
हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों में अक्सर उन्हें उनकी सवारी के साथ दर्शाया जाता है. भगवान के हर स्वरूप और उनकी सवारी का अपना महत्व और जुड़ाव है जिसके पीछे शास्त्रों में कई कथाओं का भी वर्णन किया गया है. कुछ ही दिनों में चैत्र नवरात्रि का आरंभ होने वाला है और इन दिनों मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है.
मां दुर्गा तेज, शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक हैं और उनकी सवारी शेर है. शेर प्रतीक है आक्रामकता और शौर्य का. यह तीनों विशेषताएं मां दुर्गा के आचरण में भी देखने को मिलती है. यह भी रोचक है कि शेर की दहाड़ को मां दुर्गा की ध्वनि ही माना जाता है जिसके आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं. क्या आप जानते हैं कि क्यों शेर मां दुर्गा का वाहन है और क्या है इसके पीछे की कथा?
अगर आप नहीं जातने हैं तो आइए हम आपको बताते हैं मां दुर्गा की सवारी शेर से जुड़ी कथा...
पहली कथा के अनुसार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत में मां पार्वती और शिवजी साथ बैठे हुए थे और एक दूसरे से मजाक कर रहे थे. मजाक में ही शिवजी ने मां पार्वती को काली कह दिया. मां पार्वती को बहुत बुरा लगा और वह कैलाश पर्वत छोड़ कर वन में चली गई और वह घोर तपस्या में लीन हो गईं. इस बीच एक भूखा शेर मां पार्वती को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा, लेकिन वह वहीं चुपचाप बैठ गया.
माता के प्रभाव के चलते वह शेर भी तपस्या कर रही मां के साथ वहीं सालों चुपचाप बैठा रहा. मां ने जिद कर ली थी कि जब तक वह गोरी नहीं हो जाएंगी तब तक वह यहीं तपस्या करेंगी. तब शिवजी वहां प्रकट हुए और देवी को गोरा होने का वरदान देकर चले गए.
फिर माता ने नदी में स्नान किया और बाद में देखा की एक शेर वहां चुपचाप बैठा माता को ध्यान से देख रहा है. देवी पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया. तब से मां पार्वती का वाहन शेर हो गया.
दूसरी कथा के अनुसार
इसी संबंध में दूसरी कथा है, जो स्कंद पुराण में उलेखित है. इसके अनुसार शिव के पुत्र कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन को पराजित किया. सिंहमुखम ने अपनी पराजय पर कार्तिकेय से माफी मांगी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का आशीर्वाद दिया.