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साइंस न्यूज़

क्या होता अगर इंसान धरती पर न होते, कैसी दिखती पृथ्वी?

aajtak.in
  • लंदन,
  • 10 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:54 AM IST
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धरती पर 87 लाख प्रजातियों के जीव-जंतु रहते हैं. इनमें इंसान भी शामिल है. धरती पर मौजूद सभी जीवों से चालाक और बुद्धिमान. शहर बनाने वाला. विकास करने वाला. प्रदूषण फैलाने वाला. सही वातावरण को खराब करने वाला. लेकिन क्या होता अगर इंसान इस धरती पर नहीं होता? क्या ये शहर दिखते. सड़क, यातायात और खेती-बाड़ी दिखती. क्योंकि ये सारी चीजें तो इंसानों ने आपस में जोड़ दी है. सोचिए...अगर इंसान धरती पर न होता तो कैसा नजारा होता. चलिए आपको कुछ तस्वीरों और कंटेंट से समझाने की कोशिश करते हैं. (फोटोः गेटी)

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वैज्ञानिकों ने एक तस्वीर बनाने की कोशिश की है, जिसमें इंसान को शामिल नहीं किया है. यह तस्वीर कोई आम फोटो नहीं है, बल्कि इवोल्यूशन की एक कहानी बताती है. जिसमें कई ऐसे जीव मिलेंगे जिनसे आप वाकिफ हो सकते हैं. या फिर आपने उन्हें कभी देखा नहीं होगा. ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और पैलियोटोंलॉजिस्ट ट्रेवर वर्दी कहते हैं कि अगर इंसान धरती पर न होते तो यह धरती ज्यादा उवर्रक होती. ज्यादा जानवरों से भरी होती. ये जानवर बेहद बड़े आकार के हो सकते थे. जैसे डायनासोर या शार्क आदि. (फोटोः गेटी)

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अगर हम यह सोचते हैं कि आधुनिक इंसान यानी होमो सैपिंयस धरती पर न होते तो क्या होता. इस सवाल के जवाब में ट्रेवर वर्दी कहते हैं कि अगर हम होमो सैपियंस न होते तो धरती पर निएंडरथल मानव का राज होता. इंसानों के वो पूर्वज आज भी धरती पर घूम रहे होते. लेकिन धरती की तस्वीर तब बदली हुई दिखाई पड़ती. क्योंकि इंसानों ने धरती की वर्तमान तस्वीर को बनाने के लिए कई प्रजातियों के जीव-जंतुओं को खत्म कर दिया. इसमें डोडो (Raphus Cucullatus) से लेकर तस्मानियन टाइगर (Thylacinus cynocephalus) शामिल हैं. इन्हें इंसान पूरी तरह से खत्म करने के कगार पर पहुंचा चुका है. वजह शिकार और इनके घरों की तबाही है. (फोटोः गेटी)

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ज्यादातर पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इंसान धरती पर न होते तो अन्य जीव-जंतुओं की प्रजातियों के खत्म होने की दर 100 फीसदी कम होती. क्योंकि ये इस समय क्रिटेशियस-पैलियोजीन (K-Pg) समय से बहुत ज्यादा है. उस समय ले लेकर अब तक धरती के 80 फीसदी जीव-जंतु खत्म हो चुके हैं. कुछ तो ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके बारे में हमने कुछ सुना ही नहीं है. जैसे- 6.6 करोड़ साल पहले न उड़ने वाले डायनासोर. यानी इंसान ने धरती को एस्टेरॉयड की तरह तबाह किया है. धरती पर जब से आधुनिक इंसान आया है, तबाही के अलावा कोई और काम हुआ ही नहीं है. ये तबाही प्रकृति और पर्यावरण से संबंधित है. (फोटोः गेटी)

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ट्रेवर वर्दी कहते हैं कि मेरे परदादा हजारों तोतों और पक्षियों के समूह को एकसाथ देखते थे. वो भी प्रकृति की गोद में. दादा ने सैकड़ों का समूह देखा. पिता ने कुछ पक्षियों का समूह देखा होगा. मुझे एकाध जंगल में घूमते वक्त दिख जाते हैं. अगर इंसान नहीं होते तो धरती पर जंगली जीवों का जमावड़ा ज्यादा होता. जैसे जायंट्स (Giants) और मोआस (Moas) आदि. करीब दस लाख साल पहले न्यूजीलैंड में 11.8 फीट के ऑस्ट्रिच जैसे पक्षी होते थे. लेकिन 750 साल पहले मोआ के सारी 9 प्रजातियां खत्म हो गई. ऐसा आधुनिक इंसानों के विकास के 200 साल बाद की बात है. (फोटोः गेटी)

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ट्रेवर ने बताया कि मोआ के अलावा 25 अन्य कशेरूकीय प्रजातियां खत्म हो गई. जिसमें जायंट हास्ट ईगल (Giant Haast's Eagles) थे. क्योंकि ये मोआ का शिकार करते थे. मोआ बचे नहीं तो हास्ट ईगल भी खाने की कमी की वजह से मारे गए. मोआस और हास्ट ईगल की प्रजातियों के खत्म होने की वजह सीधे तौर पर इंसान है. क्योंकि बेइंतहा शिकार और नए हैबिटाट में घुसपैठ करने वाली प्रजातियों की वजह से इन जीवों का खात्मा हो गया. अगर इनके रहने के स्थान को खतरे में डाला जाएगा तो ये कहीं और जाएंगे. वहां पर मौजूद बड़े जीवों से इनका संघर्ष होगा. अब इनमें से कोई एक ही प्रजाति बच पाएगी. यानी इंसान शिकार न भी करे तो नुकसान करने की क्षमता रखता है. (फोटोः गेटी)

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स्वीडन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग में जुलॉजी के सीनियर लेक्चरर सोरेन फॉर्बी ने कहा कि इंसानों के आने के बाद कई बड़े स्तनधारी जीव खत्म हो गए. ये स्तनधारी जीव हजारों सालों से धरती पर मौजूद थे. सोरेन फॉर्बी ने साल 2015 में एक स्टडी की थी जो जर्नल डायवर्सिटी एंड डिस्ट्रीब्यूशन में प्रकाशित हुई थी. इसमें उन्होंने धरती को बिना इंसान के इमैजिन किया था. तब इन लोगों ने अफ्रीका के इकोसिस्टम सेरेनगेटी (Serengeti) की परिकल्पना की थी, जिसमें सभी जीव-जंतु एकसाथ रहते हैं. (फोटोः गेटी)

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सेरेनगेटी (Serengeti) में विलुप्त जीवों के साथ बालों वाले हाथी, गैंडे और शेर सब एकसाथ यूरोप में रहने की कल्पना की गई है. जैसे अफ्रीकन शेर (African Lions) की जगह गुफाओं में रहने वाले शेर (Cave Lions). गुफाओं में रहने वाले शेर यूरोप में 12 हजार साल पहले रहते थे. अमेरिका में हाथी और भालू के रिश्तेदार रहते थे. इनके अलावा कुछ अजीबो-गरीब जीव भी थे. जैसे कार के आकार के आर्माडिलो (Armadillo). ये ग्लिप्टोडॉन (Glyptodon) या जायंट ग्राउंड स्लोथ (Giant Ground Sloths) के रिश्तेदार थे. (फोटोः गेटी)

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सोरेन फॉर्बी ने कहा कि अगर इंसान धरती पर न होते तो बड़े स्तनधारी जीवों की कई प्रजातियां धरती पर राज कर रही होतीं. जैसे बालों वाले हाथी. ज्यादा बड़े गैंडे. इंसानों की भूख ने खेत बनाए. खेतों की वजह से जंगल काटे. जंगल कटे तो जीव मारे गए. नतीजा कई स्तनधारी और जंगली जीव मारे गए. जंगलों के कटने की वजह से कई जीव-जंतु इधर-उधर भागे. अगर ये बड़े स्तनधारी जीव जिंदा होते तो ये पेड़ों के ऊपर के पत्तों और डालियों को खत्म कर देते. क्योंकि ये आसानी से वहां तक पहुंच जाते. जैसे- बड़े हाथी. बड़े आकार के हाथियों को मेगाफॉना (Megafauna) कहते हैं. (फोटोः गेटी)

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मेगाफॉना वाले हाथी प्लीस्टोसीन यानी 26 लाख साल से लेकर 11,700 साल के बीच हिमयुग के समय धरती पर मौजूद थे. उस समय बड़े जीवों का धरती पर बोलबाला था. लेकिन हिमयुग खत्म होते-होते इन जीवों का अंत होता चला गया. जो बचे वो आकार में छोटे होते चले गए. उत्तरी अमेरिका में हिमयुग के खत्म होते-होते 38 प्रकार के बड़े जीवों की प्रजातियों का अंत हो गया था. पिछली एक सदी में क्लाइमेट चेंज और इंसानी गतिविधियों की वजह से शिकार बहुत हुआ. जिसकी वजह से बड़े जीव-जंतुओं की प्रजातियों का अंत होता चला गया. इनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है. (फोटोः गेटी)

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इस साल जर्नल Nature में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार क्लाइमेट चेंज की वजह से वूली मैमथ (Mammuthus primigenius) और इसके अलावा आर्कटिक में रहने वाले बड़े जीवों का अंत हो गया. जो हिम्मत करके प्लीस्टोसीन काल में जीवित रहे वो आगे चलकर मारे गए. मौसम को बर्दाश्त ही नहीं कर पाए. इंसानों ने मैमथ का शिकार किया. शिकार उसके दांतों, फर, खाल और अंगों को खाने के लिए किया जाता था. (फोटोः गेटी)

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नॉर्दन एरिजोना यूनिवर्सिटी के इकोसिस्टम इकोलॉजिस्ट के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टोफर डॉटी ने कहा कि बड़े जीव-जंतु अपने खाने और मल के जरिए फसलों और पेड़-पौधों के बीजों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते थे. इसके अलावा इन जीवों के साथ फॉस्फोरस, कैल्सियम और मैग्नेशियम आदि का भी परिवहन होता था. अब बड़े जीव उतने बचे नहीं तो इन चीजों का एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर रुक गया है. (फोटोः गेटी)

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क्रिस्टोफर ने कहा कि इंसान नहीं होता तो धरती पर मिनरल्स, पोषक तत्वों और बीजों का स्थानांतरण ज्यादा बेहतर होता. इसका मतलब ये कि जमीन ज्यादा उपजाऊ होती. इससे जो इकोसिस्टम बनता वो ज्यादा प्रोडक्टिव होता. इंसानों ने जरूरी चीजों को सीमित करने के लिए अलग-अलग तरीके निकाले. कृषि करने लगा. अपने घर और इलाके को घेरने लगा. जिससे जानवरों का आवागमन बाधित हुआ. इस वजह से जमीन की उवर्रकता कम होती चली गई. (फोटोः गेटी)

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इसके अलावा ग्लोबल वॉर्मिंग ने काफी तबाही मचाई है. 20वीं सदी से लेकर अब तक इंसानी गतिविधियों की वजह से वैश्विक गर्मी में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है. यानी धरती का औसत तापमान इतना बढ़ गया है. जबकि, इंसान न होता तो ये धरती ज्यादा ठंडी होती. ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्या ही न होती. साल 2016 में Nature जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इंसानी गतिविधियों से बढ़ी गर्मी की वजह से अगला हिमयुग 1 लाख साल आगे टल गया है. इससे पहले करीब 50 हजार साल में आने की उम्मीद थी. लेकिन अब यह आगे खिसक चुका है. यानी धरती और गर्म होती जाएगी. (फोटोः गेटी)

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वैज्ञानिक अभी तक यह पता नहीं कर पाए हैं कि निएंडरथल मानव (Neanderthal) कैसे 40 हजार साल पहले खत्म हुए. जबकि, इनका डीएनए और आधुनिक इंसान यानी होमो सैपियंस के डीएनए आपस में मिला हुआ है. यानी निएंडरथल का कुछ अंश आज भी हम इंसानों के शरीर में है. वैसे तो वैज्ञानिकों का मानना है कि निएंडरथल मानवों के खत्म होने की कई वजह हो सकती है. लेकिन इसका प्रमुख कारण होमो सैपियंस हैं. यानी आज के इंसान. कैसे- आगे पढ़िए. (फोटोः गेटी)

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लंदन स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में प्रोफेसर और रिसर्चर क्रिस स्ट्रिंगर ने कहा कि निएंडरथल और होमो सैपियंस जब एक साथ धरती पर थे, तब सबसे बड़ी जंग थी स्रोतों की. यानी रिसोर्स की. क्रिस कहते हैं कि अगर वर्तमान इंसान 45 से 50 हजार साल पहले यूरोप की धरती पर विकसित नहीं हुए होते तो शायद निएंडरथल मानव आज भी जीवित होते. लेकिन ये इंसानों की एक प्रजाति ने दूसरी प्रजाति को खाने और सर्वाइव करने के लिए संघर्ष करके खत्म कर दिया. स्रोतों को इतना सीमित कर दिया कि निएंडरथल खत्म हो गए. (फोटोः गेटी)

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क्रिस स्ट्रिंगर के मुताबिक यूरोप में निएंडरथल संघर्ष कर रहे थे. उन्हें जीने में आसानी हो नहीं रही थी. खाने की दिक्कत हो रही थी. क्लाइमेट चेंज से समस्या बढ़ रही थी. जेनेटिक विविधता थी नहीं. अपनी ही प्रजाति में ब्रीडिंग और खराब सेहत की वजह से निएंडरथल मानव खत्म होते चले गए. स्थिति अब ये हो रही है कि आधुनिक इंसान भी इसी श्रेणी में जा रहा है. कुछ हजार सालों बाद आधुनिक इंसानों की पौध भी ऐसे ही खत्म हो जाएगी. (फोटोः गेटी)

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क्रिस ने बताया कि डेनिसोवैन (Denisovan) के साथ होमो सैपियंस की इंटर-ब्रीडिंग हुई थी. इसलिए यह प्रजाति विकसित होती चली गई. ओशिएनिया के न्यू गिनी में मिले डेनिसोवैन अवशेषों में आज के इंसानों के डीएनए का अंश भी मिला है. यानी दक्षिण एशिया में रहने वाले होमो सैपिंयस का मिलन न्यू गिनी के डेनिसोवैन से हुआ था. जिसकी वजह से इंसानों की जो नई पौध विकसित हुई आज वो धरती पर राज कर रही है. (फोटोः गेटी)

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