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साइंस न्यूज़

पानी में तैरने वाली मछली ने जमीन पर चलाई कार, वैज्ञानिकों का कमाल

aajtak.in
  • तेल अवीव,
  • 06 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 12:34 PM IST
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पानी में गोते लगाने वाली मछली अगर सड़क पर कार चलाने लगे तो आपको हैरानी होगी. लेकिन यह सच है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने तकनीक का प्रयोग करके एक मछली से छोटी सी कार चलवाई. मछली जिस दिशा में देखती थी, कार उस तरफ चलने लगती थी. इसके पीछे मकसद था जानवरों के दिशा निर्धारण और टारगेट पहचानने की क्षमता को जांचना. आइए समझते हैं कि इस मछली ने कार कैसे चलाई? (फोटोः गेटी)

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इजरायल स्थित बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी (Ben-Gurion University) के वैज्ञानिकों ने अपने इस प्रयोग से यह साबित कर दिया कि मछलियां विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी दिशा और टारगेट तय कर सकती हैं. ऐसा पहली बार हुआ है जब एक गोल्ड फिश ने फिश ऑपरेटेड व्हीकल (Fish Operated Vehicle) चलाया है. वह खाने के लालच में अपने टारगेट तक पहुंची हैं. अब यह पूरी तरह से पक्का हो गया है कि मछलियां कार चला सकती हैं. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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इजरायल के वैज्ञानिकों ने एक रोबोटिक कार बनाई. जिसके ऊपर पानी के टैंक में एक गोल्ड फिश को रखा. मछली के मुंह की तरफ दिशा समझने के लिए इसमें लाईडार (LIDAR) यंत्र लगाया गया. जो एक कंप्यूटर से जुड़ा था. लाईडार यंत्र के ठीक नीचे एक कैमरा लगा था जो मछली के मुंह की दिशा को समझ कर उसके निर्देश कंप्यूटर को देता था. कंप्यूटर मछली के मुंह की दिशा के अनुसार रोबोटिक कार को उसी दिशा में मोड़ देता था. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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अगर इस तकनीक का उपयोग किया जाए तो मछली जमीन, सूखी धरती जैसी किसी भी जगह पर कार ड्राइव कर सकती है. यह स्टडी हाल ही में Behavioural Brain Research जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसका मकसद सिर्फ इतना था कि मछलियों समेत अन्य जीवों के नेविगेशन सिस्टम को समझा जा सके. मछली का तो वैज्ञानिक समझ गए. अब अगला प्रयोग वह किस जीव पर करेंगे, इसका खुलासा नहीं किया गया है. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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यह स्टडी की है बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक सचार जिवोन, मतन समीना, ओहाद बेन-शहर और रोनेन सेजेव और उनकी टीम ने. सचार डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ साइंसेस, मतन बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, ओहाद कंप्यूटर साइंस और रोनेन सेंटर फॉर न्यूरोसाइंस के वैज्ञानिक हैं. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में बताया है कि कैसे एक प्रजाति का जीव दूसरी प्रजाति के प्रति आकर्षित होता है या दूर भागता है. ऐसे में वह किस तरह से अपनी दिशा तय करता है. इसके अलावा खाना, पर्यावरण, वातावरण और प्रदूषण कैसे इन जीवों को सुरक्षित स्थानों पर जाने में मदद करता है. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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गोल्ड फिश को पहले एक कमरे में टारगेट दिखाया गया कि यहां पर तुम्हारे खाने की चीजे रखीं हैं. अगर वहां तक पहुंच गई तो खाने को मिलेगा. मछली को टारगेट से दूर कमरे में रख दिया गया. मछली ने पहले चारों तरफ देखा फिर टारगेट तक पहुंचने के लिए दिशा तय करने लगी. उसके मूवमेंट के अनुसार लाईडार कैमरा कंप्यूटर को निर्देश देता रहा. कंप्यूटर उस छोटी कार को उस दिशा में चलाता रहा. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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आप हर तस्वीर में देख सकते हैं कि मछली का मुंह जिस तरफ है, उसी दिशा में यह छोटी कार जा रही है. यानी गोल्ड फिश की नेविगेशन को समझने के लिए उपयोग में लाई गई तकनीक से किसी भी गाड़ी को चलाया जा सकता है. यह भविष्य में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव ला सकता है. अगर एक दिशा में इंसान या कोई जीव संतुलित तरीके से चलना चाहता है तो इस तकनीक का उपयोग करके कार चलाई जा सकती है. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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ऐसा नहीं है कि गोल्ड फिश एक बार में टारगेट तक पहुंच गई. उसने कमरे में कई चक्कर भी लगाए. इसके बाद अपने टारगेट को खोजते हुए वह उस तक पहुंची. इस दौरान वह दिशा तय करने में थोड़ी कन्फ्यूज भी हुई. क्योंकि वह अपने वास्तविक वातावरण में नहीं थी. लेकिन पानी में रहने की वजह से सामने दिख रही चीजों की तस्वीरें थोड़ी बिगड़ जाती हैं. मछलियां इस तरह से देखने के लिए ही बनी होती है. लेकिन कमरे में टारगेट खोजना उसके लिए थोड़ा मुश्किल था. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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वह कभी ऊपर गई, कभी नीचे आई. कभी टारगेट के पास पहुंच कर भी नहीं पहुंच पाई. फिर उसने दिशा बदली और वापस टारगेट तक पहुंची. अपने टारगेट तक पहुंचने में मछली को करीब 2 मिनट का समय लगा. इस दौरान उसने अपनी दिशा सही की. कमरे में घूमी. आखिरकार अपने टारगेट तक पहुंच गई. जिसके बाद वैज्ञानिकों ने उसे पर्याप्त खाना दिया. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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सिर्फ कमरे में नहीं, मछली को सड़क पर भी ले जाया गया ताकि यह देखा जा सके कि कमरे के अलावा क्या अन्य वातावरण में वह दिशा तय कर पाती है या नहीं. मछली को सड़क पर लाकर फुटपाथ के किनारे छोड़ा गया. ताकि वह अपने टारगेट तक पहुंच सके. गोल्ड फिश इस काम में भी कामयाब हुई. लेकिन इस दौरान उसकी कार एक-दो बार फुटपाथ से टकराई भी. पर मछली को कुछ नहीं हुआ. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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ओहाद बेन-शहर ने बताया कि अगर जानवरों को सही ट्रेनिंग दी जाए तो हम उनसे किसी भी परिस्थिति में काम करवा सकते हैं. हम उनसे मनचाहा परिणाम हासिल कर सकते हैं. हमने गोल्डफिश के जरिए फिश ऑपरेटेड व्हीकल को चलवाने का काम कराया. उसे टारगेट के तौर पर खाने का लालच दिया था. कुछ दिन की ट्रेनिंग के बाद मछली को समझ आ गया था कि उसका टारगेट क्या है और कहां है. उसे बस व्हीकल को चलाकर वहां तक पहुंचना था. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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ओहाद ने बताया कि यह जरूरी नहीं है कि मछलियों को दिशा तय करने के लिए वो पानी में ही रहें. वो बाहर भी दिशा तय कर सकती है. उनके जिंदा रहने के लिए पानी का होना जरूरी है. लेकिन दिशा तो वह कहीं भी तय कर सकती हैं. इससे पता चलता है कि किसी भी जीव में अपनी परिस्थिति में रहते हुए दिशा निर्धारण बड़ी बात नहीं है. वह किसी भी परिस्थिति में रहकर अपना टारगेट और दिशा तय कर सकता है. (फोटोः बेन-गुरियॉन यूनिवर्सिटी)

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