कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने भारत समेत पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है. लेकिन एक नई रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है कि अगर ये पांच काम पहले कर दिए जाते तो पहली ही लहर में कोरोना को महामारी बनने से रोका जा सकता था. साल 2019 और 2020 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ फैसले इतनी देरी से हुए कि कोरोना भयावह महामारी बनकर पूरी दुनिया में छा गई. इसकी वजह से अब तक 34 लाख लोगों की जान चली गई. इन लोगों को बचाया जा सकता था. इस स्टडी को करवाया है WHO ने. आइए जानते हैं कि वो पांच काम कौन से थे जिनसे महामारी को रोका जा सकता था. (फोटोःगेटी)
पहलाः वैश्विक आपातकाल घोषित करने में 8 दिन की देरी
चीन की सरकार ने 31 दिसंबर 2019 को बताया कि वो वुहान में अनजान कारणों से फैल रहे निमोनिया के दर्जनों मामलों का उपचार कर रहे हैं. उस समय तक इस बात के सबूत नहीं मिले थे कि ये कोरोना वायरस है जो तेजी से इंसानों को संक्रमित कर सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस पर एक्शन लेने में काफी देर कर दी. वुहान में जांचकर्ताओं को जैसे ही पता चला कि ये निमोनिया कोरोना वायरस से फैल रहा है, उन्होंने तत्काल ओपन मीडिया सोर्स में यह जानकारी डाली. मीडिया में खबर आने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. WHO ने 22 जनवरी को वैश्विक आपातकाल घोषित किया. जबकि उसे ये काम 8 दिन पहले कर देना चाहिए था. (फोटोःगेटी)
दूसराः फरवरी 2020 था अत्यधिक जरूरी महीना
वैश्विक आपातकाल घोषित होने के बाद भी कई देश अपनी सीमाओं को बंद करने और यात्रा पर प्रतिबंध लगाने में काफी धीमे रहे. जिसकी वजह से फरवरी का महीना खराब हो गया. इस स्टडी को करने वाली टीम के को-चेयर एलेन जॉन्सन सरलीफ ने कहा कि अगर इसी महीने दुनिया के अलग-अलग देश तेजी से एक्शन लेते तो आज ये हालत न होती. न्यूजीलैंड ने तेजी से एक्शन लिया जिसकी वजह से वहां पर कोरोना वायरस का संक्रमण और मृत्यु दर बाकी देशों से काफी कम रहा. वहां अब तक सिर्फ 26 लोगों की ही मौत हुई है. (फोटोःगेटी)
2 फरवरी को फिलिपींस पहला देश था जहां पर चीन के अलावा कोविड-19 से पहला व्यक्ति मरा. न्यूजीलैंड ने 14 दिन आइसोलेशन और इंटरनेशनल ट्रैवल पर बैन जैसे कड़े नियम लागू कर दिए. यूके की प्रतिक्रिया बहुत कमजोर थी. उसने जनवरी से मार्च 2020 के बीच वुहान से आने वाले 273 लोगों पर प्रतिबंध लगाए. उसने चीन, इरान और इटली से आने वाले लोगों को 14 दिन आइसोलेशन में रहने का नियम लागू किया. 13 मार्च को यूके ने संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की. (फोटोःगेटी)
तीसराः अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने की अनदेखी, वैज्ञानिकों की बात नहीं मानी
कई देशों के नेताओं और प्रमुखों ने वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी. उन्होंने साइंटिफिक रिसर्च और सलाह को अनदेखा किया. सही समय पर सख्त फैसले नहीं लिए. जिसकी वजह से महामारी का रूप और भयावह होता चला गया. इसमें सबसे ऊपर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम है. उन्होंने लगातार अपने प्रमुख वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी. जबकि, अमेरिका में पहला कोविड-19 केस जनवरी में ही मिला था. तब ट्रंप ने कहा था कि एक इंसान ही तो बीमार है. यहां सब नियंत्रण में है. अगले महीने उन्होंने कहा कि ये बीमारी गायब हो जाएगी. आज अमेरिका में 5.96 लाख से ज्यादा लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी है. (फोटोःगेटी)
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने भी ऐसा ही रवैया अख्तियार किया. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने से मना कर दिया. बोल्सोनारो ने कहा कि यह एक साधारण सा फ्लू वायरस है. मार्च 2020 में उन्होंने कहा कि कोई लॉकडाउन नहीं लगेगा. सबकुछ चलता रहेगा. यहां वैक्सीनेशन की दर भी बहुत कम है. अब लोग बोल्सोनारो पर आरोप लगा रहे हैं कि उनकी लापरवाही की वजह से सामूहिक हत्याकांड हुआ है. ऐसी ही हालत तंजानिया और तुर्कमेनिस्तान में भी थी. जहां के राष्ट्रपति ने एक पौधे से कोरोना को हराने का बहाना दिया था. (फोटोःगेटी)
चौथाः पीपीई किट, ICU और बेड्स की मारामारी
एलेन जॉन्सन सरलीफ ने कहा कि पूरी दुनिया इस महामारी के लिए तैयार नहीं थी. सरकारें और नेता तब एक्शन में आए जब अस्पतालों में ICU बेड्स और पीपीई किट की कमी होने लगी. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. उस समय विजेता वहीं बनता जो पीपीई किट और दवाओं को अपने पास जमा कर लेता. पूरी दुनिया में डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों की अग्निपरीक्षा शुरु हो गई. वो कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज करते-करते खुद बीमार पड़ने लगे. मरने लगे. (फोटोःगेटी)
लंदन के एक अस्पताल में एक डॉक्टर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उसे बिना पीपीई किट के ही लोगों का इलाज करना पड़ रहा है. मैं सिर्फ मास्क और मेडिकल दस्ताने पहनकर लोगों का इलाज कर रहा हूं. गार्जियन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यूके की सरकार के पास उस समय पीपीई किट की 40 फीसदी से ज्यादा कमी थी. जो कि महामारी को रोकने में सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई हुई. (फोटोःगेटी)
पांचवांः फिर आई असमानता की महामारी
एलेन जॉन्सन सरलीफ ने कहा कि कोविड-19 की वजह से पूरी दुनिया में असमानता की महामारी फैली. ये देशों के अंदर और देशों के बीच भी देखने को मिली. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है भारत. कोरोना संकट की वजह से भारत की हालत खराब हो गई. क्योंकि यहां पर गरीबों की संख्या बहुत ज्यादा है. ये करोड़ों में हैं. सबसे ज्यादा परेशान यही लोग हुए. लोगों को श्मशान, शवदाह गृह और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कार करने के लिए इंतजार करना पड़ा. ऑक्सीजन की कमी होने लगी. वेंटिलेंटर्स की कमी हुई. (फोटोःगेटी)
पिछले महीने यूके ने भारत में 1000 वेंटिलेटर्स भेजे. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में बहुत कम लोगों का वैक्सीनेशन हुआ है. भारत में कोरोना की दूसरी लहर जिसे महामारी की सुनामी कहा जा रहा है, उसने देश को खस्ताहाल कर दिया. मुर्दाघरों में जगह नहीं बची. ICU बेड्स खाली नहीं थे. स्ट्रेचर नहीं थे. लोग ऑक्सीजन मास्क लगाकर पेड़ों और पार्क में बैठे दिखाई दिए. लोग अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार खुली जगहों पर कर रहे थे. (फोटोः रॉयटर्स)