भारत के दक्षिणी राज्य केरल में एक मछुआरा बस्ती चेल्लानम, जिसमें करीब 40,000 लोग रहते हैं, जलवायु परिवर्तन से होने वाली कई मौसमी घटनाओं के डर के साथ जी रहे हैं. उन्हें चक्रवात, समुद्र के बढ़ते जलस्तर, बाढ़ और कटाव का डर है. भारत में करोड़ों लोग, समुद्र तट के किनारे रहते हैं और मौसम से जुड़ी इन खास घटनाओं से उनका सीधा सामना होता है. (Photo: AP)
भारत और अन्य देश जो समुद्र के बढ़ते जलस्तर और समुद्री तूफानों से बुरी तरह प्रभावित हैं, वहां इससे निपटने के लिए एक सामान्य तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. वह है समुद्र की दीवारें बनाना. जबकि वैज्ञानिकों और क्लाइमेट एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि ऐसी संरचनाएं बहुत ज़्यादा सुरक्षा नहीं दे सकतीं. (Photo: AP)
2017 में, अरब सागर में बने ताउक्ताए और ओखी (Tauktae and Ockhi) जैसे खतरनाक उष्णकटिबंधीय तूफानों (Tropical cyclones) ने गांव को तबाह कर दिया था और तट से जुड़ी परेशानियों को बढ़ा दिया था. सालों से, चेल्लानम और आसपास के इलाकों के अलग-अलग हिस्सों में छोटी समुद्री दीवारें बनाई गईं और कुछ और तरीकों का एक पैचवर्क तैयार किया गया, ताकि विनाश कम हो. (Photo: AP)
चेल्लानम की ग्राम परिषद के पूर्व अध्यक्ष के एल जोसेफ के मुताबिक, हर साल कम से कम 10,000-12,000 लोग तटीय कटाव और ऊंची लहरों से जुड़े मामलों से प्रभावित होते हैं. चेल्लानम में घरों और लोगों की सुरक्षा के लिए और भी तरीके अपनाए, जैसे कि कुछ साल पहले जियोट्यूब से जुड़ा एक बड़ा प्रोजेक्ट. (Photo: AP)
इस प्रोजेक्ट के तहत, समुद्र तट के किनारे, पॉलिमर से बने ट्यूब को रेत से भर दिया गया था, ताकि वह लहरों के लिए रुकावट की तरह काम करे. लेकिन ट्यूब के कुछ हिस्से टूट गए और समुद्र उन्हें अपने साथ बहा ले गया. इस प्रोजेक्ट ने काम नहीं किया. (Photo: AP)
कम सुरक्षा देना ही किसी तरह के समुद्री बैरियर का एकमात्र नकारात्मक पहलू नहीं है. लहरों को नियंत्रण में रखने के लिए एक संरचना खड़ी करने का सीधा सा मतलब है कि पानी, वापस समुद्र में धकेल दिया जाना. ये पानी फिर कहीं और जाएगा और शायद आस-पास की तटरेखाओं के बाकी हिस्सों में ऊंची लहरें पैदा करेगा, जहां हो सकता है कि समुद्री दीवारें न हों. समुद्री दीवारें भी समुद्र तट क्षेत्र को सीमित कर देती हैं या पूरी तरह से हटा देती हैं. चेल्लानम के मछुआरों को पहले वहां जाना पड़ता है, जहां वे अपनी नावें लगाते हैं. (Photo: AP)
केरल के कोस्टल प्रोटेक्शन एक्सपर्ट जोसेफ मैथ्यू का कहना है कि समुद्र तट के नुकसान से चेल्लानम का ईकोसिस्टम बाधित होगा. जैसे , समुद्र की दीवार से टकराने वाली लहरें दीवार के सिरों की ओर धकेल दी जाएंगी, जिससे उन जगहों में ऊंची लगरें उठेंगी और इस तरह कटाव होगा. इससे समुद्र तट के जीवों का भई ईकोसिस्टम प्रभावित होगा. जहां लहरें लगातार टूटती हैं, वहां जीव ज़िंदा नहीं रह सकते. (Photo: AP)
सालों से, चेल्लानममुद्री दीवार के लोग तटों की रक्षा के लिए किसी ज़्यादा स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं. पिछले साल, राज्य के मुख्यमंत्री, पिनाराई विजयन ने एक नई तटीय सुरक्षा परियोजना का उद्घाटन किया था, जिसमें कंक्रीट से बनी समुद्री दीवारें बनाए जाने की योजना थी, जिन्हें टेट्रापोड कहा जाता है. (Photo: AP)
आज, कोच्चि से करीब 20 किलोमीटर दूर चेल्लानम समुद्र तट के पास, धूल भरे ग्रेनाइट और टेट्रापोड के ढेर, जिनका वजन 2,000 से 5,000 किलोग्राम के बीच है, टूटे हुए रास्तों और खाली जगहों पर पड़े हैं. छह टी-आकार के ग्रोइन्स की एक चेन पर भी काम चल रहा है. (Photo: AP)
चेल्लानम बंदरगाह से पुथेनथोडु समुद्र तट पर 7 किलोमीटर (4 मील) की दूरी में नई समुद्री दीवार के पहले चरण का ज़्यादातर काम पूरा हो गया है, जिससे फिलहाल यहां के लोग खुद को पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. जैसे ही शाम को सूरज ढलता है, बच्चे इन ग्रेनाइट की संरचनाओं पर चढ़ जाते हैं और टेट्रापोड्स के ऊपर बैठ जाते हैं. (Photo: AP)
तूफान से प्रभावित एक घर, समुद्र की दीवार से कुछ मीटर की दूरी पर खड़ा है, जो तूफानी लहरों, विस्थापन और राहत शिविरों के बाद के दु:खद परिणामों की हमेशा याद दिलाता रहता है. तूफान के बाद कुछ लोग यहां से चले गए, लेकिन वे लोग जो अपने घरों को छोड़ नहीं सकते और तट के किनारे रहकर ही काम कर सकते हैं, उनके लिए समुद्र की दीवार का बनना बहुत मायने रखता है. हालांकि ये समस्या का स्थायी हल नहीं है. (Photo: AP)