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Vinayak Chaturthi 2025: विनायक चतुर्थी पर आज पढ़ें ये कथा, भगवान गणेश की मिलेगी कृपा

Vinayak Chaturthi 2025: हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश की पूजा किसी भी शुभ कार्य से पहले किये जाने की मान्यता है. भगवान गणेश का एक नाम विघ्नहर्ता भी है. हर वर्ष के प्रत्येक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है.

Lord Ganesha Lord Ganesha
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 8:00 AM IST

Vinayak Chaturthi 2025: हिंदू देवी देवताओं में गणेश भगवान को प्रथम देवता का दर्जा दिया गया है. साल के प्रत्येक महीने में गणेश भगवान की पूजा अर्चना के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी इंसान भगवान गणेश का पूरे विधि-विधान से पूजा करता है उसके जीवन में आने वाली सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है. अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को ही विनायक चतुर्थी कहा जाता है. वहीं, विनायक चतुर्थी पर कथा पढ़ना भी शुभ माना जाता है. 

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विनायक चतुर्थी व्रत कथा

एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे. उस समय दोनों चौपड़ खेल रहे थे. हालांकि तब उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा? तब भगवान शिव ने कुछ दाने और फूल-पत्ती को इकट्ठा किया, उनसे एक पुतला बनाया, उसकी प्राण प्रतिष्ठा की और पुतले से कहा, बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, और हमारी हार-जीत का फैसला तुम करोगे. इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेलना शुरू कर देते हैं. यह खेल तीन बार खेला गया और तीनों बार माता पार्वती ही जीती थी. हालांकि जब खेल समाप्ति के बाद बालक से हार-जीत का फैसला लेने को कहा गया तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया. 

यह सुनकर माता पार्वती को बेहद क्रोध हुआ और उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. तब बालक ने माता से माफी मांगी और कहा कि, मुझसे ऐसी भूल हो गई है कृपया मुझे ऐसा श्राप ना दें. बालक को क्षमा मांगता देख माता का दिल पसीज गया और उन्होंने बालक से कहा, ‘यहां कुछ समय में गणेश पूजन के लिए कुछ नागकन्या आएंगी. उनके कहे अनुसार तुम भी गणेश का व्रत करना. ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त कर लोगे.’ ऐसा कहकर भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर चले गए. 

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एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्या गणेश भगवान का व्रत करने आईं. तब बालक ने उनसे व्रत की विधि पूछ कर 21 दिनों तक लगातार व्रत किया. बालक की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश वहां प्रकट हुए और उन्होंने बालक से मनोवांछित फल मांगने को कहा. तब बालक ने भगवान से कहा, ‘हे प्रभु मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने माता-पिता के पास जा सकूं.’ तब भगवान तथास्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए.

बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंचा जहाँ उसने सारी बात भगवान शिव को बताई. भगवान शंकर ने माता पार्वती को ये बात बताई जिसे सुनकर माता पार्वती के मन में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई. इसके बाद माता पार्वती ने भी 21 दिन तक भगवान गणेश का व्रत किया और 21 दिनों में व्रत के प्रभाव से स्वयं भगवान कार्तिकेय माता पार्वती से मिलने आ गए. तभी से गणेश चतुर्थी का यह व्रत इंसान की समस्त मनोकामना की पूर्ति करने वाला व्रत माना गया.

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