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Vat Savitri Vrat 2024: आखिर क्यों यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान के लौटाए थे प्राण, पढ़ें ये पौराणिक कथा

Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा. इसके साथ ही वट सावित्री व्रत सत्यवान-सावित्री की कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपनी चतुराई से यमराज को मात देकर सत्यवान के प्राण बचाए थे.

वट सावित्री व्रत कथा वट सावित्री व्रत कथा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2024,
  • अपडेटेड 5:18 PM IST

Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री का व्रत हिंदू परंपरा में स्त्रियां पति की लंबी आयु, सुखद वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं. ये व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए बड़ा व्रत माना जाता है. इस व्रत को ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है. महिलाएं इस दिन संकल्प के साथ पति की आयु, प्राण रक्षा के लिए व्रत और संकल्प लेती हैं. वट सावित्री व्रत को करने से सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान मिलता है. इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून, बृहस्पतिवार को रखा जाएगा. वट सावित्री व्रत के साथ सत्यवान-सावित्री की कथा जुड़ी हुई है. कहते हैं कि सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से यमराज से सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. 

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वट सावित्री व्रत की कथा (Vat Savitri Vrat Katha)

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा राज्य करते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया. जिसके कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई. उसका नाम उन्होंने सावित्री रखा. विवाह योग्य होने पर सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में वरण किया. यह बात जब नारद जी को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति से बोले कि सत्यवान अल्पायु हैं. एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी. नारद जी की बात सुनकर उन्होंने पुत्री को समझाया, पर सावित्री सत्यवान को ही पति रूप में पाने के लिए अडिग रही.

सावित्री के दृढ़ रहने पर आखिर राजा अश्वपति ने सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया. सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही. नारद जी ने मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई. वन में सत्यवान ज्योंहि पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी. वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया. थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं. यमराज सत्यवान के अंगुप्रमाण जीव को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. 

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सावित्री को आते देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिपरायणे! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया. अब तुम लौट जाओ.’ सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए. यही सनातन सत्य है.’ 

यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा. सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें.’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, किंतु सावित्री उसी प्रकार यम के पीछे चलती रही. यमराज ने उससे पुन: वर मांगने को कहा. सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए.’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अडिग रही. सावित्री की पति भक्ति व निष्ठा देखकर यमराज पिघल गए. उन्होंने एक और वर मांगने के लिए कहा. तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनना चाहती हूं. कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें.’

सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए. सावित्री अब उसी वट वृक्ष के पास आई. वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हुआ और वह उठकर बैठ गया. सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और खोया हुआ राज्य वापस मिल गया.

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