मलेरिया का टीका बनाने का प्रयास 37 साल से चल रहा है लेकिन सफलता अभी तक नहीं मिल पाई है. ऐसी स्थिति में क्या इंसान कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने के लिए ऐसा टीका बना पाएगा जिससे सुरक्षा मिले. या फिर ऐसा टीका जिससे कोरोनावायरस खत्म हो जाए. सवाल ये है कि जब मलेरिया जैसी बीमारी, जिसे नियंत्रित करने में काफी सफलता मिली है लेकिन वैक्सीन अभी तक नहीं बन पाई तो कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कैसे बनेगी? (फोटोःगेटी)
मलेरिया (Malaria) की वजह से हर साल दुनियाभर में करीब 20 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं. करीब 4 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इनमें से सबसे ज्यादा मौतें अफ्रीकी देशों में होती है. इसका सबसे ज्यादा असर युवा पीढ़ी पर हो रहा है. मलेरिया होने पर एनीमिया, अंगों का निष्क्रिय होना, पीलिया और लिवर संबंधी दिक्कतें भी हो सकती हैं. (फोटोःगेटी)
भविष्य में मलेरिया से बचाव का टीका आ सकता है. वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं. लेकिन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित किए गए मलेरिया के टीके का उपयोग केन्या के बच्चों में किया जा रहा है. साल 2019 से लेकर अब तक केन्या, घाना और मलावी में युवाओं और बच्चों को मलेरिया का यह टीका दिया जा रहा है. (फोटोःगेटी)
इस टीकाकरण अभियान की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निगरानी में हो रहा है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी यह वैक्सीन मलेरिया के खिलाफ 77 फीसदी प्रभावी है. यानी 23 फीसदी खतरा तब भी बाकी रहेगा. यानी मलेरिया से बचाव और बीमारी को खत्म करने वाली 100 फीसदी या 90 फीसदी के ऊपर की वैक्सीन अभी तक दुनिया में मौजूद नहीं है. ऐसे में कोरोना वायरस को शरीर में खत्म करने की वैक्सीन आने में न जाने कितना समय लगेगा. (फोटोःगेटी)
अभी दुनिया भर में आधा दर्जन से ज्यादा कोरोना की वैक्सीन आपातकालीन उपयोग में लाई जा रही हैं. भारत में दो स्वदेशी वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन का उपयोग हो रहा है. वहीं रूस की वैक्सीन स्पुतनिक-V के आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी गई है. इसकी पहली खेप 1 मई को भारत पहुंच जाएगी. ये सारी वैक्सीन कोरोना वायरस से बचाने में आपकी मदद करेंगी. ऐसी वैक्सीन बनाई ही नहीं गई है जो कोरोना वायरस को खत्म कर दे. (फोटोःगेटी)
अब दुनियाभर में यह चर्चा हो रही है कि एक यूनिवर्सल वैक्सीन बनाई जाए. जो सस्ती और ताकतवर हो. इसकी एक डोज से ही लोगों को कोरोना वायरस से बचाव मिले. ऐसा माना जा रहा है कि इस वैक्सीन की एक डोज की कीमत एक डॉलर से भी कम हो सकती है. यानी करीब 75 रुपए. वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्रोफेसर डॉ. स्टीवन ने कहा कि सभी कोरोना वायरस वैरिएंट्स की बाहरी कंटीली प्रोटीन परत ही कोशिकाओं पर हमला करती है. वैक्सीन इसी प्रोटीन परत पर हमला करती है. (फोटोःगेटी)
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कोविड वैक्सीन का असर दो तरह की बीमारियों को ठीक करने में दिखाई दे रहा है. पहला तो कोरोना संक्रमण और दूसरा डायरिया का वायरस. दोनों वायरस काफी स्तर तक एक जैसे हैं. इसलिए हो सकता है कि भविष्य में जो भी वैक्सीन बने, उससे सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि कई अन्य बीमारियों का भी इलाज संभव हो सकता है. (फोटोःगेटी)
अभी mRNA आधारित कोरोना वैक्सीन की लागत करीब 10 डॉलर यानी 7500 रुपए पड़ रही है. यह काफी ज्यादा बड़ी राशि है. विकासशील और छोटे देश इसका वहन नहीं कर सकते. ऐसे में अगर कोरोना की यूनिवर्सल वैक्सीन बनाई जाए जो सस्ती और ताकतवर हो, तो उससे गरीब और विकासशील देशों के करोड़ों लोगों को फायदा होगा. (फोटोःगेटी)
Pfizer और Moderna की वैक्सीन mRNA आधारित हैं. ये इसके जरिए कोशिकाओं में जेनेटिक सूचना मुहैया कराती हैं, जबकि जॉनसन एंड जॉनसन और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन में एडिनोवायरस का इस्तेमाल किया गया है. दोनों ही प्रकार की वैक्सीन शरीर में प्रवेश करके कोशिकाओं को एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करती है. एंटीबॉडी बनाने में मदद करती हैं. (फोटोःगेटी)
अगर यूनिवर्सल वैक्सीन बन जाती है तो दुनिया भर के लोगों को कोरोना वायरस से संघर्ष करने में आसानी होगी. साथ ही इसका फायदा ये होगा कि कई तरह की वैक्सीन का उत्पादन, स्टोरेज, परिवहन आदि का खर्च बचेगा. बाकी कोरोना वैक्सीन को बैकअप या विकल्प के तौर पर इमरजेंसी के लिए रखा जा सकता है. (फोटोःगेटी)