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साइंस न्यूज़

वैज्ञानिकों ने खोजे 27 करोड़ साल पहले खत्म हो चुके दो समुद्री जीव और उनका संबंध

aajtak.in
  • टोक्यो/वॉरसॉ,
  • 07 जून 2021,
  • अपडेटेड 2:55 PM IST
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दो ऐसे समुद्री जीव मिले हैं जो 27.30 करोड़ साल पहले ही विलुप्त मान लिए गए थे. यह धरती पर मिलने वाले पहले ऐसे जीव हैं जो इतने करोड़ों साल के बाद भी समुद्र में जीवित हैं. ये खोज करने वाले वैज्ञानिकों के साथ पूरी दुनिया की साइंटिस्ट बिरादरी आश्चर्यचकित है. सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि ये जीव एक दूसरे के साथ सिम्बायोटिक रिलेशनशिप यानी सहजीवी संबंध बनाकर अब भी मौजूद हैं. वैज्ञानिकों ने इसे जापान के पास प्रशांत महासागर की गहराइयों में खोजा है. (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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जापान के होंशू और शिकोकू परफेक्चर के तटों के नीचे वैज्ञानिकों ने देखा कि समुद्री लिली (Sea Lilies) नामक जीव के शरीर पर षटकोण नॉन-स्केलेटल कोरल का जन्म हो रहा है. समुद्री लिली को क्रिनॉयड्स (Crinoids) भी कहते हैं. साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पहली बार ऐसा नजारा देखने को मिला है कि समुद्री लिली के तने से हेक्साकोरल (Epibiont) विकसित हो रहा है. वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की तो पता चला यह संबंध 27.30 करोड़ साल पुराना है. (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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यह संबंध उस समय का है जिसे पैलियोजोइक काल (Paleozoic Era) कहते हैं. 23 करोड़ साल से 54 करोड़ साल पहले के इस दौर में समुद्री लिली और हेक्साकोरल के बीच ऐसे संबंध हुआ करते थे. उस समय के जीवाश्मों के अध्ययन से ये बात पुख्ता होती है. लेकिन अब यही सहजीवी संबंध वैज्ञानिकों को दोबारा प्रशांत महासागर की तलहटी में देखने को मिला, जिससे वे काफी हैरान हैं. कोरल्स करोड़ों सालों से समुद्री लिली के तनों का सहारा लेकर समुद्र में ऊपर की ओर बढ़ते हैं ताकि ज्यादा रोशनी हासिल कर सकें.  (फोटोःगेटी)

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जिस खास कोरल और समुद्री लिली के बीच यह संबंध देखने को मिला है, वो दोनों 27.30 करोड़ साल पहले ही खत्म हो चुके थे. इसका रिकॉर्ड भी है. दूसरे कोरल और समुद्री लिली मीसोजोइक काल (Mesozoic Era) में विकसित हुए. उनके बीच में सहजीवी संबंध बना लेकिन वैज्ञानिकों ने अभी जो सहजीवी संबंध वाले कोरल और लिली खोजे गए हैं, वो अत्यधिक दुर्लभ हैं. मीसोजोइक काल 6.30 करोड़ साल से 23 करोड़ साल के बीच का समय है. (फोटोःगेटी)

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जापान में प्रशांत महासागर की 330 फीट की गहराई में ये दुर्लभ सहजीवी संबंध देखने को मिला. जो हेक्साकोरल (Hexacoral) समुद्री लिली के तने पर विकसित हो रहा है, उसका नाम है एबिसोएंथस (Abyssoanthus). जबकि, जापानी समुद्री लिली का नाम है मेटाक्रिनस रॉटुंडस (Metacrinus Rotundus). इन दोनों सहीजीवियों को पोलैंड और जापान के वैज्ञानिकों ने मिलकर खोजा है. (फोटोःगेटी)

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इस टीम के नेतृत्वकर्ता और वॉरसॉ यूनिवर्सिटी में पैलिएंटोलॉजिस्ट मिकोलाज जैपलस्की ने पहली बार हेक्साकोरल-समुद्री लिली स्टीरियोस्कोपिक माइक्रोस्कोपी की है. जिससे उनके सहजीवी होने के कई बायोलॉजिकल प्रमाण मिले हैं. यह एक नॉन-डिस्ट्रक्टिव माइक्रोटोमोग्राफी (Microtomography) है जिससे सहजीवियों को बिना नुकसान पहुंचाए, उनके ही प्राकृतिक स्थान पर उनकी स्कैनिंग की जा सकती है. (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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मिकोलाज जैपलस्की ने इन जीवों के DNA सैंपल लेकर उनकी बारकोडिंग भी की है. ताकि उन जीवों की पहचान हो सके. जब उन्होंने बारकोड को अपने डेटा से मिलाया तो मिकोलाज और उनकी टीम हैरान रह गई. क्योंकि ये दोनों जीव और उनके बीच का संबंध 273 मिलियन साल यानी 27.3 करोड़ साल पुराना है. इन दोनों ही जीवों को विलुप्त मान लिया गया था. समुद्री लिली के खाने वाले पंखों के ठीक नीचे ये हेक्साकोरल खुद को विकसित कर रहे हैं. (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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समुद्री लिली और हेक्साकोरल के सहजीवी संबंध में सबसे अच्छी बात ये है कि ये दोनों एक दूसरे के खाने पर मारा-मारी नहीं करते. हेक्साकोरल नॉन-स्केलेटल यानी कशेरुकीय नहीं है, इसलिए यह समुद्री लिली के आकार या उसके बढ़ने की प्रक्रिया को बाधित नहीं करता. यह कोरल बस समुद्री लिली के तनों को, डालियों को और पंखों को अपना घर बनाता है. यह एक अत्यधिक सकारात्मक सहजीवी संबंध है. इससे दोनों ही जीवों को सुरक्षित रहने और पर्याप्त पोषण मिलने की संभावना बनी रहती है.  (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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हालांकि, समुद्री लिली को हेक्साकोरल से सीधे तौर पर क्या फायदा होता है ये अभी तक वैज्ञानिकों के समझ में नहीं आया है. लेकिन एक बात वैज्ञानिक बहुत अच्छे से समझ चुके हैं कि पैलियोजोइक काल के कोरल जब समुद्री लिली पर अपना घर बनाते थे, तो वे उसके आकार को बदल देते थे. लेकिन इस बार जो हेक्साकोरल मिला है, उसने समुद्री लिली के तने, पंखों या टहनियों के आकार को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया है. यह एक रेयर नजारा है. (फोटोःPalaeogeography, Palaeoclimatology, Palaeoecology)

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मिकोलाज जैपलस्की का मानना है कि इनके संबंधों का अध्ययन करने से हमें यह पता चलेगा कि जीवाश्मों के रिकॉर्ड में गैप क्यों है. क्योंकि पैलियोजोइक काल में जो कोरल समुद्री लिली के साथ संबंध बनाते थे, उनका स्केलेटल कैल्साइट से बना होता था. जैसे- रुगोसा (Rugosa) और टैबुलाटा (Tabulata). लेकिन दिक्कत ये है कि नरम शरीर वाले कोरल जैसे एबिसोएंथस (Abyssoanthus) के जीवाश्म बहुत मुश्किल से मिलते हैं. इनके जीवाश्म को कोई पुख्ता प्रमाण कहीं नहीं है. (फोटोःगेटी)

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मिकोलाज कहते हैं कि एबिसोएंथस (Abyssoanthus) अगर समुद्री लिली में कोई बदलाव नहीं करता है. न ही यह अपने पीछे जीवाश्म छोड़ता है तो इसका मतलब ये है कि उसका समुद्री लिली के साथ करोड़ों साल पुराना सहजीवी रिश्ता है. जिसे आजतक किसी रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया गया. या फिर उनकी खोज ही कभी नहीं हुई हो. क्योंकि आधुनिक दुनिया में कोरल और समुद्री लिली के बीच जो संबंध देखने को मिल रहे हैं वो हमेशा सहजीवी नहीं होते. कई बार इस संबंध से समुद्री लिली को नुकसान पहुंचता है. मिकोलाज और उनकी टीम को लगता है कि दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब वैज्ञानिकों ने ऐसे जीव और उनके बीच संबंध खोजा है, जो है तो प्राचीन लेकिन उनका कोई जीवाश्म आधारित सबूत, प्रमाण, दस्तावेज या रिकॉर्ड नहीं है. इसलिए इस संबंध की अभी और खोज की जानी चाहिए. (फोटोःगेटी)

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