मंगल ग्रह पर बादलों का बनना लगभग नामुमकिन है लेकिन नासा के क्यूरियोसिटी रोवर ने गेल क्रेटर के ऊपर बादलों का तस्वीर ली है. मंगल ग्रह का वायुमंडल इतना हल्का और पतला है कि यहां पर बादलों का निर्माण लगभग असंभव है. लेकिन बादलों की फोटो देखकर दुनिया भर के वैज्ञानिक खुश भी हैं और हैरान भी. क्यूरियोसिटी रोवर ने यह तस्वीर मंगल पर दो साल बिताने के बाद कैप्चर की है. इससे पहले ऐसी तस्वीर नहीं आई थी. वैज्ञानिक क्यूरियोसिटी रोवर के ऊपर बादल बनने को लेकर स्टडी कर रहे हैं. (फोटोः NASA)
वैसे मंगल ग्रह के ऊपर बादलों का समय से पहले आने को लेकर स्टडी चल रही है. आमतौर पर मंगल ग्रह पर बादलों का निर्माण उसकी भूमध्यरेखा के ऊपर सर्दियों के समय पर होता है. यानी मंगल ग्रह का जो सबसे ठंडा समय होता है उस समय बादल दिखते हैं. लेकिन इस सीजन में अभी वहां पर न तो सर्दियों का मौसम है, न ही ठंडा समय. नासा के वैज्ञानिक जनवरी के अंत से बादलों पर रिसर्च शुरु कर चुके हैं. क्योंकि उसी समय बादलों का देखा जाना आम होता है. (फोटोः NASA)
क्यूरियोसिटी रोवर ने जिस तरह के बादलों की तस्वीर ली है, वो बेहद पतले हैं. उनमें महीन बर्फ के क्रिस्टल्स हैं, जिनकी वजह से सूर्य की रोशनी परावर्तित हो रही है. बादलों में अलग-अलग रंग भी दिखाई दे रहे हैं. ये मंगल ग्रह के इंद्रधनुषी बादल हैं. सिर्फ खूबसूरत नजारा नहीं है ये बादल बल्कि वैज्ञानिकों के लिए स्टडी करने का सबसे बेहतरीन मौका भी हैं. वैज्ञानिक इनके जरिए पता करेंगे कि आखिर ये बने कैसे? जबकि, मंगल ग्रह की सतह पर पानी नहीं है. (फोटोः NASA)
क्यूरियोसिटी रोवर के डेटा पर काम करने वाली टीम ने इन बादलों को खोजकर एक नई जानकारी हासिल की है. ये बादल मंगल ग्रह की सतह से काफी ज्यादा ऊपर हैं, जबकि आमतौर पर कभी-कभार दिखने वाले बादल सतह से 60 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर ही दिखते हैं. क्यूरियोसिटी रोवर ने जिन बादलों की तस्वीर ली है वो काफी ज्यादा ऊंचाई पर हैं, और वहां काफी सर्दी है. ऐसा माना जा रहा है कि ये बादल कार्बन डाइऑक्साइड के जमने की वजह से बने होंगे. (फोटोः NASA)
वैज्ञानिक फिलहाल इन बादलों की जांच कर रहे हैं, स्टडी करने के बाद पता चलेगा कि ये पानी की वजह से बने बादल हैं, या ये ड्राई आइस से बने बादल हैं. ड्राई आइस आमतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड के जमने से बनता है. इन बादलों की तस्वीर क्यूरियोसिटी रोवर के ब्लैक-एंड-व्हाइट नेविगेशन कैमरा ने ली है. जबकि, इनकी रंगीन तस्वीरें क्यूरियोसिटी रोवर के ऊपर लगे मास्ट कैम से ली गई है. ये बादल सूरज के ढलने के ठीक बाद दिखाई दिए थे. (फोटोः NASA)
जब सूरज ढलने लगता है तब बर्फ के क्रिस्टल चमकने शुरु होते हैं, क्योंकि रोशनी ऐसी दिशा से पड़ती है कि वो सतरंगी दिखने लगती है. इससे बनने वाले बादल को ट्विलाइट क्लाउंड्स (Twilight Clouds) कहते हैं. इसे नॉक्टील्यूसेंट (Noctilucent) भी कहते हैं. इसका मतलब है चमकती हुई रात वाले बादल. जैसे-जैसे बादलों में बर्फ के क्रिस्टल्स की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे इनकी चमक भी बढ़ती जाती है. साथ ही इनकी ऊंचाई भी. (फोटोः NASA)
कोलोराडो स्थित स्पेस साइंस इंस्टीट्यूट के वायुमंडल विज्ञानी मार्क लेमॉन कहते हैं कि इनसे भी ज्यादा खूबसूरत नजारा दिखाते हैं, Mother of Peral नाम के बादल. जब बादलों में पेस्टल शेड्स के हल्के रंग दिखाई पड़े और बादलों के निर्माणकर्ता कणों का आकार एक बराबर हो तब उसे मदर ऑफ पर्ल बादल कहते हैं. ये तब बनते हैं जब बादलों का निर्माण एक ही समय पर, एक बराबर आकार बर्फीले क्रिस्टलों से हुआ हो. साथ ही ये एकसाथ ऊंचाई हासिल कर रहे हों. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
मार्क लेमॉन ने बताया कि लाल ग्रह पर ऐसे बादलों का दिखना अपने आप में हैरत वाली बात है. हालांकि ये बादल रंगीन हैं काफी. अगर आप क्यूरियोसिटी रोवर के साथ घूम सकते तो आप इन रंगीन बादलों का नजारा अपनी खुली आंखों से देख सकते थे. हालांकि ये थोड़ी देर में गायब भी हो जाते लेकिन मंगल ग्रह पर ऐसा नजारा दुर्लभ होता है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)