
हिंदू धर्म में शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी, राम-सीता, राधा-कृष्ण की कई प्रेम कथाएं कही गई हैं. पर एक कथा ऐसी है, जिसे आपने शायद ही सुना हो. यह कहानी है भगवान गणेश और तुलसी की. विघ्नों के नाशक माने जाने वाले गणेश जी ने कभी तुलसी के प्रेम को अस्वीकार कर दिया था और नाराज होकर उसे श्राप भी दिया था.
कथा कुछ यूं है. एक दिन तुलसी नदी किनारे घूम रही थीं. वहां उन्होंने एक व्यक्ति को तपस्या में लीन देखा. वह भगवान गणेश थे. तपस्या के कारण एक तेजस्वी ओज उनके मुख पर था, जिससे तुलसी उनकी ओर आकर्षित हो गईं.
तुलसी ने दिया था विवाह प्रस्ताव
वे उनके पास गईं और उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. पर गणेश जी ने बड़ी शालीनता से उनके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे उस कन्या से विवाह करेंगे, जिसके गुण उनकी मां पार्वती जैसे हों. यह सुनते ही तुलसी को क्रोध आ गया. उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और गणेश जी को श्राप दिया कि उनका विवाह उनकी इच्छा के विपरीत होगा. उन्हें कभी मां पार्वती के समतुल्य जीवनसंगिनी नहीं मिलेगी.
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गणेश जी का था यह श्राप
यह सुनते ही गणेश जी को भी क्रोध आ गया. उन्होंने भी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर के साथ होगा. इसके बाद तुलसी को अपनी गलती का आभास हुआ. उन्होंने गणेश जी से माफी मांगी. गणेश जी ने उन्हें माफ करते हुआ कहा कि वे एक पूजनीय पौधा बनेंगी. पर उनकी पूजा में तुलसी का कभी प्रयोग नहीं किया जाएगा. बाद में तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक असुर से हुआ, जिसे जालंधर के नाम से भी जाना जाता है.
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