कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए इस समय सबसे कारगर दवाइयों में से एक है आइवरमेक्टिन (Ivermectin). कोविड-19 के इलाज के लिए इस दवा के समर्थन में एक बड़े वैज्ञानिक ने रिसर्च की थी. उसकी क्षमता और ताकत का ब्योरा दिया था. दवा काम भी कर रही है. बहुत से लोग इस दवा से ठीक भी हो रहे हैं. लेकिन साइंटिस्ट की रिसर्च रिपोर्ट को साइंटिफिर रिव्यू वेबसाइट से हटा दिया गया है. आइवरमेक्टिन का समर्थन करने वाले वाले साइंटिस्ट पर नैतिकता के नियम तोड़ने का आरोप है. इसके बाद से वैज्ञानिकों के दो धड़ों के बीच विवाद छिड़ गया है. (फोटोःगेटी)
आइवरमेक्टिन (Ivermectin) को लेकर आरोप लगाया जा रहा है कि इस दवा का समर्थन राइटविंग के लोग कर रहे हैं. मिस्र के बेन्हा यूनिवर्सिटी के डॉ. अहमद एल्गाजार ने आइवरमेक्टिन पर स्टडी की थी. उन्होंने अपनी रिसर्च रिपोर्ट को पिछले साल नवंबर में रिसर्च स्क्वायर वेबसाइट पर प्रकाशित किया था. जिसमें उन्होंने बताया था कि यह दवा पैरासाइट जैसे कीड़े और सिर के जुओं को मारने के काम आती है, लेकिन यह कोरोना के खिलाफ भी प्रभावी क्षमता और सुरक्षा रखती है. (फोटोःगेटी)
डॉ. अहमद एल्गाजार बेन्हा मेडिकल जर्नल के चीफ एडिटर हैं. साथ ही एडिटोरियल बोर्ड मेंबर हैं. कुछ वैज्ञानिक ये आरोप लगा रहे हैं कि डॉक्टर अहमद ने आइवरमेक्टिन (Ivermectin) के समर्थन में लोगों को प्रभावित किया. इन्होंने जो स्टडी की वह नैतिकता के आधार पर सही नहीं है. इसमें बताया गया था कि जिन लोगों ने कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में ही आइवरमेक्टिन (Ivermectin) दवा ली, उन्हें बहुत ज्यादा फायदा हुआ. वो अस्पताल नहीं गए, जबकि, अस्पतालों में भर्ती लोगों को मौत से बचाया जा सका. (फोटोःगेटी)
डॉ. अहमद की स्टडी को गुरुवार यानी 15 जुलाई को रिसर्च स्क्वायर साइट से हटा लिया गया. जिसके बाद अब दुनिया भर में यह चिंता हो रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आइवरमेक्टिन (Ivermectin) कोरोना के इलाज के लिए सही दवा न हो. रिसर्च स्क्वायर ने स्टडी हटाने की वजह स्पष्ट नहीं की है. लंदन में एक मेडिकस स्टूडेंट जैक लॉरेंस को सबसे पहले डॉ. अहमद की स्टडी में कुछ गड़बड़ मिली थी. (फोटोःगेटी)
जैक लॉरेंस ने इस स्टडी को तब पढ़ा जब उनके एक लेक्चरर ने असाइनमेंट के लिए डॉ. अहमद की स्टडी रिपोर्ट पढ़ने को कहा. जैक अपना पोस्ट ग्रैजुएशन कर रहे हैं. जैक को लगा कि डॉ. अहमद की रिसर्च स्टडी का इंट्रोडक्शन वाला हिस्सा पूरी तरह से कहीं से नकल किया गया है. यानी साहित्यिक चोरी (Plagiarised) है. उसे देखकर लगता है कि डॉ. अहमद ने आइवरमेक्टिन के बारे में किसी प्रेस रिलीज से सीधे एक पैराग्राफ उठाकर लगा दिया है. कुछ कीवर्ड बदल दिए हैं. एक जगह पर तो सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम को गलती से एक्सट्रीम इंटेंस रेस्पिरेटरी सिंड्रोम लिखा गया है. जो कि पूरी तरह से गलत और मजाकिया है. (फोटोःगेटी)
जैक ने जब और गहनता से जांच की तो उन्हें डॉ. अहमद की स्टडी रिपोर्ट के डेटा में गड़बड़ी दिखाई दी. जो डेटा दिया गया था वो स्टडी प्रोटकॉल के नियमों का पालन करता हुआ नहीं दिख रहा था. डॉ. अहमद एल्गाजार ने दावा किया था कि उन्होंने स्टडी में 18 से 80 साल के लोगों को शामिल किया है, जबकि, जैक को उसमें तीन ऐसे मरीजों का जिक्र मिला जो 18 साल से कम उम्र के हैं. (फोटोःगेटी)
जैक ने बताया कि डॉ. अहमद एल्गाजार की स्टडी में दावा किया गया था कि उन्होंने 8 जून और 20 सितंबर 2020 के बीच स्टडी की है. लेकिन रॉ डेटा के मुताबिक ज्यादातर मरीज जो अस्पतालों में भर्ती हुए और जिनकी मौत हुई वो 8 जून से पहले के केस थे. डेटा को बुरी तरह से फॉर्मैट किया गया था. एक मरीज तो अस्पताल ऐसी तारीख को डिस्चार्ज किया गया. जो कैलेंडर में कभी दिखा ही नहीं. ये तारीख है 31 जून 2020. (फोटोःगेटी)
डॉ. अहमद की स्टडी में बताया गया है कि 100 मरीजों में चार मरीजों की मौत स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट से हुई है. ये मरीज हल्के और मध्यम स्तर के संक्रमण से जूझ रहे थे. जबकि, जैक ने कहा कि ओरिजिनल डेटा जीरो है. वहीं जीरो वाला डेटा आइवरमेक्टिन (Ivermectin) के उपयोग के साथ दिखाया गया. जिन गंभीर मरीजों का इलाज आइवरमेक्टिन से किया गया उनमें से दो की मौत हो गई, जबकि रॉ डेटा दिखाता है कि ये संख्या चार थी. (फोटोःगेटी)
जैक लॉरेंस और द गार्जियन अखबार ने डॉ. अहमद एल्गाजार को इन सवालों की लिस्ट के साथ ईमेल भेजा. लेकिन डॉ. अहमद की तरफ से कोई जवाब नहीं है. उनकी यूनिवर्सिटी के प्रेस ऑफिस की तरफ से भी कोई जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद जैक लॉरेंस ने ऑस्ट्रेलियन क्रोनिक डिजीस एपिडेमियोलॉजिस्ट जिडियोन मिरोविट्ज काट्ज और स्वीडन में स्थित लिनियस यूनिवर्सिटी के डेटा एनालिस्ट निक ब्राउन से संपर्क किया. ताकि डॉ. अहमद के रिसर्च स्टडी के डेटा की जांच की जा सके. (फोटोःगेटी)
जिडियोन और निक ब्राउन ने आइवरमेक्टिन (Ivermectin) पर की गई डॉ. अहमद एल्गाजार की रिसर्च में गलतियों का पिटारा खोज निकाला. उनकी एक लिस्ट बनाई. जिसमें स्पष्ट तौर पर दिख रहा था कि साइंटिस्ट ने मरीजों के डेटा को रिपीट किया है. 79 मरीजों का डेटा क्लोन किया गया था. निक ब्राउन ने कहा कि डॉ. अहमद ने ये गलतियां जानबूझकर की गई है. डेटा के साथ इस तरह से छेड़छाड़ किया गया है, ताकि वो एकदम सही जैसी दिखाई दें. (फोटोःगेटी)
डॉ. अहमद एल्गाजार की आइवरमेक्टिन (Ivermectin) पर की गई स्टडी के आधार पर ही दुनिया भर में इस दवा को कोरोना के इलाज में शामिल किया गया था. लेकिन अब उनकी स्टडी में गलतियां दिखने के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिकों को इस दवा पर शक होने लगा है. क्योंकि डॉ. अहमद की स्टडी आइवरमेक्टिन पर की गई सबसे बड़ी स्टडी थी, जो अब गलत साबित हो चुकी है. (फोटोःगेटी)
इससे पहले सिडनी की एक डॉक्टर काइल शेल्ड्रिक ने भी आइवरमेक्टिन पर की गई अलग-अलग स्टडीज पर सवाल उठाए थे. इसमें डॉ. अहमद एल्गाजार की स्टडी भी शामिल थी, लेकिन उनकी बात को उस समय सुना नहीं गया. डॉ. काइल शेल्ड्रिक ने कहा था कि डॉ. अहमद की स्टडी में गणितीय गलतियां हैं. आइवरमेक्टिन (Ivermectin) की मांग लैटिन अमेरिका और भारत की वजह से बढ़ी. क्योंकि यहीं इस दवा का उपयोग शुरुआत में सबसे ज्यादा हुआ. अब भी हो रहा है. जबकि, मार्च में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने क्लीनिकल ट्रायल्स के बाद इस दवा के उपयोग को मना किया था. (फोटोःगेटी)