Advertisement

साइंस न्यूज़

ग्रीनलैंड-अंटार्कटिका पर बड़ा खतरा... दुनिया के 10 में से एक इंसान को चुकानी होगी ये कीमत

ऋचीक मिश्रा
  • न्यूयॉर्क/लंदन,
  • 01 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:52 PM IST
  • 1/12

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इंसान धरती के बढ़ते तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोक भी दे, तो भी दोनों ध्रुवों पर खतरा कम नहीं होगा. अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड पर तेजी से पिघलने वाली बर्फ को वापस जमाया नहीं जा सकेगा. इतनी बर्फ पिघलेगी कि इससे तटीय इलाकों पर रहने वाले लोगों पर खतरा बढ़ जाएगा. (फोटोः डेरेक ओयेन/अन्स्प्लैश)

  • 2/12

कोरिया के इंस्टीट्यूट ऑफ बेसिक साइंस के क्लाइमेट फिजिसिस्ट एक्सेल टिमरमैन इन दोनों ध्रुवों के पिघलने की वजह से पिछली सदी में समुद्री जलस्तर 20 सेंटीमीटर औसत की दर से बढ़ा है. यानी दुनिया में रहने वाले हर दस में से एक व्यक्ति को अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के पिघलने से खतरा है. इन्हें अपने रहने का स्थान बदलना होगा. (फोटोः पेक्सेल पिक्साबे)

  • 3/12

संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल अंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि दोनों ध्रुवों के पिघलने से समुद्री जलस्तर बढ़ेगा और बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन होगा. इसके लिए पूरी दुनिया को तैयार रहना होगा. हैरानी इस बात की है जिस समय वैज्ञानिक इन दोनों ध्रुवों पर मौजूद बर्फ के पिघलने की आशंका कर रहे थे, यह घटना उससे पहले घटेगी. यह स्टडी नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)
 

Advertisement
  • 4/12

पुसान नेशनल यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट साइंटिस्ट जून यंग पार्क ने कहा कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड पर मौजूद हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग खतरनाक स्तर से बढ़ रहा है. इसे एक तय डिग्री सेल्सियस पर रोक भी लें तो भी बर्फ की चादरों को पिघलना रोक नहीं पाएंगे. यह प्रक्रिया वापस ठीक नहीं की जा सकेगी. अगले 130 साल में समुद्री जलस्तर 100 सेंटीमीटर बढ़ जाएगा. (फोटोः गेटी)

  • 5/12

उधर, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के द नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (NSIDC) ने ऐसी स्टडी की है. जिसके परिणाम बेहद भयावह हैं. स्टडी के मुताबिक 21 फरवरी 2023 तक अंटार्कटिका से 17.9 लाख वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघली है. यह पिछले 45 साल का रिकॉर्ड है. वैज्ञानिक इतने सालों से लगातार अंटार्कटिका पर सैटेलाइट से नजर रख रहे हैं. (फोटोः गेटी)

  • 6/12

साल 2022 में अंटार्कटिका का 1.36 लाख वर्ग किलोमीटर बर्फ का इलाका खत्म हो गया था. NSIDC के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह प्राइमरी स्टडी है. मार्च महीने में वो सटीक आंकड़ों के साथ दोबारा रिपोर्ट जारी करेंगे. हालांकि आंकड़ों में ज्यादा अंतर आने की उम्मीद नहीं है. डर इस बात का है जितनी बर्फ पिघली है, उससे कितना जलस्तर बढ़ा है. (फोटोः गेटी)

Advertisement
  • 7/12

कॉपरेटिव इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन द एनवायरमेंट साइंसेस के साइंटिस्ट टेड स्कैमबोस ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर अंटार्कटिका अलग तरह से व्यवहार करता है. यह उत्तरी ध्रुव से अलग है. अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है. कोई भी वैज्ञानिक यह गणना करके नहीं बता सकता कि कितने दिन में यह बर्फ पूरी तरह से पिघल जाएगी. (फोटोः गेटी)

  • 8/12

टेड ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अंटार्कटिका के मौसम में तेजी से परिवर्तन आया है. पिछले चार दशकों में दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव के बर्फ की चादरें तेजी से पिघली हैं. इन्हें रोकना मुश्किल है. क्योंकि इंसान जिस तरह से तापमान बढ़ा रहा है. उससे नुकसान इंसानों को ही होगा. (फोटोः गेटी)

  • 9/12

पिछला साल अंटार्कटिका के लिए लगातार छठा सबसे गर्म साल था. नेचर जियोसाइंसेस जर्नल में प्रकाशित एक अन्य स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. अंटार्कटिका की बर्फ की चादरें तेजी से टूट रही हैं. वो तेजी से खुले समुद्र में तैर रही हैं. बर्फ के टूटकर समुद्र में बहने की मात्रा में 22 फीसदी का इजाफा हुआ है. यानी बर्फ की कमी लगातार हो रही है. (फोटोः गेटी)

Advertisement
  • 10/12

1992 से 2017 के बीच अंटार्कटिका के ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से समुद्री जलस्तर में 7.6 मिलिमीटर की बढ़ोतरी हुई है. यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की इस स्टडी में साल 2014 से 2021 के बीच अंटार्कटिका की 10 हजार सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण किया गया है. जिसमें सर्दियों और गर्मियों में टूटने वाली बर्फ और उसके बहाव का अध्ययन है. (फोटोः गेटी)

  • 11/12

प्रमुख शोधकर्ता बेन वालिस ने बाताय कि अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ के टूटकर खुले समुद्र में आने की प्रक्रिया बेहद अलग और जटिल है. अंटार्कटिका में 1000 किलोमीटर लंबा पहाड़ी इलाका है. जहां पर सील्स, पेंग्विंस और व्हेल्स रहती हैं. यह पूर्वी तट पर है. लेकिन पश्चिमी तट पर जमा बर्फ तेजी से पिघल कर दक्षिणी समुद्र में जा रही है. (फोटोः गेटी)

  • 12/12

गर्मियों में तापमान बढ़ने पर अंटार्कटिका का पश्चिमी तट ज्यादा तेजी से पिघलने लगता है. ऐसी ही हालत ग्रीनलैंड की रहती है. जमी हुई बर्फ के नीचे मौजूद पत्थरों की बर्फ को टिकाए रखने की क्षमता कम होती चली जाती है. वो बर्फ को छोड़ने लगते हैं. जो टूट-टूटकर खुले समुद्र में आ जाती हैं. (फोटोः गेटी)

Advertisement
Advertisement