बरसों से एक विदेशी कंपनी भारतीय सेना की क्लाशनिकोव राइफल्स यानी AK सीरीज की बंदूकों को अपग्रेड करने का काम कर रही थी. अब उसे एक भारतीय कंपनी ने तगड़ी चुनौती दी है. अब भारतीय सेना की AK सीरीज की राइफलों को अपग्रेड करने का काम स्वदेशी कंपनी को मिला है. फिलहाल उसे कम मात्रा में बंदूकें अपग्रेड करने को दी जाएंगी, लेकिन भविष्य के लिए एक मिसाल बन गया है कि विदेशी कंपनियां भारत की छोटे हथियारों के मार्केट को कब्जा नहीं कर सकतीं. (फोटोः SSS Defence)
बेंगलुरु में स्थित SSS Defence कंपनी ने इजरायल की FAB Defence कंपनी को पिछाड़कर भारतीय सेना के AK सीरीज की राइफलों को अपग्रेड करने का एल-1 हासिल कर लिया है. जल्द ही उसे कॉन्ट्रैक्ट भी मिल जाएगा. फिलहाल तो उसे दक्षिण-पश्चिम कमांड की दो दर्जन AK-47 असॉल्ट राइफलों को अपग्रेड करने का काम दिया जा सकता है. अगर काम शानदार रहा तो उसके बाद और भी ऑर्डर्स मिल सकते हैं. (फोटोः SSS Defence)
कंपनी के उच्च पदस्थ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर aajtak.in को बताया कि उन्होंने यह डील कैसे हासिल की? अधिकारी ने कहा कि भारत के हथियार बाजार में FAB Defence का बरसों से कब्जा था. लेकिन हर बार वो एक ही प्रोडक्ट लेकर आता था. उसे इससे मतलब नहीं था कि यूजर की जरूरत क्या है. कीमत कैसी चाहिए उसे. हमने इस सभी बातों का ख्याल रखा. हमने कम कीमत में ज्यादा फीचर्स और सुविधाएं ऑफर की. (फोटोः SSS Defence)
अधिकारी ने कहा कि आमतौर पर मिलिट्री स्टैंडर्ड के अनुसार असॉल्ट राइफल को भारत में रग्ड ही पसंद किया जाता है. यानी वो मजबूत धातु, लकड़ी या एलॉय से बना होगा. न कि उसमें प्लास्टिक लगाया जाए. फैब डिफेंस के राइफलों में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. उनको डील मिलने से नुकसान देश का होता है. क्योंकि सारा सामान विदेशी लगता है. शिपिंग, हैंडलिंग और कस्टम ड्यूटी से कीमतें और बढ़ जाती हैं. हमारे साथ ऐसा नहीं है. हमारे गन्स एयरोफ्लाइट एलॉय से बने हैं. वो हल्के होने के साथ-साथ मजबूत भी होते हैं. (फोटोः SSS Defence)
SSS Defence के अधिकारी ने बताया कि हमारे वेपन पूरी तरह से स्वदेशी हैं. सारे कलपुर्जे देश में ही बने हैं. हमारे बंदूकों को लेकर किसी तरह की कस्टम ड्यूटी नहीं देनी होती. शिपिंग और हैंडलिंग की कीमत भी कम हो जाती है. ऐसे में हमारे देश में बनी बंदूक क्यों नहीं विदेशी बंदूकों को टक्कर दे सकती है. हमने तो अपने अपग्रेडेशन में राइफल में फ्लैश हाइडर (Flash Hider) भी दे रहे हैं, वो भी बिल्कुल मुफ्त. सेना वो नहीं चाहती थी लेकिन हम दे रहे हैं, ताकि वो देख सके कि हमारी तकनीक अच्छी है. (फोटोः SSS Defence)
अधिकारी ने बताया कि जब असॉल्ट राइफल चलती है तो उसमें तेज रोशनी (Flash) निकलती है. ये रोशनी गन पाउडर यानी बारूद और अन्य धातुओं में रगड़ की वजह से निकलने वाले गैसों से पैदा होती है. रात में इस रोशनी को देखकर दुश्मन हमला कर देता है. इससे हमारे जवानों की जान को खतरा रहता है. इसलिए हम फ्लैश हाइडर देंगे जो राइफल से निकलने वाली रोशनी को बेहद कम या खत्म कर देगा. इससे बंदूक कहां से चली पता ही नहीं चलेगा. इससे बुलेट का रिकॉयल भी कम हो जाएगा. (फोटोः SSS Defence)
Grateful for new opportunities and a chance to bring only the best for our soldiers. 🙏🏼🇮🇳 #AatmanirbharBharat https://t.co/ifCuWFFvJJ
SSS डिफेंस के अधिकारी ने बताया कि हम एके-47 में जो अपग्रेड कर रहे हैं, उनमें फ्लैशलाइट्स, लेजर साइट्स, फ्लैश हाइडर, डस्ट कवर, हैंड गार्ड, कई तरह के ग्रिप्स शामिल हैं. इससे एके-47 और ज्यादा घातक हो जाएगी. की घातकता और खतरनाक हो जाएगी. इस कंपनी का रेट्रोफिट सिस्टम दुनिया के किसी भी एके सीरीज के राइफल्स के साथ जुड़ सकता है. चाहे वो एके सीरीज राइफल रूसी हो, रोमानियन हो, बुल्गैरियन हो, पोलिश हो या चेक रिपब्लिक का हो. (फोटोः SSS Defence)
अधिकारी ने कहा कि देश में बने हथियारों से रक्षा क्षेत्र में बचत होगी. क्यों सरकार या देश के लोगों का पैसा उस काम के लिए बाहर जाए, जो काम देश में ही हो सकता है. भारतीय हथियार कंपनिया लगातार खुद को अपग्रेड कर रही हैं. सरकार भी इस काम में मदद कर रही है. (फोटोः SSS Defence)
आपको बता दें कि भारत सरकार का इस साल घरेलू हथियार बजट 70,221 करोड़ रुपये का है. यानी मिलिट्री बजट का 63 फीसदी हिस्सा. पिछली साल रक्षा मंत्रालय ने 51,000 करोड़ रुपये इस काम के लिए लगाए थे. यानी भारत सरकार स्वदेशी हथियार और रक्षा कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. अगर देश की कंपनियों से डील होती है तो यह सस्ती पड़ती है. फिर देश का पैसा देश के ही लोगों के काम आता है. (फोटोः SSS Defence)