बांध टूटने से कितनी तबाही मच सकती है, इसका अंदाजा लीबिया के डर्ना शहर को देख कर हो जाता है. घरों में पानी और कीचड़ भर गया. मिट्टी और मलबे से शव निकलते जा रहे हैं. सड़ते-गलते जा रहे हैं. अब वहां बीमारियां फैलने का खतरा मंडरा रहा है. विदेशी मीडिया इसे किसी परमाणु बम हमले की तरह मान रही है. (फोटोः AFP)
सवा लाख की आबादी वाला डर्ना शहर अब पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है. चारों तरफ टूटी इमारतें, कीचड़, कारों के ऊपर लदी कारें दिख रही हैं. किसी को नहीं पता कि कीचड़ में पैर रखेंगे तो नीचे किसी का शव मिलेगा. 40 हजार से ज्यादा लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है. (फोटोः AFP)
डर्ना में यूगोस्लाविया की कंपनी ने 1970 में दो बांध बनवाए थे. पहला बांध 75 मीटर ऊंचा था. उसमें 1.80 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी आता था. दूसरा बांध 45 मीटर ऊंचा था. वहां 15 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा था. हर क्यूबिक मीटर पानी में एक टन वजन होता है. दोनों डैम में करीब 2 करोड़ टन पानी था. जिसके नीचे डर्ना शहर बसा था. (फोटोः AFP)
सैटेलाइट तस्वीरें ये बताती हैं कि ये डैम खाली थे. पिछले 20 सालों से इनकी देखभाल नहीं हो रही थी. दिक्कत खाली बांध से नहीं थी. लेकिन उसकी मरम्मत से थी. डैनियल तूफान ने इतना पानी भर दिया कि पुराने और कमजोर होता बांध उसे संभाल नहीं पाया. बांध टूटा और उसके नीचे बसे डर्ना शहर को बर्बाद कर डाला. (फोटोः AP)
दोनों बांधों को कॉन्क्रीट से बनाया गया था. उन्हें ग्लोरी होल भी था. ताकि पानी ओवरफ्लो न हो. लेकिन इसमें लकड़ियां फंस गईं थीं. ये बंद हो चुका था. मेंटेनेंस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. कचरा जमा होता चला गया. इस वजह से तूफान के बाद हुई बारिश से बांध में तेजी से पानी भरता चला गया. डैनियल तूफान लगातार एक हफ्ते तक बरसता रहा. (फोटोः रॉयटर्स)
डर्ना का स्थानीय प्रशासन इस चीज को लेकर तैयार नहीं था. तूफान आया तो पहले बड़ा डैम भरा. जब यह पानी की मात्रा संभाल नहीं पाया तो पानी ऊपर से बहने लगा. थोड़ी देर में वह टूट गया. एक साथ 1.80 करोड़ टन पानी नीचे की ओर बढ़ा. इतने पानी को निचले इलाके वाले डैम में रोकने की ताकत नहीं थी. (फोटोः गेटी)
छोटा डैम भी टूट गया. फिर क्या था पूरे शहर में जलजला. हर घर के निचले हिस्से में पानी भर गया. बांधों को मजबूत बनाना ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि उसका मेंटेनेंस भी जरूरी है. जिस काम में लीबिया की सरकार और स्थानीय प्रशासन फेल हो गई. पिछले साल इसे लेकर एक रिपोर्ट भी छपी थी. (फोटोः एपी)
उस रिपोर्ट में कहा गया था कि डर्ना वैली बेसिन को तुरंत संभालने की जरुरत है. नहीं तो यहां किसी भी दिन बड़ी आपदा आएगी. दोनों बांधों को मेंटेनेंस की जरुरत थी. ये टूटे तो घाटी में मौजूद शहर खत्म हो जाएगा. खतरे का पता सबको था. सबको पता था कि बड़े बांध खतरनाक साबित हो सकते हैं. यहां तो हो ही गया. (फोटोः गेटी)
बांध तो हजारों सालों तक चलते रहते हैं. रोम साम्राज्य के बनाए बांध आज भी काम कर रहे हैं. जरुरत है उनकी डिजाइन और मजबूती पर ध्यान देने की. साथ ही उनके मेंटेनेंस की. बांधों में जमा कचरा साफ करने की. ताकि वो सही तरीके से काम कर सकें. क्योंकि उनकी सफाई नहीं हुई तो वो किसी परमाणु बम से कम नहीं हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
लीबिया के हाइड्रोलॉजिस्ट अब्दुल वानिस अशूर ने बताया कि सबको इन बांधों की हालत का पता था. लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा था. न प्रशासन न सरकार. लोगों को भी पता था कि उनके ऊपर मौत मंडरा रही है. अगर पब्लिक वाटर कमीशन पिछले साल छपी रिपोर्ट पर ध्यान देकर बांध की सफाई करवा देता, तो शायद ये नजारा देखने को न मिलता. (फोटोः रॉयटर्स)
लीबिया की सरकार को पता था कि डर्ना नदी घाटी में क्या हो रहा है. किस तरह की दिक्कत होने वाली है. लेकिन किसी फर्क ही नहीं पड़ रहा था. अब इस शहर की लगभग आधी आबादी खत्म हो चुकी है. 22 साल के अब्दुलकादेर मोहम्मद अलफकरी ने कहा कि जब जलजला आया तो मैं भाग कर चौथी मंजिल की छत पर चला गया. बच गया. (फोटोः AFP)
अब्दुलकादेर ने अपने पड़ोस के लोगों और इमारतों को समुद्र में बहते देखा. लोग मोबाइल का टॉर्ज जलाकर मदद मांग रहे थे. किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था. सड़कों पर खड़ी गाड़ियां घरों में घुस गई थीं. शव ही शव बह रहे थे. लोगों के शरीर पानी और कीचड़ के साथ बहकर अलग-अलग घरों में जा रहे थे. भयानक नजारा था. (फोटोः रॉयटर्स)