दो आद्य तत्त्वों का आह्वान कर रहे थे. जिसके बाद इंद्रदेवता ने कायरता दिखाई. इंद्रदेवता तो डर था कि दोनों दानव भाई उसे स्वर्ग से निकाल देंगे. इसलिए, इंद्रदेवता ने दोनों पर आक्रमण कर दिया. पहले उन्होंने मगरमच्छ का रूप धारण करके जल में प्रवेश किया और करंभ की मृत्यु कर दी. फिर, वह रंभ की हत्या करने के उद्देश्य से अग्नि में प्रविष्ट हुए परंतु अग्नि ने उसी पर हमला कर दिया. अग्निदेव, रंभ की भक्ति से प्रसन्न थे और उसे मरता हुआ नहीं देख सकते थे. 

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फिर अग्निदेवता विजयी हुए. परंतु, जैसे ही इंद्र भागे, रंभ ने कुल्हाड़ी उठा ली और उसने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया. क्योंकि रंभ को करंभ की मृत्यु के समाचार ने अंदर तक तोड़ दिया था. फिर जैसे ही रंभ अपने प्राण त्यागने वाला था अग्निदेव ने उसका हाथ रोक लिया. अग्निदेव ने उसे भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का वरदान दिया. साथ ही, रंभ ने एक पुत्र भी मांगा. पुत्र भी ऐसा जो अदम्य दानव आगे चलकर ब्रह्मांड का स्वामी बना. अग्निदेव ने उसे वरदान दिया कि वह किसी भी प्रजाति की मादा से पुत्र पैदा कर सकता था. चाहे, असुर हो या देवता, पशु हो या मनुष्य. और सचमुच ऐसा ही हुआ दरअसल रंभ को एक महिषी यानी एक भैंस से प्रेम हो गया. उस महिषी ने रंभ के प्रेम के आगे समर्पण कर दिया और उन दोनों से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम था महिषासुर. 

कौन था महिषासुर

महिषासुर आधा-भैंस और आधा-दानव था और रंभ उसके पिता थे. साथ ही, महिषासुर को अग्नि ने आशीर्वाद दिया था. फिर एक दिन महिषासुर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा. वर्षों की तपस्या के बाद ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए और वे महिषासुर के चेहरे को बड़े स्नेह से देखने लगे जो रंभ से मिलता-जुलता था. फिर ब्रह्मा जी महिषासुर से कहते हैं कि, 'तुम्हारे पिता मेरे प्रपौत्र थे. और अग्निदेवता ने तुम्हें पहले ही आशीर्वाद दिए हैं कि तुम शासन करने के लिए ही पैदा हुए हो. अब और क्या चाहते हो?' इस पर महिषासुर उत्तर देते हुए कहता है कि, 'अमर होना चाहता हूं. अग्निदेव ने मुझे वरदान में ब्रह्मांड पर विजय प्रदान की है किंतु अमरता नहीं और अमरता ही परम विजय है. मेरी विजय का क्या लाभ, यदि मैं उसका स्वाद चखने के लिए जीवित ही न रह पाऊं?' जिसपर ब्रह्मदेव महिषासुर को अमरता का वरदान देने से मना कर दिया. उसके बाद महिषासुर ने ब्रह्मदेवता से यह वरदान मांगा कि, 'स्त्री के अतिरिक्त कोई मुझे न मार पाए.' फिर, ब्रह्मदेवता मुस्कुराए और उन्होंने महिषासुर को यह वरदान दे दिया. जिसके बाद, महिषासुर ने पाताल लोक, भूलोक और अंत में स्वर्ग लोक पर आधिपत्य स्थापित कर लिया. फिर, उसके खुर ब्रह्मांड के कोने-कोने में एकत्रित हो गए और लोगों पर अत्याचार करने लगे. 

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ऐसे प्रकट हुईं थी मां दुर्गा

धीरे धीरे मृत्यु की दुर्गंध पूरे ब्रह्मांड में फैलने लगी तो सारे देवता डर के एक साथ एकत्रित हो गए. उन सभी देवताओं ने ब्रह्मदेवता से प्रार्थना कर बोला कि, 'हमें एक देवी चाहिए यानी आदिशक्ति का योद्धा रूप जो महिषासुर को हरा सके.' फिर, सभी देवता घेरा बनाकर खड़े हो गए और सबने अपने मुख खोल दिए. उनमें से प्रकाश की किरणें फूटने लगीं. वह प्रकाश इतना तेज था मानो उनकी दिव्यता उस रूप में बाहर निकल रही थी. किरणें परस्पर टकरा रही थीं. वृत्त के केंद्र में उन सबका एक तंत्र में विलय हो रहा था. वह एक सुलगते हुए नक्षत्र में रूपांतरित हो रहा था. फिर उसने स्त्री का रूप लेना शुरू कर दिया. जिनका ऊंचा मस्तक, अनेक अंग, सुनहरा रंग, देवतागण उस तेज में स्वयं को ढाल रहे थे. 

उनमें से प्रत्येक से निकल रही किरणें, अनेक गर्भनालों की भांति अपना सर्वश्रेष्ठ तत्व देवी तक पहुंचा रही थीं. महादेव उनके चेहरे और भगवान विष्णु उनकी भुजाओं को आकार दे रहे थे. इंद्र देवता उनकी कमर और वरुण देवता उसकी जांघों को रूप प्रदान कर रहे थे. धर्म ने उसके कूल्हे और ब्रह्मदेवता ने उनके पैरों को आकार दिया. अंत में, वायुदेवता ने उन्हें कान दिए और अग्नि ने उनकी आंखें बनाईं. इस तरह सभी देवताओं की ऊर्जा से एक देवी का रूप प्रकट हुआ जिनका नाम मां दुर्गा रखा गया यानी रक्षक.

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उसके बाद भगवान विष्णु ने अपना चक्र और भोलेनाथ ने अपना त्रिशूल मां दुर्गा को दिया. इंद्र देवता ने उन्हें वज्र और वायु ने धनुष प्रदान किया. मां दुर्गा ने वरुण से शंख और यम से उनका दंड प्राप्त किया. उसके साथ तलवार, गदा और भाला लेकर दस भुजाओं वाली मां दुर्गा, दहाड़ते सिंह पर सवार हो गईं. मां दुर्गा और महिषासुर का युद्ध नौ दिन तक चला. महिषासुर अपना रूप बदलता रहा और देवी दुर्गा उन सबका विनाश करती रहीं. दसवें दिन, मां दुर्गा ने महिषासुर को नीचे गिरा दिया और उसके शरीर को भाले से छलनी कर दिया. रक्त से लथपथ महिषासुर मरने वाला था और मां दुर्गा, उसे देख रही थीं. अंत में मां दुर्गा ने महिषासुर का सिर तलवार से काट डाला. 

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