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साइंस न्यूज़

हिमालय के नीचे प्लेटों के खिसकने से उत्तराखंड में ग्लेशियर ने बदला था रास्ताः स्टडी

ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली/देहरादून,
  • 25 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST
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हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में करीब 10 से 20 हजार साल पहले टेक्टोनिक हलचल की वजह से एक बड़े ग्लेशियर ने अपना रास्ता बदल लिया. ये कोई एक बार में होने वाली घटना नहीं थी. टेक्टोनिक हलचल और जलवायु परिवर्तन की वजह से धीरे-धीरे एक अनजान ग्लेशियर ने रास्ता बदलकर पहाड़ के दूसरी तरफ मौजूद ग्लेशियर का हाथ थाम लिया. इस समय इस अनजान ग्लेशियर की लंबाई 5 किलोमीटर है. यह 4 वर्ग किलोमीटर में फैला है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हजारों साल पहले यह और बड़ा रहा होगा. आइए जानते हैं उत्तराखंड के ऊंचे पहाड़ों में घटी इस अनोखी प्राकृतिक घटना के बारे में...(प्रतीकात्मक फोटोः गेटी) 

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (Wadia Insititute of Himalayan Geology) के साइंटिस्ट डॉ. मनीष मेहता, राहुल देवरानी, खाइंगशिंग लुइरी और विनीत कुमार की टीम ने सैटेलाइट नक्शों के जरिए यह खुलासा किया है. आइए जानते हैं कि इन्होंने इस स्टडी में क्या नतीजे निकाले? aajtak.in से अपनी स्टडी के बारे में बात करते हुए ग्लेशियर विशेषज्ञ डॉ. मनीष मेहता ने कहा ये घटना हजारों साल पहले हुई थी. अब ग्लेशियर का आकार कम हो गया है. इससे पिथौरागढ़ के लोगों को फिलहाल कोई दिक्कत नहीं है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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रिपोर्ट के मुताबिक प्रकृति का कुछ कह नहीं सकते. लेकिन अभी घबराने की जरूरत नहीं है. इस अनजान ग्लेशियर के दूसरे ग्लेशियर से मिलने से किसी तरह की प्राकृतिक आपदा की आशंका फिलहाल नहीं है. यह स्टडी हाल ही में जियोसाइंसेस जर्नल में प्रकाशित हुई है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

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पिथौरागढ़ के अति-उच्च और कम जानकारी वाली अपर काली गंगा घाटी (Upper Kali Ganga Valley) एक एक्टिव फॉल्ट और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुआ है. एक्टिव फॉल्ट की वजह से घाटी में उत्तर-पश्चिम-दक्षिण-पूर्व की तरफ एक 6.2 किलोमीटर लंबी और करीब 250 मीटर गहरी दरार बन गई. इसकी वजह से कुठी यांक्ती घाटी (Kuthi Yankti Valley) में मौजूद 5 किलोमीटर लंबे और 4 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले अनजान ग्लेशियर ने अपना पुराना रास्ता छोड़ दिया. पहले यह उत्तर-पश्चिम की तरफ जाता था. लेकिन अब यह दक्षिण-पूर्व की तरफ मुड़ गया और दूसरी तरफ स्थित सुमजुर्कचांकी ग्लेशियर (Sumzurkchanki Glacier) से मिल गया. कुठी यांक्ती घाटी (Kuthi Yankti Valley) काली गंगा नदी (Kali Ganga River) की शाखा है. (फोटोः जियोसाइंसेस जर्नल)

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दोनों ग्लेशियरों का मिलना टेक्टोनिक फोर्स और जलवायु परिवर्तन की वजह से हुआ है. ये दोनों ग्लेशियर 6322 मीटर से लेकर 5508 मीटर ऊंचे पहाड़ों से घिरे हैं. यह हिमालय के इलाके में की गई अपने तरह की पहली स्टडी है. इसके जरिए हम ग्लेशियर और टेक्टोनिक हलचल के आपसी संबंध को समझ सकते हैं. ग्लेशियरों का आपस में जुड़ना करीब 19 हजार से लेकर 24 हजार साल पुरानी है. यह वह समय है जिसे लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमा (Last Glacial Maxima) कहा जाता है. इसके बाद आता है होलोसीन (Holocene) यानी 10 हजार साल से लेकर अब तक का समय. इसी समय के बीच इन अनजान ग्लेशियर ने अपना रास्ता बदल लिया. (फोटोः जियोसाइंसेस जर्नल)

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काली गंगा नदी (Kali Ganga River) की शाखा कुठी यांक्ती नदी (Kuthi Yankti River) को पिथौरागढ़ के इलाके में स्थित 88 ग्लेशियरों से पानी मिलता है. ये ग्लेशियर करीब 130 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं. यहां पर 9 क्यूबिक किलोमीटर बर्फ जमा है. असल में यह इलाका ट्रांस हिमाद्री डिटैचमेंट फॉल्ट (Trans Himadri Detachment Fault) में स्थित है, यहां टेक्टोनिक हलचलें ज्यादा होती हैं. यानी यहां पर भूकंपीय गतिविधियां काफी ज्यादा होती हैं. आज भी इस इलाके में काफी ज्यादा भूकंपीय गतिविधियां होती हैं. फॉल्ट्स, प्लेट्स और थ्रस्ट्स सक्रिय रहता है. यह इलाका आज भी सबसे ज्यादा एवलांच यानी हिमस्खलन और टेक्टोनिक दबाव वाला क्षेत्र है. (फोटोः जियोसाइंसेज जर्नल)

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जहां एक तरफ पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है. वहीं उत्तराखंड का कुमाऊं (Kumaun) इलाका टेक्टोनिक गतिविधियों के मामले में ज्यादा सक्रिय है. इस ग्लेशियर के रास्ते के बदलाव का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में बताया है कि कैसे अनजान ग्लेशियर पिघला तो अपने पीछे काफी बड़ा मोरेन (Moraine) और कचरा छोड़ दिया. धीरे-धीरे करके यह कचरा मजबूत और सख्त होता चला गया. जब ग्लेशियर ने दोबारा इस सख्त कचरे की दीवार को पार करना चाहा तो कर नहीं पाया. उसके बाद इस ग्लेशियर ने अपना रास्ता बदल लिया. वह दूसरी तरफ मौजूद  सुमजुर्कचांकी ग्लेशियर (Sumzurkchanki Glacier) से जा मिला. (फोटोः जियोसाइंसेस जर्नल)

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हाल के बरसों में उत्तराखंड ने कई हिमालयी आपदाओं को बर्दाश्त किया है. साल 2013 में चोराबारी लेक फटने से केदारनाथ आपदा, इसके बाद कई बार भूस्खलन, तेज बारिश, अचानक बाढ़ आते रहे. इस साल फरवरी में चमोली जिले के जोशीमठ इलाके में ऋषिगंगा नदीं में आई अचानक बाढ़ से 200 लोग मारे गए और न जाने कितने लापता हैं. इस बात में कोई शक नहीं कि दोनों ग्लेशियरों के मिलने की घटना काफी पुरानी है. लेकिन यह इलाका इतना ज्यादा संवेदनशील है कि यहां किसी प्राकृतिक हादसे की आशंका करना मुश्किल हैं. यह भी कहना मुश्किल है कि ऐसी आफतें कब आएंगी. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी) 

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