ओमिक्रॉन वैरिएंट से घबराने की जरूरत नहीं है. हिम्मत रखिए और अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाए रखिए. क्योंकि हाल ही में हुई एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि अगर शरीर की एंटीबॉडी हार भी जाए तो भी हमारी सफेद रक्त कणिकाएं (White Blood Cells) इस नए कोरोना वैरिएंट से लड़ाई करती हैं. साथ ही ज्यादा बीमार होने से रोकती हैं. ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने ओमिक्रॉन के खिलाफ टी-कोशिकाओं (T-Cells) की उपयोगिता के बारे में स्टडी की है. (फोटोः गेटी)
ऑस्ट्रेलियन शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे शरीर में ओमिक्रॉन (Omicron) से लड़ने के लिए सुरक्षा की एक दूसरी लाइन भी है, जो कोविड से लड़ने में हमारी मदद करती है. इस स्टडी को पूरा किया है यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न और हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने. जिन्होंने बताया कि हमारे शरीर में मौजूद टी-सेल्स ओमिक्रॉन वायरस के हमले को रोकने में मदद करती हैं. (फोटोः गेटी)
ओमिक्रॉन (Omicron) कोरोना वायरस का पहला ऐसा वैरिएंट है, जिसने अब तक सबसे ज्यादा म्यूटेशन किया है. यानी अपने स्वरूप को बदला है. यह लोगों के शरीर में मौजूद कोरोनावायरस के खिलाफ काम कर रहे एंटीबॉडीज को धोखा दे सकता है. चाहे वह एंटीबॉडीज वैक्सीनेशन से पैदा हुए हों या फिर संक्रमण के बाद बने हों. लेकिन अगर ये वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो हमारे बोन मैरो (Bone Marrow) से निकलकर खून में मिलने वाले टी-सेल्स से संघर्ष करता है. टी-सेल्स इसे शरीर में फैलने से रोकता है. (फोटोः गेटी)
टी-कोशिकाएं (T-Cells) को लेकर की गई यह स्टडी हाल ही में Viruses जर्नल में प्रकाशित हुई है. यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के वैज्ञानिक मैथ्यू मैके कहते हैं कि यह एक प्राथमिक अध्ययन है. लेकिन इसमें एक पॉजिटिव न्यूज छिपी है. अगर ओमिक्रॉन (Omicron) या कोई अन्य वैरिएंट शरीर की एंटीबॉडीज को धोखा दे भी देता है, तो भी वह शरीर में मौजूद टी-कोशिकाओं (T-Cells) को बेवकूफ नहीं बना पाएगा. (फोटोः गेटी)
मैथ्यू मैके ने कहा कि हमारे शरीर में आने वाला किसी भी तरह का वायरस टी-कोशिकाओं (T-Cells) के जाल से बच नहीं सकता. ये कोशिकाएं हमारे शरीर को वायरस के हमले और उससे होने वाले नुकसान से बचाती हैं. शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं. हमारी स्टडी के मुताबिक वैक्सीनेशन और बूस्टर्स की वजह से टी-कोशिकाओं की ताकत और बढ़ गई है. वह शरीर में ओमिक्रॉन या किसी अन्य वैरिएंट को अब भयानक स्तर पर फैलने नहीं देगीं. (फोटोः गेटी)
मैथ्यू मैके और उनकी टीम ने कोविड वायरस के प्रोटीन एपिटोप्स (Epitopes) की स्टडी की है. इस प्रोटीन को वैक्सीन लगवा चुके और संक्रमित हो चुके मरीजों के सैंपल से लिया गया था. हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंट एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता अहमद अब्दुल कादीर ने कहा कि जिन एपीटोप्स की स्टडी की गई, उनमें से आधे से ज्यादा को टी-सेल फैलने से रोक देता है. ये उन्हें संक्रमण को फैलाने नहीं देता. (फोटोः गेटी)
अहमद अब्दुल ने कहा कि टी-सेल्स के सुरक्षा घेरे को तोड़ पाना ओमिक्रॉन के लिए मुश्किल है. टी-सेल्स न सिर्फ इंफेक्शन को रोकती हैं, बल्कि वायरस के बढ़ने के दर को भी कम करती हैं. टी-कोशिकाएं (T-Cells) कई तरह की घातक बीमारियों से हमारे शरीर को बचाती हैं. (फोटोः गेटी)
यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स की किर्बी इंस्टीट्यूट के डॉ. स्टुअर्ट टरविले ने कहा कि टी-कोशिकाएं (T-Cells) हमारे शरीर में इम्यूनिटी बैकअप की तरह काम करती हैं. ओमिक्रॉन के सैंपल की स्टडी करने के लिए जो तरीका अपनाया गया है, वो बेहतरीन है. टी-कोशिकाएं कई तरह से कई स्तर पर काम करती हैं. ये कोशिकाएं किसी भी वायरस से एक बार संघर्ष करने के बाद उसे याद कर लेती हैं. ताकि दोबारा हमला होने पर उसी तरह का संघर्ष किया जा सके, ताकि संक्रमण ज्यादा न फैले. (फोटोः गेटी)
यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के प्रोफेसर रॉबर्ट बूई ने कहा कि टी-कोशिकाएं (T-Cells) और बी-सेल्स हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं. ये हमारे शरीर में अलग-अलग तरह की बीमारियों के खिलाफ एंटीबॉडीज बनाती हैं. ये अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया और वायरस की पहचान को याद रखती हैं, जैसे ही वैसे बैक्टीरिया या वायरस का कोई वैरिएंट हमला करता है, ये तुरंत रेस्पॉन्स करते हैं. उन्हें फैलने से रोकता है. (फोटोः गेटी)
सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्ट ने ही यह खोज नहीं की है कि टी-कोशिकाएं (T-Cells) हमारे शरीर को ओमिक्रॉन से बचा रही हैं. बल्कि, दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने भी अपनी स्टडी में पाया है कि एंटीबॉडी को धोखा देने वाला ओमिक्रॉन टी-सेल्स (T-Cells) के हमले से बच नहीं पाया. इसलिए शरीर में टी-कोशिकाओं को मजबूत बनाने के सारे उपायों को करना चाहिए. साथ ही कोविड संबंधी प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए. (फोटोः गेटी)