पिताजी, डैड, बाबूजी, वालिद, अब्बू, पापा ... इन शब्दों की या इनके पीछे छिपे किरदार का इवोल्यूशन या उत्पत्ति कैसे हुई? क्योंकि नर इंसान ही इकलौता ऐसा स्तनधारी जीव है, जो अपने बच्चों का ख्याल रखता है. आमतौर पर नर स्तनधारी जीव सिर्फ मादा के साथ प्रजनन करने के मकसद से संबंध बनाते हैं. उनका अपने बच्चों से ज्यादा लेना-देना नहीं होता. आखिर पिता का इवोल्यूशन कैसे हुआ? इंसान स्तनधारी जीव है, क्यों नर इंसान अपने बच्चों का ख्याल बाकी स्तनधारी नरों की तुलना में ज्यादा रखते हैं? जैसे शेर-बाघ, भालू, बंदर, पांडा आदि. (फोटोः गेटी)
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉट्रे डैम के मनुष्यजाति के विज्ञान के जानकार यानी एंथ्रोपोलॉजिस्ट (Anthropologist) ली गेटट्लर कहते हैं कि नर इंसान ही केयर करना जानते हैं. इनका संबंध ख्याल रखने के मामले में बाकी नर स्तनधारियों से कई गुना ज्यादा है. पिता का किरदार अलग-अलग संस्कृतियों और प्रजातियों में अलग-अलग होता है. इनमें से कुछ जानवर पिता आपको हमारे क्रमानुगत विकास की असली कहानी सुना सकते हैं. (फोटोः गेटी)
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में इवोल्यूशनरी डेमोग्राफर और एंथ्रोपोलॉजिस्ट रेबेका सियर कहती हैं कि ज्यादातर स्तधारी प्रजातियों में नर सिर्फ सेक्स करने या स्पर्म देने के अलावा कुछ नहीं करते. पिता की जिम्मेदारी से बचते हैं. या उनके व्यवहार में ये होता ही नहीं है. ज्यादातर स्तनधारी मादाएं ही मां बनकर अपने बच्चों का बोझ उठाती हैं. लेकिन पक्षियों में केयरिंग पैरेंट्स होते हैं. नर और मादा मिलकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं.यह रिपोर्ट Knowable Magazine में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)
इंसानों की सबसे करीबी प्रजाति है बंदर. इनकी अलग-अलग प्रजातियों में भी ज्यादातर नर पिता की जिम्मेदारी नहीं निभाते. मादा बंदर यानी बच्चों की मां अपने समुदाय से मदद हासिल करती है. या फिर रिश्तेदारों से. लेकिन नर बंदरों का काम सिर्फ और सिर्फ आबादी बढ़ाना होता है. जंगली मादा चिम्पैंजी हर चार से छह साल में बच्चे पैदा करती है, वहीं, ओरंगुटान 6 से 8 साल में बच्चे पैदा करते हैं. (फोटोः गेटी)
इसे लेकर बड़ा रहस्य है कि कैसे नर इंसान पिता के तौर पर विकसित हुआ. उसका अपने बच्चों की तरफ ख्याल रखने की सोच आई. क्या इसमें हार्मोनल बदलाव जिम्मेदार है. क्योंकि जैसे ही नर इंसान पिता बनता है, उसके अंदर कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं. क्या यहीं से एक पिता का किरदार सक्रिय होता है. क्या यहीं से फादरहुड मायने रखता है. क्या नर इंसान के पिता बनने से बच्चों समेत पूरे परिवार को फायदा होता है. जी हां होता है. इसे आपको बताने की जरूरत नहीं है. (फोटोः गेटी)
नर इंसान जब पिता बनता है तो उसके शरीर में भयानक स्तर पर हार्मोन्स में बदलाव होता है. आइए जानते हैं कैसे...जो पिता नहीं होता, उसके शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की मात्रा -23 pg/ml होता है. लेकिन पिता बनने के एक महीने पहले और एक महीने बाद तक नर इंसान के शरीर में टेस्टोस्टेरॉन की मात्रा बढ़कर -105 pg/ml हो जाती है. जब बच्चा 1 महीने से 1 साल के बीच होता है तब पिता के शरीर में यह हॉर्मोन -41 pg/ml होता है. जब बच्चा एक साल से ज्यादा का हो जाता है तब नर इंसान यानी उसके पिता के शरीर में इस हॉर्मोन की मात्रा -50 pg/ml हो जाती है. (फोटोः एपी)
फादरहुड (Fatherhood) यानी पितृभाव या पिता बनने की भावना की असली कहानी के कुछ सबूत जरूर मिले हैं. ये हमारे सबसे करीबी जानवरों की तरफ इशारा करते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की बायोलॉजिकल एंथ्रोपोलॉजिस्ट स्टेसी रोसेनबॉम कहती हैं कि उन्होंने रवांडा में रहने वाले जंगली पहाड़ी गोरिल्लाओं का अध्ययन किया था. इनसे उन्हें गोरिल्ला डैड बनने और विकास के कुछ सबूत मिले. जिसे एन्यूअल रिव्यू ऑफ एंथ्रोपोलॉजी में प्रकाशित किया गया है. (फोटोः गेटी)
ये पहाड़ी गोरिल्ला अन्य गोरिल्लाओं यानी चिड़ियाघरों में रहने वालों से अलग होते हैं. क्योंकि इनका रहवास और खान-पान अलग होता है. क्योंकि इन नर गोरिल्ला के पास उनके बच्चे घंटों बिताते हैं. उनके साथ खेलते हैं. सोते हैं. खाते हैं. उधम मचाते हैं. ये जरूरी नहीं कि वह नर गोरिल्ला उनका पिता हो. क्योंकि नर पहाड़ी गोरिल्ला अपने बच्चों का ख्याल रखना नहीं जानता. लेकिन वह उन्हें अपने पास आने देता है. (फोटोः गेटी)
यहां पर ये बात पता चलती है कि नर गोरिल्ला के पास बच्चे इसलिए जाते हैं ताकि वो जंगल के खतरों से सुरक्षित रह सकें. क्योंकि नर पहाड़ी गोरिल्ला बहुत ताकतवर, बड़े और भारी होते हैं. इससे एक फायदा ये होता है कि गोरिल्लाओं की सामाजिकता बनी रहती है. ये छोटे बच्चे कई नरों, मादाओं और एकदूसरे के बीच प्यार भरा संबंध बनाने में मदद करते हैं. इससे दूसरा सबसे बड़ा लाभ ये है कि नर गोरिल्लाओं की निगरानी में बच्चे तेजी से बड़े होते हैं. बचाव, शिकार और हमले की तकनीक भी सीखते हैं. यही हाल शेरों और बाघों के साथ होता है. (फोटोः गेटी)
अगर किसी गोरिल्ला बच्चे की मां मर जाती है तो उस टोली का नर उन्हें संभालता है और सुरक्षा देता है. टोली का सबसे ताकतवर गोरिल्ला इन बच्चों की हिफाजत की जिम्मेदारी लेता है. चाहे वह इनका पिता हो या न हो. वयस्क नर मकाउ भी अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं. बबून बंदर मादाओं के साथ दोस्ती करते हैं, साथ ही उनके बच्चों के साथ भी. लेकिन ये हर बबून के लिए जरूरी नहीं होता. जो नर स्तनधारी बच्चों का ख्याल रखते हैं, उन्हें उनकी टोली या समाज में ज्यादा आकर्षक माना जाता है. वो कई मादाओं के साथ संबंध बनाते हैं. (फोटोः गेटी)
नर इंसानों के पिता और सौतेले पिता बनने के बाद भी लगभग यही आइडिया काम आता है. कई बार नर इंसान ऐसे बच्चों के साथ भी प्यार जताते हैं, जिन्हें वो जानते भी नहीं है. या फिर उनके बच्चे नहीं होते. कई नर इंसान अपने सौतेले बच्चों पर भी निवेश करते हैं. कई बार दूसरों के बच्चों पर भी. अपने बच्चों के साथ या सौतेले बच्चों के साथ उनका संबंध उस महिला के साथ संबंध को मजबूत बनाता है, जिसके साथ वो सेक्स करते हैं या उनका संबंध होता है. संबंध खत्म होते ही नर इंसान बच्चों के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं. (फोटोः गेटी)
ये बात तो सही है कि नर इंसान और नर बंदरों के पिता बनने और उनके रवैये में काफी अंतर होता है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि पहाड़ी नर गोरिल्ला या नर मकाउ का रवैया नर इंसान से मिलता-जुलता है. शायद ये क्रमानुगत विकास यानी इवोल्यूशन का प्राचीन दबाव हो. इसी दबाव के तहत उनका बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार आता है. इसी में उन्हें पितृभाव यानी फादरहुड की भावना आती है. (फोटोः गेटी)