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Chhath Puja 2018: जानें कब है छठ और क्या है पूजा विधि

छठ पर्व (Chhath Puja 2018) कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से प्रारंभ होता है और सप्तमी तिथि को इस पर्व का समापन होता है. आइए जानें छठ पर किसी विधि से पूजा करनी चाहिए....

छठ पूजा 2018 (Chhath Puja 2018) छठ पूजा 2018 (Chhath Puja 2018)
प्रज्ञा बाजपेयी
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 9:02 AM IST

कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है, शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को छठ पूजा  (Chhath Puja 2018) का विशेष विधान है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से हुई है, जो अब देश-विदेश तक फ़ैल चुकी है. अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के उपासक थे. अतः परम्परा के रूप में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव इन इलाकों पर दिखता है.

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कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशी में होता है अतः सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है, ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान न करें. षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है. अतः सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती हैं. इस माह में सूर्य उपासना से वैज्ञानिक रूप से हम अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य का बेहतर स्तर बनाए रख सकते हैं. इस बार छठ पूजा 13 नवंबर को की जाएगी.

छठ की पूजा विधि क्या है?

- कुल मिलाकर यह पर्व चार दिनों तक चलता है.

- इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है.

- कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को "नहा-खा" के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है. इस दिन से स्वच्छता की स्थिति अच्छी रखी जाती है. इस दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है.

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- दूसरे दिन को "लोहंडा-खरना" कहा जाता है. इस दिन उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन किया जाता है. खीर गन्ने के रस की बनी होती है. इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता.

- तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. साथ में विशेष प्रकार का पकवान "ठेकुवा" और मौसमी फल चढाएं. अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है.

- चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है.

- इस बार पहला अर्घ्य 13 नवंबर को संध्या काल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 14 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा.

छठ पूजा या व्रत के लाभ क्या हैं?

- जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान होकर बार-बार समाप्त हो जाती हो ऐसे लोगों को इस व्रत से अद्भुत लाभ होता है.

- अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो ये व्रत लाभदायक होता है.

- अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ होता है.

- जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति ख़राब हो या राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को जरूर रखना चाहिए.

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व्रत की सावधानियां क्या हैं?

- ये व्रत अत्यंत सफाई और सात्विकता का है.

- इसमें कठोर रूप से सफाई का ख्याल रखना चाहिए.

- घर में अगर एक भी व्यक्ति छठ का उपवास रखता है तो बाकी सभी को भी सात्विकता और स्वच्छता का पालन करना पड़ेगा.

- व्रत रखने के पूर्व अपने स्वास्थ्य की स्थितियों को जरूर देख लें.

अगर आप उपवास नहीं रख पाते तो किस प्रकार इस व्रत का लाभ उठाएं?

- व्रत रखने वाले व्यक्ति को भोजन बनाने में सामान जुटाने में सहायता करें.

- स्वयं भी चार दिनों तक सात्विक रहें.

- अर्घ्य के समय भगवान सूर्य को जरूर अर्घ्य दें.

- अंतिम दिन प्रातः व्रती के चरण स्पर्श करके उसका आशीर्वाद लें और प्रसाद ग्रहण करें

- अंतिम दो दिनों में अर्घ्य के समय "ॐ आदित्याय नमः" का 108 बार जाप करें.

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