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नीदरलैंड्स में मिली पीले रंग की अत्यधिक दुर्लभ कैटफिश, खास बीमारी से पीड़ित

aajtak.in
  • एम्सटर्डम,
  • 21 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST
rare bright yellow catfish
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दूर से देखने पर लग रहा था किसी बड़े केले को मछली के फिन लगाकर तैरने के लिए छोड़ दिया गया हो. यह बात मार्टिन ग्लेट्ज ने तब कही जब उन्होंने पीले रंग की अत्यधिक दुर्लभ कैटफिश को पकड़ा. पकड़ा भी क्या यह मछली पानी से उछल रही थी, इसी दौरान वह तेजी से मार्टिन के बोट पर आ गिरी. मार्टिन इसे देख हैरान रह गए. क्योंकि मार्टिन और उनके भाई ओलिवर ने कई कैटफिश पकड़ी हैं, लेकिन इसके जैसा उन्होंने आजतक कुछ नहीं देखा था. (फोटोः मार्टिन ग्लैट्ज/इंस्टाग्राम)

rare bright yellow catfish
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असल में यह वेल्स कैटफिश (Wels Catfish) है. जिसे वैज्ञानिक भाषा में सिलुरस ग्लैनिस (Silurus glanis) कहते हैं. यह बड़े आकार की कैटफिश की प्रजाति है, जो यूरोप की नदियों और झीलों में बहुतायत में पाई जाती है. ये 9 फीट तक लंबी हो सकती हैं. इनका वजन 130 किलोग्राम तक हो सकता है. (फोटोः गेटी)

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अब आप सोचेंगे कि जो मछली यूरोप के झीलों और नदियों में बहुत ज्यादा संख्या में पाई जाती है, वह दुर्लभ कैसे है. आइए आपको बताते हैं कि जिस मछली को मार्टिन ग्लेट्ज ने पकड़ा था, उसे एक खास तरह की जेनेटिक बीमारी थी. इस बीमारी को ल्यूसिस्म (Leucism) कहते हैं. जिसकी वजह से उसका रंग पीला हो रखा है. (फोटोः गेटी)

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आमतौर पर वेल्स कैटफिश का रंग गहरे हरे रंग का होता है. जिनपर कुछ पीले धब्बे होते हैं. अल्बीनो मछलियां और जानवर पाए जाते हैं. लेकिन उनकी आंखों में दिक्कत होती है. ल्यूसिस्म से पीड़ित इस मछली की आंख में कोई दिक्कत नहीं थी. यह एकदम दुरुस्त थी. जिसकी वजह से ये काफी सटीकता और गति के साथ झील में तैर रही थी. (फोटोः गेटी)

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ल्यूसिस्म (Leucism) नाम का जेनेटिक डिस्ऑर्डर स्तनधारियों, सरिसृपों, पक्षियों और मछलियों में पाई जाती है. इसकी वजह से ही पीले पेंग्विंस (Yellow Penguins) और सफेद किलर व्हेल्स (White Killer Whales) दिखाई देती हैं. साल 2017 में अमेरिका के आयोवा में स्थित मिसीसिपी नदी में एक पीले रंग की कैटफिश देखी गई थी. उस समय भी यह चर्चा का विषय बनी थी. (फोटोः गेटी)

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ल्यूसिस्म (Leucism) से पीड़ित जीव इंसानों को खूबसूरत तो लगते हैं लेकिन उन जीवों के साथ एक दिक्कत होती है. वो जंगल यानी खुले में काफी ज्यादा खतरे में रहते हैं. क्योंकि उनका रंग उन्हें शिकारियों के टारगेट पर लाकर खड़ा कर देता है. ये आसानी से शिकार किए जा सकते हैं. जबकि, इनके बाकी असली रंग वाले साथी जीव शिकार होने से बच जाते हैं. (फोटोः गेटी)

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मार्टिन ग्लेट्ज ने इस मछली के साथ कुछ फोटोग्राफ्स लिए और उसके बाद उसे वापस पानी में छोड़ दिया. क्योंकि मार्टिन को उम्मीद है कि अगर यह जीवित बची तो ये और बड़ी होगी. ताकि अन्य मछुआरों को भी यह सरप्राइज दे सके. मार्टिन ने कहा कि वैसे में लोगों से अपील करूंगा कि इस मछली का शिकार न करें. (फोटोः गेटी)

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मादा वेल्स कैटफिश अपने शरीर के वजन के अनुसार अंडे देती है. यह अधिकतम 30 हजार अंडे प्रति किलोग्राम की दर से दे सकती है. यानी मछली का वजन अगर 130 किलोग्राम है तो यह 39 लाख अंडे अधिकतम दे सकती है. नर मछली अंडों के घोंसले की रक्षा करता है. यह काम कम से कम 10 दिन तक चलता रहता है, उसके बाद मछलियां अंडे से बाहर निकल जाती है, फिर उनकी संख्या भी कम हो जाती है. बड़ी मछलियां उन्हें खा जाती हैं. जो बच गईं वो बाद में शिकार कर ली जाती हैं. (फोटोः गेटी)

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