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साइंस न्यूज़

लॉकडाउन ने भारतीय घड़ियालों को दिया जीवनदान, ओडिशा में इनकी आबादी बढ़ी

मोहम्मद सूफ़ियान
  • हैदराबाद,
  • 22 जून 2021,
  • अपडेटेड 8:35 PM IST
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46 सालों के बाद भारतीय घड़ियालों को IUCN की लाल सूची से हटाकर हरी सूची में डालने की कोशिश हो सकती है कि पूरी हो जाए. क्योंकि हाल ही ओडिशा में नए घड़ियालों का जन्म हुआ है. जो भारत के लिए जीव संरक्षण क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है. द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) की इस लाल सूची में घड़ियाल को 1975 में डाला गया था. साल 2014 से हरी सूची निकलनी शुरु हुई. फिर ओडिशा की सरकार और केंद्र सरकार के संरक्षण कार्यक्रम के तहत घड़ियालों को संरक्षित करने का प्रयास किया जाने लगा. जो जल्द ही पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है. 

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ओडिशा के बड़े कंजरवेशनिस्ट डॉ. लाला एके सिंह ने कहा कि अब हम लाल सूची से घड़ियालों को निकालकर हरी सूची में डालने का प्रयास करेंगे. उन्हें मॉनिटर करना होगा. साथ ही घड़ियालों को सुरक्षित रखना होगा. कई विफल प्रयासों के बाद ओडिशा के सतकोशिया में घड़ियालों के बच्चे पैदा हुए. भारतीय घड़ियालों को गैवियालिस गैंगेटिकस (Gavialis Gangeticus) कहते हैं. साल 1975 तिकरापाड़ा में घड़ियाल रिसर्च एंड कंजरवेशन यूनिट (GRACU) की शुरुआत हुई थी. यह सतकोशिया जॉर्ज सेंचुरी और महानदी के पास स्थित है. 

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पिछले 46 सालों में चंबल, गिरवा और गंडक नदियों में ही घड़ियालों के संरक्षण का काम होता आ रहा है. नेपाल के नारायणी, काली, करनाली और बांग्लादेश के कुछ नदियों में ये काम किया जा रहा है. भूटान ने भी इसमें रुचि दिखाई है. घड़ियालों को बचाने की सफलता का पता  इससे चलता है कि कैसे मई 2021 में महानदी के सतकोशिया जॉर्ज में 28 घड़ियाल पैदा हुए. घड़ियाल को गंभीर रूप से खत्म हो रही प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया था. ये मगरमच्छों से जेनेटिकली कमजोर होते हैं. इसलिए इन्हें बचाने का प्रयास तेज किया गया था. 

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इनके रिहायशी इलाकों पर इंसानों का कब्जा, ढांचागत विकास, शिकार, आबादी का कम होना और मछलियों का शिकार इनके लिए मुसीबत बनता जा रहा था. ओडिशा भारत में इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर साफ पानी के घड़ियाल, मगर और नमकीन पानी मगरमच्छ रहते हैं. महानदी का दक्षिणी इलाका घड़ियालों के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है. यहीं पर 1975 में घड़ियालों के संरक्षण का काम शुरु किया गया था. 21वीं सदी में हर प्रजाति को हर जगह पर सुरक्षित या संरक्षित नहीं रखा जा सकता था. 

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क्रोकोडाइल इंस्टीट्यूट हैदराबाद के कंजरवेशनिस्ट डॉ. लाला एके सिंह ने 1975 से घड़ियालों को बचाने के प्रोजेक्ट में लगे हैं. उनकी निगरानी में ही सतकोशिया फॉरेस्ट रेंज में घड़ियाल हैचिंग की शुरुआत की गई थी. मकसद था घड़ियालों की कम होती आबादी को बचाना. उनके अंडे जमा करना, इनक्यूबेशन करना, युवा घड़ियालों को सुरक्षित रखना और पालना. जैसे ही ये घड़ियाल 3-4 फीट के हो जाते हैं, उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ना ताकि वो अपनी सही जिंदगी जी सकें. हमें घड़ियाल के पहले अंडों का समूह बिहार की गंडक नदी से मिला था. हम करीब 430 हैचलिंग्स लेकर आए थे.  
 

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लाला एके सिंह ने बताया कि 1977 में हमने महानदी में युवा घड़ियालों को छोड़ा. 1990 तक 700 घड़ियाल महानदी में छोड़े गए. यहां उन्हें सिर्फ मगरमच्छ और इंसानों से खतरा था. बाकी किसी तरह का कोई रिस्क नहीं था. घड़ियाल सबसे पुराना क्रोकोडाइल है. यह मगर की प्रजाति से जुड़ा है. लेकिन काफी ज्यादा संवेदनशील होता है. घड़ियालों को रहने के लिए नदियों की शाखाएं और मॉनसूनी नदियां ज्यादा बेहतर होती हैं. क्योंकि ये संघर्ष से बचते हैं. घड़ियालों के लिए भारत में सबसे बेहतरीन जगह चंबल नदी है. 

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डॉ. सिंह ने बताया कि घड़ियालों के अंडों को खोजने और जमा करने में मुंडा आदिवासियों की मदद भी ली जाती है. साथ ही स्थानीय मछुआरे भी हमारी मदद करते हैं. हमने इन लोगों को खाकी वर्दी दी है. साथ ही इन्हें घड़ियाल गार्ड का पद भी दिया है. ये घड़ियालों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखते हैं. शिकारियों से बचाते हैं. अंडों को अन्य जीवों से सुरक्षित करने का प्रयास करते हैं. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन ने घड़ियालों के लिए सर्वोत्तम माहौल बनाया. न कोई शिकार हुआ, न ही उन्हें कोई परेशानी. इसलिए घड़ियालों की आबादी बढ़ पाई है. 

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