
भगवान शिव और मां पार्वती की शादी के बारे में कई पुराणों में कहा गया है. ये उस समय का सबसे भव्य विवाह था. इनके ब्याह को लेकर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है, हम आपको वही बताते हैं...
यहां हुआ था शिव-गौरी का विवाह...
देवता, दानव, मानव सब पहुंचे थे शादी में
कहा जाता है कि इस विवाह में देवताओं के अलावा असुर और मानव, भूत-प्रेत, गण आदि सभी मौजूद थे. इस शादी में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग शामिल हुए थे. शिव को पशुपति कहा जाता है इसलिए सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में शामिल होने पहुंचे थे. यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त भी मेहमान बने.
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एक राजकुमारी की भव्य शादी
चूंकि पार्वती राजा की पुत्री थीं, इसलिए ये एक भव्य शादी थी. उस समय इस शादी के लिए ऐसे इंतजाम किए गए थे जो पहले कभी नहीं हुए थे.
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कुलों के बखान पर चुप हो गए भगवान शिव
उस समय ये रिवाज था कि शादी के समय वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जाती थी. पार्वती की वंशावली का बखान किया गया. फिर बारी थी शिव की. समस्या ये थी कि शिव के माता-पिता, रिश्तेदार या परिवार का कोई अता-पता था नहीं. जब पार्वती के पिता ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे अपने कुल के बारे में कुछ बताएं, तो शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे. काफी देर तक अनुनय-विनय करने के बाद भी वे नहीं बोले.
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नारद मुनि ने किया बीच-बचाव
उस समय वहां नारद मुनि मौजूद थे. उन्होंने काह, शिव के माता-पिता नहीं हैं, इनका कोई गोत्र नहीं है, इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है. क्योंकि यह स्वयंभू हैं.