जम्मू का कटरा इलाका पिछले 48 घंटे में पांच बार कांप चुका है. धरती हिल रही थी. तीव्रता बहुत नहीं थी लेकिन कहीं ये किसी बड़े खतरे का संकेत तो नहीं है. पिछले आठ महीने में लद्दाख समेत जम्मू और कश्मीर इलाके में 26 बार जमीन थर्रा चुकी है. सबसे ताकतवर भूकंप 4.3 तीव्रता का था, जो लेह के अल्ची में 31 मार्च 2022 को महसूस किया गया था. यह अल्ची से दक्षिण-पश्चिम में 113 किलोमीटर दूर जमीन में 10 किलोमीटर की गहराई में स्थित था. (फोटोः गेटी)
हिंदुओं के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माता वैष्णव देवी मंदिर के लिए विख्यात जम्मू का कटरा इलाका पिछले दो दिनों में पांच बार कांपा है. 23 अगस्त को ही कटरा में चार भूकंप आए. 3.9 तीव्रता का भूकंप कटरा से 71 किमी दूर पूर्व-उत्तर-पूर्व में जमीन से 5 किमी की गहराई में. 3.1 तीव्रता का भूकंप 77 किमी दूर पूर्व-उत्तर-पूर्व में जमीन से 5 किमी नीचे. 3.9 तीव्रता का भूकंप कटरा से पूर्व में 61 किमी दूर जमीन से 10 किमी नीचे और 23 को ही 2.6 तीव्रता का भूकंप 64 किमी दूर पूर्व-उत्तर-पूर्व में जमीन से 5 किमी नीचे. इसके पहले 22 अगस्त को 3.3 तीव्रता का भूकंप कटरा से 62 किमी दूर पूर्व-उत्तर-पूर्व में जमीन से 10 किमी नीचे. (फोटोः गेटी)
हैरानी इस बात की है कि क्या कटरा से पूर्व-उत्तर-पूर्व में जमीन के नीचे क्या कोई बड़ी गतिविधि चल रही है. क्योंकि जम्मू और उसके आसपास का इलाका जैसे- हिमाचल का मंडी, धर्मशाला और कश्मीर के सोपोर, श्रीनगर और अनंतनाग वाले जोन पांच के बीचों-बीच पड़ता है. जोन पांच भूकंप का सबसे खतरनाक जोन माना जाता है. इस जोन में आने वाले इलाकों में भूकंप की वजह से ज्यादा नुकसान होने का खतरा रहता है. (फोटोः गेटी)
IIT Roorkee के अर्थ साइंसेज विभाग के साइंटिस्ट और अर्थक्वेक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम फॉर उत्तराखंड (Earthquake Early Warning System For Uttarakhand) प्रोजेक्ट के इंचार्ज प्रोफेसर कमल ने इन भूकंपों के बारे में aajtak.in से बातचीत की. प्रो. कमल ने बताया कि इन छोटे-छोटे भूकंपों से घबराने की जरुरत नहीं है. ये किसी बड़े भूकंप के आने की कोई आशंका नहीं है. डरने की जरूरत नहीं है. छोटे भूकंपों का बड़े हादसे से सीधा कोई संबंध नहीं है. (फोटोः गेटी)
प्रो. कमल ने बताया कि जमीन के नीचे जब दबाव यानी टेक्टोनिक फोर्स की वजह से स्ट्रेस बनता है तो वह हल्के-फुल्के भूकंप के जरिए निकलता रहता है. इसे अर्थक्वेक स्वार्म (Earthquake Swarm) कहते हैं. अगर दबाव का स्तर ज्यादा हो गया और एकसाथ तेजी से निकला तो भयानक भूकंप आ जाते हैं. असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट (Indian Tectonic Plate) लगातार तिब्बत की प्लेट (Tibetan Plate) की तरफ खिसक रही है. इससे दो प्लेटों के बीच स्ट्रेस बनता है. यही निकलता है तो भूकंप आता है. फिलहाल इन छोटे भूकंपों से लोगों को डरने की जरुरत नहीं है. (फोटोः गेटी)
प्रो. कमल ने बताया कि जो खतरनाक जोन हैं, वहां पर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाने की सख्त जरूरत है. ताकि लोगों को भूकंप आने से 1-2 मिनट पहले जानकारी मिल सके. वो सारा काम-धाम छोड़कर सुरक्षित स्थानों की तरफ भाग सकें. जो भूकंप के पांचवें और चौथे जोन में हैं, उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है. क्योंकि हम भूकंप को न रोक सकते हैं, न टाल सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाए जाएं. (फोटोः गेटी)
प्रो. कमल ने बताया कि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम समय रहते लोगों की जान बचा सकते हैं. यानी भूकंप आने से कुछ मिनट पहले उन्हें सूचना मिल जाएगी ताकि वो सुरक्षित स्थानों की तरफ जाकर खुद को और लोगों को बचा सकें. जैसे हिंदूकुश में भूकंप आता है तो पांच मिनट बाद हमें पता चलता है कि भूकंप आया है. यानी एक लहर आती है. अगर हमारे पास एक सिग्नल आता है कि भूकंप आ गया है, इस इलाके को यह इतनी देर में हिला देगा. तो इसे कहते हैं अर्ली वॉर्निंग. हम इसके जरिए लोगों को बचा सकते हैं. उत्तराखंड में हमने पहला ऐसा सिस्टम लॉन्च किया है. सरकार ऐसे सिस्टम लगाने का प्रयास पूरी तरह से कर रही है. (फोटोः गेटी)
प्रो. कमल ने बताया कि IIT Roorkee ने उत्तराखंड में 167 स्थानों पर अर्थक्वेक सेंसर्स लगाए हैं. तब जाकर एक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम तैयार हुआ है. सिर्फ पहाड़ों पर ही हजारों की संख्या में सेंसर्स लगाने होंगे. पूरे देश में तो लाखों की संख्या में लगाना होगा. ताइवान उत्तराखंड से छोटा है. लेकिन वहां पर 6000 सेंसर्स लगे हैं. जापान में भी हजारों सेंसर्स लगे हैं. हिमालय में ही दसियों हजारों सेंसर्स लगाने होंगे. मैदानों पर तो अलग से लगाना होगा. (फोटोः गेटी)
IIT Roorkee ने अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को लेकर एक एप विकसित किया है. इसका नाम है उत्तराखंड भूकंप अलर्ट (Uttarakhand Bhookamp Alert). इस एप के जरिए हम हर महीने की एक तारीख को अलार्म बजता है. जो असली भूकंप आने पर बजेगा. यानी जैसे ही अलार्म बजे आप तुरंत सुरक्षित स्थानों पर चले जाइए. इसके अलावा अर्ली वॉर्निंग नोटिफिकेशन मैसेज भी आएंगे. क्योंकि उत्तराखंड में अगर भूकंप आता है तो Delhi-NCR के लोगों को असर हो सकता है. इसलिए उनके लिए तो यह एप बेहद जरूरी है. लोग इस एप को प्लेस्टोर या एपल आईस्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं. (फोटोः गेटी)
आपको बता दें कि पिछली साल लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कैबिनेट मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया था कि भारत का 59% हिस्सा भूकंप रिस्क जोन में है. पांच जोन हैं. पांचवां जोन सबसे ज्यादा खतरनाक और सक्रिय है. इस जोन में देश का 11 फीसदी हिस्सा आता है. चौथे जोन में 18 फीसदी और तीसरे और दूसरे जोन में 30 फीसदी. सबसे ज्यादा खतरा जोन 4 और 5 वाले इलाकों को है. आइए जानते हैं कि किस जोन में देश का कौन सा हिस्सा है. (फोटोः गेटी)
पांचवें जोन में जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी इलाका, उत्तराखंड का पूर्वी इलाका, कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, सारे उत्तर-पूर्वी राज्य और अंडमान निकोबार. चौथे जोन में जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड का बाकी हिस्सा, हरियाणा-पंजाब-दिल्ली-सिक्किम का कुछ हिस्सा, उत्तरी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल का छोटा सा हिस्सा और गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिमी राजस्थान का कुछ हिस्सा शामिल हैं. (फोटोः गेटी)