अमेरिका सालों पहले अपने अपोलो मिशन के साथ चांद से पत्थर लाया था. उसके बाद कोई भी देश पत्थर लाए तो उस पत्थर की उम्र तो ज्यादा होनी चाहिए...लेकिन चीन ने हाल ही में चांद से पत्थर धरती पर मंगाए, वो अपोलो मिशन के समय लाए गए पत्थरों की तुलना में कम उम्र के हैं. यह जानकारी मिलते ही दुनिया भर के वैज्ञानिक हैरान हो गए. क्योंकि इसकी वजह किसी को पता नहीं है. साथ ही चांद पर होने वाली गतिविधियों को लेकर संदेह भी हो रहा है. (फोटोः गेटी)
चीन के चांगई-5 स्पेसक्राफ्ट (Chang'e 5 Spacecraft) ने दिसंबर 2020 में चांद की सतह से 1.73 किलोग्राम मिट्टी और पत्थर जमा किया. उसे लेकर धरती पर आया. इस स्पेसक्राफ्ट ने जिस जगह से मिट्टी और पत्थर उठाए थे, उस जगह का नाम ओशिएनस प्रोसीलेरम (Oceanus Procellarum) है. यह चांद का करीबी हिस्सा है. चीन ने इस जगह पर लैंडिंग इसलिए करवाई थी क्योंकि यहां पर गड्ढे तुलनात्मक रूप से कम है. (फोटोः CNSA)
यहां से उठाए गए पत्थर अमेरिका के अपोलो मिशन और रूस के लूना मिशन के सैंपल्स से कम उम्र के निकले. चांद से धरती पर आने के बाद मिट्टी और पत्थरों को कई तरह के प्रोसेसिंग से गुजारा जाता है. फिर उनका कैटेलॉग बनाया जाता है. इन सबमें करीब 6 महीने लगते हैं. इस साल जून में सैंपल का पहला बैच वैज्ञानिकों के लिए सार्वजनिक किया गया. तबसे इस पर अध्ययन चल रहा है. ताकि चांद और हमारे सौर मंडल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके. (फोटोः NASA/Apollo Genesis)
साइंस जर्नल में अक्टूबर के पहले हफ्ते में प्रकाशित पहली रिपोर्ट यह कहती है कि चीन द्वारा लाए गए पत्थर की उम्र 197 करोड़ साल है. दूसरी रिपोर्ट नेचर जर्नल में 19 अक्टूबर को छपी, जिसमें कहा गया कि दूसरे सैंपल की उम्र 203 करोड़ साल है. भूगर्भीय गणित के हिसाब से दोनों के उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है. वैज्ञानिकों ने इस गणना से यह निकाला कि जिस समय के ये पत्थर है, उस समय चांद पर ज्वालामुखी फट रहे थे. (फोटोः National Museum of Natural History)
चांद पर ज्वालामुखी फटने की प्रक्रिया करीब 100 करोड़ साल तक चलती रही. जिस जगह ये गतिविधियां हो रही थीं, वहीं पर अमेरिका ने अपना अपोलो मिशन उतारा था. बाद में सोवियत संघ ने लूना मिशन भेजा था. पर ये जगह उस समय भूगर्भीय रूप से मर चुका था, यानी ज्वालामुखीय गतिविधियां बंद हो चुकी थीं. (फोटोः NASA)
ब्राउन यूनिवर्सिटी में जियोलॉजिकल साइंस के प्रोफेसर जेम्स हेड थर्ड ने कहा कि इन पत्थरों की स्टडी से पता चलता है कि चांद के क्रस्ट के नीचे एक लेयर है. यानी मैंटल करीब 200 करोड़ सालों तक जलता रहा. यहां पर भारी मात्रा में बसाल्ट (Basalt) खनिज मौजूद है. जेम्स हेड की स्टडी और नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में एक बात समान रूप से सामने आई कि चांग-ई के सैंपल में बेहद कम KREEP कंटेंट है. यानी ये ज्यादा उम्र के नहीं है. (फोटोः NASA)
हालांकि, वैज्ञानिकों ने यह नहीं बताया कि अपोलो मिशन और लूना मिशन से लाए गए पत्थरों की उम्र कितनी थी. उनकी उम्र से चीन के सैंपल की उम्र कितनी कम है. लेकिन आपको बता दें कि चीन की अंतरिक्ष एजेंसी CNSA ने 19 अक्टूबर को दुनिया भर के 17 रिसर्च इंस्टीट्यूट्स को चांद के सैंपल पर स्टडी करने की अनुमति दी थी. इसके लिए उन्होंने 17.936 ग्राम वजन का पत्थर स्टडी के लिए दिया था. (फोटोः NASA)
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट जोशुआ स्नेप ने कहा कि चांद पर ज्वालामुखी कब फटा, कब तक फटता रहा...अब इस पर कन्फ्यूजन हो रही है. क्योंकि अपोलो के समय के सैंपल कुछ और समय बता रहे है, चीन का सैंपल कुछ और समय बता रहा है. जब तक सारे रिसर्च इंस्टीट्यूट मिलकर एक कॉमन नतीजे पर नहीं पहुंच जाते, कुछ भी कहना मुश्किल है. (फोटोः NASA)