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साइंस न्यूज़

अंटार्कटिका के नीचे Icefish के 6 करोड़ घोंसले मिले, इनमें नहीं होता हीमोग्लोबिन

aajtak.in
  • बर्लिन,
  • 14 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 5:32 PM IST
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अंटार्कटिका में बर्फीली मछली यानी आइसफिश (Icefish) के 6 करोड़ घोंसले मिले हैं. ये घोंसले अंटार्कटिका के वेडेल सागर (Weddell Sea) की तलहटी में खोजे गए. इतनी मात्रा में इन मछलियों की संख्या और घोंसले देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए. क्योंकि इससे पहले कभी भी इतनी ज्यादा मात्रा में किसी भी मछली के घरों को नहीं देखा गया था. यह किसी भी मछली की दुनिया में सबसे बड़ा ब्रीडिंग ग्राउंड यानी प्रजनन केंद्र माना जा रहा है. (फोटोः AWI OFOBS team)

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हुआ यूं कि अल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट ऑटन पर्सर जर्मन आइसब्रेकर जहाज RV Polarstern पर अंटार्कटिका में व्हेल मछलियों पर स्टडी कर रहे थे. तभी उनके ग्रैजुएट स्टूडेंट लिलियन बोरिंगर ने ने अपने कैमरा फीड में कुछ अजीबो-गरीब नजारा देखा. उन्होंने ऑटन को ब्रिज पर बुलाया. जब ऑटन ने कैमरे की स्क्रीन को देखा तो हैरान रह गए, क्योंकि जहाज के नीचे करोड़ों की संख्या में आइसफिश (Icefish) के घोंसले दिख रहे थे. (फोटोः AWI OFOBS team)

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ऑटन और लिलियन ओशन फ्लोर ऑब्जरवेशन एंड बैथीमेट्री सिस्टम (OFOBS) की स्क्रीन पर लाइव फीड देख रहे थे. यह कैमरा जहाज के नीचे लगा हुआ था. इन दोनों ने देखा कि कैसे आइसफिश (Icefish) ने हर 19 इंच की दूरी पर अपना घोंसला बना रखा है. ये नजारा इन्होंने करीब 240 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ देखा. कैमरा बस आइसब्रेकर के साथ घूमता जा रहा था और इन खूबसूरत प्राचीन मछलियों का वीडियो बनाता जा रहा था. हर जगह सिर्फ आइसफिश (Icefish) थीं. (फोटोः गेटी)

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आइसफिश (Icefish) के घोंसले सागर की तलहटी की मिट्टी में कटोरे के आकार के बने दिखाई दे रहे थे. इन मछलियों को वैज्ञानिक भाषा में नोटोथेनिऑयड आइसफिश (Neopagetopsis ionah) कहते हैं. ये आमतौर पर बेहद सर्द दक्षिणी समुद्री इलाकों में रहती हैं. ये इकलौती ऐसी कशेरुकीय यानी वर्टिब्रेट जीव हैं, जिनके खून में हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नहीं पाया जाता. (फोटोः AWI OFOBS team)

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आइसफिश (Icefish) के खून में हीमोग्लोबिन नहीं होने की वजह से इनका खून सफेद रंग का होता है. इसलिए इन्हें व्हाइट ब्लडेड भी कहा जाता है. ऑटन ने कहा कि अगले दिन अल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट को फोन करके यह जानकारी दी कि हमने क्या खोजा है. उन्हें वीडियो लिंक भेजा. इसके बाद इंस्टीट्यूट ने और वीडियो बनाने व रिसर्च करने को कहा. ताकि ज्यादा से ज्यादा जानकारी जमा की जा सके.  (फोटोः गेटी)

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ऑटन ने बताया कि आइसफिश (Icefish) आमतौर पर समूहों में अपने घोंसला बनाती हैं. एक जगह पर कम से कम 40 घोंसले बनते हैं. जब हम 240 वर्ग किलोमीटर इलाके में घूमे तो हमने पाया कि यहां पर करीब 6 करोड़ घोंसले हैं. इससे पहले दुनियाभर के किसी भी वैज्ञानिक ने ऐसा नजारा नहीं देखा था. एक आइसफिश एक बार में कम से कम 1700 अंडे देती है. (फोटोः AWI OFOBS team)

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ऑटन ने बताया कि ये मछलियां जिन इलाकों में अपना घोंसला बना कर रह रही थीं, वहां का तापमान अन्य समुद्री इलाकों की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था. इसलिए ऑटन और लिलियन ने यह स्टडी भी करनी शुरु की कि इस इलाके में समुद्र की तलहटी में कार्बन का बहाव कैसा है. साथ ही यहां पर और किस तरह के जीव इन आइसफिश (Icefish) के साथ रहते हैं.  (फोटोः गेटी)

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जांच में पता चला कि यहां पर बेहद सूक्ष्म जूप्लैंक्टॉन्स रहते हैं. ये ज्यादातर घोंसलों के आसपास मिलते हैं. जहां पर मछलियां अंडे सेती हैं. साथ ही जूप्लैंक्टॉन्स को खाती भी हैं. हालांकि, ऑटन और लिलियन को लगता है कि उन्होंने जितने बड़े इलाके की जांच की है, उससे कहीं ज्यादा बड़े इलाके में इन मछलियों ने अपने घोंसले बनाए हुए हैं. अब इन लोगों का प्लान है कि ये दोबारा अप्रैल 2022 में वेडेल सागर में वापस जाएंगे, ताकि फिर से इन आइसफिश (Icefish) की स्टडी कर सके.  (फोटोः गेटी)

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यह इलाका छोड़ने से पहले ऑटन और लिलियन ने समुद्र की तलहटी में दो कैमरे छोड़ दिये हैं, जो इन आइसफिश (Icefish) की रिकॉर्डिंग करते रहेंगे. इनका लाइव फीड ऑटन को जर्मनी में मिलता रहेगा. इन मछलियों की खोज के बारे में हाल ही में करेंट बायोलॉजी में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)

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