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जातिरहित, वर्गरहित समाज का सपना देखने वाले थे संत बसवेश्वर. उन्हें क्रांतिकारी संत भी कहा जाता था. संत बसवेश्वर ने 12वीं सदी में समाज के शोषित वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए कई काम किए.
अनुभव मंडप की स्थापना
इन्हीं कामों में से एक है 'अनुभव मंडप'. इसे विश्व की पहली संसदीय प्रणाली भी कहा जाता है. उन्होंने ना केवल समाज के शोषित वर्गों बल्कि महिलाओं के उत्थान के लिए भी काम किया था.
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राज्य से बाहर नहीं पहुंचे विचार
विशेषज्ञों का मानना है कि संत बसवेश्वर ने जो लिखा यानी उनके साहित्य का कई भाषाओं में अनुवाद नहीं हुआ. यही कारण है कि उनकी विचारधारा को देश के दूसरे कोनों तक नहीं पहुंचाया जा सका.
कौन थे संत बसवेश्वर
12वीं सदी के दार्शनिक और समाज सुधारक कहे जा सके हैं. ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म सन 1131 में कर्नाटक के बीजापुर जिले के बसवन बागेवाडी में हुआ था. उनके पिता का नाम मादरस और माता का नाम मादलांबिके था.
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ऐसा कहा जाता है कि वे बचपन से ही अत्यंत प्रतिभावान और सुसंस्कृत थे. आगे वे कल्याण-नगरी के राजा बिज्जल के प्रधानमंत्री और महादंडनायक बने. फिर सामाजिक एवं धार्मिक असमानता के कारण भौतिक संसार से उनका मन उठ गया. उन्होंने सामाजिक एवं धार्मिक सुधार का बीड़ा उठाया.