
अठारहवीं शताब्दी तक कुंभ मेले का प्रबंधन अखाड़े ही संभाला करते थे. शाही स्नान, धार्मिक अनुष्ठान, कल्पवास, भजन-कीर्तन जैसी व्यवस्थाएं भी अखाड़ों के हाथों में थीं. पुलिस-प्रशासन से लेकर टैक्स कलेक्शन तक सब अखाड़े ही किया करते थे.
ये आजादी के पहले का दौर था, जब गुलामी की जंजीरों ने भारत को जकड़ रखा था. देश में ब्रिटिश राज चलता था. आज के जमाने जितनी सुख-सुविधाएं तो नहीं थीं, लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं का ऐसा जमावड़ा लगता था कि भारत में राज कर रही ब्रिटिश हुकूमत के अफसर दंग रह जाते थे.
लड़ाई में तब्दील हो जाता था टकराव
अठारहवीं शताब्दी के समय मेले में स्नान के लिए पहुंचने वाले अलग-अलग संप्रदाय के लोगों के बीच टकराव भी देखने को मिल जाता था. कई बार तो ये टकराव लड़ाई में भी तब्दील हो जाता. भारत के इतिहास पर फारसी लेखक चतर मान कायथ की लिखी किताब चाहर गुलशन में भी कुंभ का जिक्र मिलता है.
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कुंभ में पहले स्नान को लेकर झगड़ा
लेखक चतर मान ने किताब 18वीं शताब्दी में लिखी है. लेखक चतर मान लिखते हैं,'हरिद्वार में 1760 में लगे कुंभ मेले में नागा साधुओं और वैरागी संन्यासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. इस लड़ाई में नागा साधु (शैव) और वैरागी संन्यासी (वैष्णव) के बीच लड़ाई हुई थी. इस झड़प में सैकड़ों वैरागी संन्यासियों की मौत हो गई थी. ये झगड़ा इस बात को लेकर हुआ था कि कुंभ में कौन पहले स्नान करेगा.' ऐसी घटनाओं के बाद ही कुंभ में अलग-अलग शिविरों का निर्माण किया जाने लगा.
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उदासी संन्यासियों से भी हुई थी झड़प
कुंभ से जुड़ी ऐसी ही एक घटना का जिक्र और चतर मान की किताब में है. वह लिखते हैं,'हरिद्वार में 1796 के कुंभ मेले में नागा साधुओं ने उदासी संन्यासियों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया. उदासियों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने नागाओं की अनुमति के बिना अपना शिविर बनाया था. इसके जवाब में उदासी संन्यासियों के साथ खालसा सिखों ने नागा साधुओं पर हमला कर दिया, जिसमें कई नागा साधुओं की मौत हो गई. इस बीच कुंभ मेले में बढ़ती हिंसक झड़पों से नाराज होकर अंग्रेजों ने प्रशासनिक भूमिका में अखाड़ों का रोल कम कर दिया.'
क्यों होता है कुंभ का आयोजन?
कुंभ आयोजन का आधार एक पौराणिक कथा है. इसके मुताबिक, सागर से अमृत खोजने के लिए मंथन हुआ. इस मंथन से मिले अमृत की बूंदें जिन चार जगहों पर नदियों में गिरीं, वहां कुंभ आयोजन होते हैं. इस कथा का पूरा वर्णन विष्णु पुराण, कूर्म पुराण, स्कंद पुराण, भागवत पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है.