इस समय के इंसान का शरीर और दिमाग करीब 3 लाख साल पहले विकसित हुआ था. हमारी प्रजाति को होमो सैपियंस कहते हैं. लाखों साल पहले जो पहला होमो सैपिंयस था, उसकी तुलना में हमारा दिमाग तीन गुना ज्यादा बड़ा है. हमारा शरीर लगातार बढ़ रहा है, अंगों का आकार भी. लेकिन इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ा. इंसानों ने जलवायु को बदल दिया. अब जलवायु परिवर्तन का असर इंसान के शरीर, दिमाग समेत अन्य अंगों के आकार पर पड़ रहा है. एक नई स्टडी में यह खुलासा हुआ है. (फोटोःगेटी)
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का शरीर, दिमाग और अन्य अंगों पर होने वाले असर को समझने के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) और जर्मनी टुबिनजेन यूनिवर्सिटी (Tübingen University) के शोधकर्ताओं ने 300 इंसानी जीवाश्मों का अध्ययन किया. ये जीवाश्म काफी पुराने हैं. साथ ही क्लाइमेट मॉडल्स बनाकर उनके साथ इनके विकास का तुलनात्मक विश्लेषण भी किया गया. (फोटोःगेटी)
वैज्ञानिकों ने पिछले 10 लाख सालों में हुए जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले प्रभावों का अध्ययन कर रहे थे. इसमें बढ़ता तापमान, बाढ़, मूसलाधार बारिश, बर्फबारी समेत अन्य प्राकृतिक वजहों को शामिल किया गया है. इनकी वजह से इंसान के शारीरिक आकार पर क्या असर पड़ा उसका विश्लेषण किया गया. यह स्टडी प्रसिद्ध वैज्ञानिक जर्नल नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित हुई है. (फोटोःगेटी)
इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि शरीर के आकार और तापमान के बीच सीधा संबंध है. अगर लगातार जलवायु में परिवर्तन होता रहा, तो आपके शरीर और उसके अंगों के आकार पर भी असर पड़ेगा. टुबिनजेन यूनिवर्सिटी (Tübingen University) के रिसर्चर डॉ. मैन्युअल विल ने कहा कि जितना तापमान कम होगा, इंसान का शरीर उतना बड़ा होगा. उसके अंग भी बड़े होंगे. (फोटोःगेटी)
डॉ. मैन्युअल कहते हैं कि आप जितने बड़े होंगे आपके शरीर का आकार भी बढ़ेगा. आप ज्यादा तापमान भी प्रोड्यूस करेंगे लेकिन खोएंगे कम. क्योंकि आपके शरीर का सरफेस उसी दर से नहीं बढ़ेगा. जलवायु और बॉडी मास का संबंध बर्गमैन रूल (Bergmann's Rule) के मुताबिक चलता है. इसके अनुसार सर्द इलाकों में ज्यादा वजन वाले शरीर होते हैं, जबकि, गर्म वातावरण वाले इलाकों में कम वजन वाले जीव. (फोटोःगेटी)
उदाहरण के तौर पर पोलर बीयर (Polar Bear) जो आर्कटिक और अंटार्कटिका के इलाकों में रहते हैं, वो गर्म इलाके में रहने वाले भालुओं की तुलना में बड़े और ज्यादा वजनी होते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ मिलनर सेंटर फॉर इवोल्यूनश के रिसर्चर डॉ. निक लॉन्गरिच कहते हैं कि इंसानों का क्रमानुगत विकास भी इन्हीं जानवरों जैसा ही है. आप इससे हैरान नहीं हो सकते, यह प्रकृति का नियम है. इंसानों के साथ भी गर्मी हासिल करने या उसे खोने का वैसा ही तरीका है, जैसा इन जानवरों के साथ होता है. (फोटोःगेटी)
जलवायु परिवर्तन का असर शरीर के अंगों पर ज्यादा होता है. दिमाग पर इसका असर कम होता है. यानी जलवायु परिवर्तन से दिमाग के आकार में उतना बदलाव नहीं आता, जितना की शरीर और उसके अन्य अंगों के आकार में आता है. 4.30 लाख साल पहले मध्य-प्लिस्टोसीन होमो सैपियंस का दिमाग 1436.5 घन सेंटीमीटर आकार का था. 55 हजार साल पहले निएंडरथल मानव का दिमाग 1,747 घन सेंटीमीटर का हो गया. यानी आकार बढ़ रहा था. साथ ही धरती का तापमान भी. 29 हजार साल पहले होमो सैपियंस का दिमाग 1880 घन सेंटीमीटर का हो गया. यानी बदलते जलवायु के साथ दिमाग तो बढ़ा, लेकिन शरीर के आकार में बदलाव आया. (फोटोःगेटी)
इस स्टडी को करने वाली एक अन्य रिसर्चर प्रो. आंद्रिया मानिका ने बताया कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया यह दिखाती है कि शरीर और दिमाग का आकार अलग-अलग परिस्थितियों में अपने आकार बदलता है. दोनों अलग-अलग तरीके से व्यवहार करते हैं. शरीर का आकार सर्द इलाकों में बढ़ता है. गर्म इलाकों में घटता है. लेकिन दिमाग पर इसका असर कम होता है. ये सारा अलग-अलग वजहों से होता है. (फोटोःगेटी)
डॉ. मैन्युअल विल कहते हैं कि जलवायु जितना ज्यादा स्थिर रहेगा, दिमाग का आकार उतना ही बढ़ेगा. क्योंकि आपको बड़ा दिमाग संभालने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. ज्यादा ऊर्जा आपको सही खाने से मिलेगी. सही खाने के लिए सही फसल का होना जरूरी है. सही फसल के लिए मौसम सही होना चाहिए. जो कि जलवायु पर निर्भर करता है. अगर जलवायु बदलेगा तो ये पूरा क्रम बिखर जाएगा. असर आपके शरीर और दिमाग पर पड़ेगा. (फोटोःगेटी)
वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान यह भी देखा कि कैसे जलवायु परिवर्तन की वजह से इंसानों के व्यवहारिक बदलाव आते हैं. गर्म इलाकों के लोग ज्यादा आक्रामक होते हैं, बजाय सर्द इलाकों में रहने वालों की तुलना में. हालांकि यह सीधे तौर पर साबित नहीं हो पाया लेकिन अपरोक्ष रूप से इसक बात के भी सबूत मिलते हैं कि मौसम के बदलाव के साथ-साथ इंसान का शारीरिक और मानसिक व्यवहार भी बदलता है. (फोटोःगेटी)
डॉ. निक लॉन्गरिच कहते हैं कि शरीर और दिमाग के आकार को लेकर सिर्फ जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार नहीं है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इंसानी शरीर के क्रमानुगत विकास के लिए प्रतियोगिता, सामाजिकता, सांस्कृतिक परिवेश और तकनीकी डेवलपमेंट भी जरूरी रहे हैं. इन्हें लेकर अभी तक बहुत ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है. इन पर रिसर्च करने की जरूरत है. असल में पर्यावरण, जलवायु के साथ इन विषयों को जोड़कर भी इंसान के विकास की स्टडी की जानी चाहिए. (फोटोःगेटी)
डॉ. मैन्युअल विल कहते हैं कि क्रमानुगत विकास (Evolution) एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. इसे चलाने के लिए कई अलग-अलग तरह के फैक्टर्स काम करते हैं. इनका बड़ा असर लाखों सालों में दिखता है. हम आसानी से इन बदलावों को रियल टाइम में नहीं देख सकते. इसके लिए लाखों सालों के डेटा का विश्लेषण करना होता है. लेकिन यह बात तो पुख्ता है कि जलवायु परिवर्तन जितना ज्यादा होगा, इंसान के शरीर पर उसका असर भी ज्यादा होगा. (फोटोःगेटी)