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सिख गुरु जिन्होंने कश्मीरी हिंदुओं के लिए अपनी कुरबानी दे दी

गुरु तेग बहादुर सिंह के सामने एक के बाद एक तीन साथियों को उनके सामने मारा गया। किसी को जिंदा आग के हवाले कर के तो किसी को जलते तेल में जिंदा डाल के. और फिर अंत में उन्हें भी सिर काट कर मार दिया गया. लेकिन उन्हें इसका भय कहाँ था. ऐसी कुर्बानियाँ व्यर्थ कहाँ जाती हैं, इतिहास ने उसके कुछ ही समय बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन भी देखा. जानिए किस्से गुरु तेग बहादुर के.

गुरु तेग बहादुर गुरु तेग बहादुर
रोहित त्रिपाठी
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  • 19 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:22 PM IST

मुग़ल शासक औरंगजेब के सिर पर कई नरसंहारों के कलंक हैं. लेकिन इसमे से एक कलंक अब तक इतिहास याद रखे हुए है. एक सिख गुरु को दिल्ली बुलाया गया. जो अपने लिए भी नहीं बल्कि कश्मीरी हिंदूओ पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ खड़े थे. औरंगजेब ने उनसे कहा कि इस्लाम अपना लें या तो कोई ऐसा चमत्कार दिखाएं जिससे उनकी शक्तियां दिख जाएं. लेकिन उन्होंने इस बादशाह की कोई बात नहीं मानी. गुरु के सामने एक के बाद एक तीन साथियों को उनके सामने मारा गया। किसी को जिंदा आग के हवाले कर के तो किसी को जलते तेल में जिंदा डाल के. और फिर अंत में उन्हें भी सिर काट कर मार दिया गया. 

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लेकिन उन्हें इसका भय कहाँ था. इतिहास की सबसे बड़ी शहादतों में से एक देने वाले इस संत का नाम था गुरु तेग बहादुर सिंह. सिखों के नौवें गुरु और छठे सिख गुरु हरगोविंद सिंह के सबसे छोटे बेटे. लेकिन ऐसी कुर्बानियाँ व्यर्थ कहाँ जाती हैं, इतिहास ने उसके कुछ ही समय बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन भी देखा. 


सिख गुरुओं का इतिहास कहीं से उठा कर देखने पर संघर्ष के बगैर नहीं दिखता. गुरु नानक से लेकर गुरु गोविंद सिंह तक सब अपने समाज, धर्म और देश दुनिया में फैली कुरीतियों से लड़ते रहे, शहादतें दी. इसी फेहरिस्त में आते हैं गुरु तेग बहादुर सिंह. कश्मीर लेकर असम तक के अन्याय के लिए खड़े रहे. शायद इसीलिए उन्हें हिन्द की चादर भी कहा गया. हालांकि इंडिया टुडे टीवी में सीनियर एडिटर हरमीत शाह सिंह मानते हैं कि ऐसा कहना उनके योगदान को एक सीमा में समेट देना है, जबकि गुरु तेग बहादुर का काम किसी एक धर्म या  देश से परे केवल मानवता के लिए था. 

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अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार एक अप्रैल 1621 को जन्मे थे गुरु तेग बहादुर. पिता थे सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह.माँ थीं नानकी. तेग बहादुर बचपन से तेग बहादुर नहीं थे. उनका पहला नाम था त्याग मल. उनके त्यागमल से तेग बहादुर बनने की कहानी और कारण भी बड़ा दिलचस्प है. इसी दौर की एक और घटना है जिसका जिक्र हकम सिंह और जसविन्दर सिंह की किताब इंडियाज गुरु मार्टीयर गुरु तेग बहादुर में मिलता है जिसका प्रभाव तेग बहादुर के जीवन पर हमेशा रहा. तब तेग बहादुर 7 साल के थे. उनके भाई अटल सिंह थे नौ साल थे. कहा जाता है उस वक्त उनके भाई ने अपने एक दोस्त जो मर गया था, जिंदा कर दिया. लोगों के लिए तो ये एक जादू था लेकिन उनके पिता हर गोविंद के लिए ये चिंता का विषय. उन्होंने अटल को बुलाया और उन्हें ‘हुकम राजाई चलना’ का कन्सेप्ट समझाया. गुरु हर गोविंद सिंह ने कहा कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही चलना चाहिए जिसे अटल सिंह ने तोड़ दिया था. इतना ही सुनने के बाद अटल सिंह ने पिता के सामने सिर झुकाया और अमृतसर के तालाब चले गए. वहाँ उन्होंने समाधि ले ली. 7 साल छोटे तेग बहादुर के लिए ये डरावना था लेकिन एक चीज वो समझ चुके थे कि ईश्वर के इच्छा के अनुसार न चलने के बाद मरना भी पड़ सकता है. अपने बचपन में ऐसी ही घटनाएं देख चुके तेग़बहादुर ताजिंदगी शांत रहे. साल 1644 में पिता और गुरु हरगोविंद सिंह के देहांत के बाद तेग बहादुर बकाला चले गए थे. वहाँ लंबे समय से शांत और गुमनाम जीने लगे थे. सीनियर जर्नलिस्ट विपिन पबबी कहते हैं कि उनके शांत स्वभाव के कारण ही वो पिता की मौत के बाद गुरु नहीं बने. न ही उन्होंने कोई दिलचस्पी दिखाई. 

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तेग बहादुर पिता की मृत्यु के करीब बीस साल से बकाला में रह रहे थे. ज्यादातर समय ध्यान और आध्यात्म में ही बिताते थे. लेकिन तभी एक वाकया हुआ जो एक बार फिर से तेग बहादुर को केंद्र में लाने जा रहा था और उसी के बाद तेग बहादुर नौवें गुरु बनने जा रहे थे. ये बात है साल 1675 की. सिखों के आठवें गुरु हरकिशन जी बीमार पड़ जाते हैं. बीमारी इतनी भयानक थी कि बचने की गुंजाइश न के बराबर थी. इसी समय औरंगजेब ने भी गुरु हरकिशन को बुलाया हुआ था पर वो जा नहीं पाते. सब इस बात से चिंतित थे कि बाबा हरकिशन ठीक क्यों नहीं रहे, चिंता ये भी थी कि हरकिशन जी के बाद गुरु शिप कौन सम्हालेगा, गुरु कौन बनेगा. हरकिशन जी ने अपने अंतिम वक्त में ये दुविधा मिटा दी. उन्होंने आदि ग्रन्थ मंगाया, और सिर झुकाया. कुछ बुदबुदाए और सिधार गए. उनके अंतिम शब्द थे. बाबा बकाले. मतलब साफ था कि बाबा हरकिशन का अगला उत्तराधिकारी बकाला में है. तेग बहादुर तो बीस साल से वहां रह रहे थे. लेकिन अब तक किसी को अंदाज़ा नहीं था.  बाबा हरकिशन की मृत्यु के बाद बहुतों ने बकाला जा कर खुद को उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश भी की. लेकिन अंततः तेग बहादुर जी मिल गए और उनके पुराने जीवन को जब लोगों ने याद किया तो फिर समझने में देर कहां लगनी थी कि सिखों के अगले गुरु यही हैं जिनका जिक्र हरकिशन जी जाते जाते कर गए थे.
गुरु बनने की होड इतनी थी कि तेग बहादुर के गुरु बनने के बाद भी कितने लोग इसे स्वीकार नहीं कर सके. इसी वजह से उन पर जान का हमला भी हुआ. लेकिन तेग बहादुर वहाँ से बच निकलते हैं. हमला करने वालों ने उनके घर लूट भी अंजाम दी थी. हालांकि जब ये हमलावर पकड़े गए तो गुरु तेग बहादुर ने सबको माफ कर दिया. यहाँ तक की लूटा हुआ सामान भी उन्हें ही दे दिया. 

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गुरु बनने के बाद तेग बहादुर कभी एक जगह नहीं रहे. ढाका से ले कर बिहार असम तक घूमते रहे और शांति के लिए काम करते रहे. यहीं उन्होंने ढाका के शासक राजा राम सिंह जो असम पर कब्जे की तयारियाँ कर रहा था, उन्होंने उसे समझौते के लिए राजी कर लिया. गुरु तेग़ बहादुर की लोकप्रियता बढ़ रही थी. किसी का कोई भी धर्म हो उनके पास सबकी समस्याओं का हल मिल रहा था. लेकिन ये सब जल्द ही दिल्ली तक पहुँच गया. लेकिन तभी उनके जीवन पर देश की सत्ता में आ रहे परिवर्तन का भी असर पड़ने जा रहा था. उसे भी समझना जरूरी है. 
1657 में शाहजहाँ बीमार हुआ. और कुछ ही दिनों के अंदर चल बसा. यहाँ से मुग़ल साम्राज्य एक ऐसे शासक की ओर बढ़ रहा था जो न सिर्फ क्रूरता की मिसाल बनने जा रही थी बल्कि मुग़ल शासन के पतन की शुरुआत भी यहीं से देखी जानी थी. शाहजहाँ के पुत्रों में भयंकर लड़ाई हुई और औरंगजेब सबको मार कर और सबसे जीत कर गद्दी पर बैठा. मुग़ल शासन अकबर, जहांगीर या शाहजहाँ के जमाने में गैर मुस्लिमों के लिए जितना आसान बना था, औरंगजेब उसे उतना ही क्रूर बना देना चाहता था. जबरन धर्मांतरण और न मानने पर हत्याएं बढ़ने लगे. ये सब उसकी मर्जी से ही हो रहा था. इसी की आंच तक पहुंची. कश्मीर में ये हत्याएं आम थीं और पीड़ितों की आवाज़ें कहीं नहीं सुनी जा रही थी. लेकिन अब ये कड़ी अमृतसर से जुडने जा रही थी, जहां तेग बहादुर थे. कश्मीरी पंडितों का एक जत्था गुरु तेग बहादुर से मिलने आया. उनका कहना था कि गुरु उनकी मदद करें. जाहिर है तब तक तेग बहादुर देश में ऐसी समस्याओं के निस्तारण के लिए जाने जाने लगे थे. कहते हैं इस बातचीत के दौरान तेग बहादुर के 9 साल के पुत्र गोविंद राय वहाँ आए. उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी से अपने पिता की परेशानी का कारण पूछा. तेग बहादुर ने उन्हें परेशानी बताते हुए हल भी बताया. उनका कहना था कि बिना किसी ज्ञानी और पुण्य आत्मा की शहादत के ये समस्या नहीं हल हो सकती. तेग बहादुर का इतना कहना था कि गोविंद राय फट से बोल पड़े. इस काम के लिए आपसे बेहतर कौन होगा? 

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गुरु तेग बहादुर मुस्कुरा रहे थे, उन्हें हल मिल गया था. कश्मीरी पंडितों को उन्होंने ये कहते हुए विदा किया कि वो मुग़लों से जा कर कहें कि उनके गुरु तेग बहादुर अगर उनकी शर्त मान लेंगे तो वो भी धर्म परिवर्तन को तयार हो जाएंगे. मुग़ल दरबार में पहुँच के कश्मीरी पंडितों ने वही बात हूबहू रख दी. और औरंगजेब ने तुरंत ही आदेश दे दिया कि गुरु तेग बहादुर को गिरफ्तार कर लिया जाए. औरंगजेब ने तेग बहादुर के सामने तीन शर्तें रखी थीं, इस्लाम कबूल कर लें, या कोई ऐसा करिश्मा दिखाएं, नहीं तो मरने को तयार रहें. गिरफ़्तारी के दौरान भी उनके पास लगातार औरंगजेब दूत भेजता रहा कि वो उसकी बात मान लें. लेकिन तेग बहादुर अडिग थे. उनके सामने एक एक कर के उनके तीन साथियों को मार दिया गया. इतिहास की सबसे वीभत्स मौतें दी गईं. गुरु तेग बहादुर प्रार्थना करते रहे. आज दिल्ली का चाँदनी चौक तेग बहादुर के बलिदान स्थल के तौर पे जाना जाता है जो उस वक्त इस वीभत्सता का गवाह बना था. उनके तीन साथियों की हत्या के बाद गुरु तेग बहादुर को भी मौत की सजा सुनाई गई. उस दिन भी रोज की तरह उन्होंने कुएं से पानी निकाला. बेड़ियों से जकडे हुए शरीर को नहलाया. और शहादत के लिए ऐसे तयार थे जैसे वो हमेशा से इसी दिन का इंतेजार कर रहे थे. ये दिन 11 नवंबर था, साल 1675. हजारों की भीड़ दिल्ली के चाँदनी चौक पर तमाशबीन थी. एक सिख गुरु हिन्दूओ के लिए लड़ते लड़ते शहीद होने जा रहा था. जल्लाद था जलालूद्दीन जिसने गुरु तेग बहादुर पर वार किया. उनका सिर धड़ से अलग हो गया. सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर को इस तरह से मार ड़ाला गया. कहते हैं कि उनके सिर को तो किसी तरह आनंदपुर साहिब लाने में कामयाबी मिली थी, जहां उसका अंतिम संस्कार हुआ.  लेकिन उनका धड़ वापस नहीं आ सका. एक व्यापारी ने चुपके से उनके धड़ को अपने घर में लकड़ियों पर  रख कर अपने पूरे घर में आग लगा दी ताकि गुरु का अंतिम संस्कार सम्मान से हो सके. आज वहाँ गुरुद्वारा रकबगंज साहिब है. जहां गुरु तेग बहादुर की शहादत हुई वहाँ भी बाद में गुरुद्वारा बनाया गया है. शीशगंज गुरुद्वारे में आज भी वो जगह देखि जा सकती है जहां तेग बहादुर की शहादत हुई थी. उनकी इस शहादत का असर बहुत बड़ा था. सिखों और अन्य धर्म के लोगों के लिए भी ये शहादत झटका थी लेकिन यही अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा भी बनी. देश के इतिहास में बड़ी कुर्बानियों में से एक रही है गुरु तेग बहादुर की कुर्बानी. ये प्रेरणा भी है कि अपने मान सम्मान और अन्याय के विरुद्ध की लड़ाई में कुछ भी हो जाए लेकिन पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं रखना. गुरु तेग बहादुर आज भी सबकी स्मृतियों में है और धर्मों और देशों की सीमाओं से परे सबके लिए आस्था और सम्मान का विषय. 

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