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साइंस न्यूज़

ISRO के सबसे छोटे SSLV रॉकेट की सफल लॉन्चिंग, देश को मिली महंगे लॉन्च से Azaadi

ऋचीक मिश्रा
  • श्रीहरिकोटा,
  • 10 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:17 AM IST
ISRO SSLV-D2 Launch
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 10 फरवरी 2023 की सुबह 9.18 बजे अपने सबसे छोटे रॉकेट SSLV को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया. इसका नाम है स्मॉल स्टैलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV). इसमें अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट EOS-07 भेजा जा रहा है. यह 156.3 किलोग्राम का है. (सभी फोटोः ISRO)

ISRO SSLV-D2 Launch
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अमेरिका का 10.2 किलोग्राम का जानुस-1 (Janus-1) सैटेलाइट भी इसमें जा रहा है. इसके अलावा भारतीय स्पेस कंपनी स्पेसकिड्स का AzaadiSAT-2 जा रहा है. जो करीब 8.7 किलोग्राम का है. आजादीसैट को देश के ग्रामीण इलाकों से आने वाली 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया है. इसमें स्पेसकिड्ज के वैज्ञानिकों ने उनकी मदद की है. (फोटोः स्पेसकिड्ज)

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इससे पहले पिछली साल 7 अगस्त को इसी रॉकेट से दो सैटेलाइट छोड़े गए थे. ये थे EOS-02 और AzaadiSAT थे. लेकिन आखिरी स्टेज में एक्सेलेरोमीटर में गड़बड़ी होने की वजह से दोनों गलत ऑर्बिट में पहुंच गए थे. लेकिन पहली बार इस रॉकेट की लॉन्चिंग सफल थी.  

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पिछले लॉन्च में हुई गड़बड़ी को लेकर इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा था कि सिर्फ दो सेकेंड की गड़बड़ी की वजह से रॉकेट ने अपने साथ ले गए सैटेलाइट्स को 356 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट के बजाय 356x76 किलोमीटर के अंडाकार ऑर्बिट में डाल दिया था.  

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एसएसएलवी का इस्तेमाल छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग के लिए होता है. यह एक स्मॉल-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है. इसके जरिए धरती की निचली कक्षा में 500 KG तक के सैटेलाइट्स को निचली कक्षा यानी 500 किलोमीटर से नीचे या फिर 300 किलोग्राम के सैटेलाइट्स को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में भेज सकते हैं. इस ऑर्बिट की ऊंचाई 500 KM के ऊपर होती है. 

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SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. SSLV का वजन 120 टन है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है. 

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फिलहाल SSLV को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से छोड़ा गया है. इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बनाया जा रहा है. तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट बन रहा है. फिर एसएसएलवी की लॉन्चिंग वहीं से होगी. 

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SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी के बनने का इंतजार करना पड़ता था. वो महंगा भी पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके भेजना होता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है. इसलिए ISRO ने यह रॉकेट बनाया.  SSLV रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है.  

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