एक बच्चा है जिसका नाम है ईस्टन (Easton). छह माह के इस बच्चे को हाल ही में एकसाथ शरीर के दो जरूरी अंग मिले. पहला अंग खून की सप्लाई करते रहने के लिए और दूसरा शरीर को बीमारियों से बचाने के लिए. आपने सही समझा... इस बच्चे के शरीर में एकसाथ दिल और इम्यूनिटी बढ़ाने वाली ग्रंथियों को ट्रांसप्लांट किया गया है. दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है जब इतने छोटे बच्चे के शरीर में दो ट्रांसप्लांट एकसाथ किए गए हों. वह भी सफलतापूर्वक. (फोटोः ड्यूक यूनिवर्सिटी)
ड्यूक यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक कार्डिएक सर्जरी के प्रमुख डॉ. जोसेफ डब्ल्यू तुरेक ने बयान जारी करके कहा कि यह सर्जरी भविष्य में सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट के तरीकों और संभावनाओं को बदल कर रख देगी. दिल ट्रांसप्लांट करना एक बेहद जटिल प्रक्रिया होती है. अगर यह सफल भी होती है, तब भी इसे कराने वाले के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उस दिल को नकारने लगती है. (फोटोः गेटी)
डॉ. जोसेफ ने बताया जब कोई बाहरी अंग किसी और के शरीर में लगाया जाता है तब ट्रांसप्लांट कराने वाले के शरीर की इम्यूनिटी उस अंग की कोशिकाओं और ऊतकों को निशाना बनाने लगती हैं. प्रतिरोधक प्रणामी बाहरी अंग पर हमला कर देती है. ताकि अंग काम करना बंद कर दे. इससे मरीज की हालत बिगड़ जाती है. वह जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने लगता है. (फोटोः गेटी)
इसलिए जरूरी है कि अंग देने वाला और उसे लेने वाला दोनों की इम्यूनिटी मिलनी चाहिए. ताकि अंग बेकार न हो. ऐसी सर्जरी में डॉक्टर अक्सर इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स (Immunosuppressive Drugs) देते हैं, ताकि सर्जरी के दौरान या उसके तत्काल बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बाहर से आ रहे अंग को रिजेक्ट न करे. इन ड्रग्स को दो अलग-अलग स्टेज में दिया जाता है. इनमें से कुछ इतने खतरनाक होते हैं, कि उनका साइडइफेक्ट जिंदगी भर रहता है. यानी जो लोग इम्यूनोसप्रेस्ड ड्रग्स ले चुके हैं, या वो इस समस्या से जूझ रहे हैं, उन्हें बीमार होने में ज्यादा देर नहीं लगती. (फोटोः गेटी)
डॉ. जोसेफ ने बताया कि किसी भी प्रत्यारोपित अंग (Transplanted Organ) की उम्र नए शरीर में 10 से 15 साल ही होती है. इसलिए हमने एक नया विकल्प निकाला. ईस्टन (Easton) कमजोर दिल के साथ पैदा हुआ था. साथ ही उसके प्रतिरोधक ग्रंथि थाइमस (Thymus Immune Gland) में भी दिक्कत थी. यह ग्रंथि शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले T-Cells को जन्म देती है. (फोटोः गेटी)
डॉ. जोसेफ और उनकी टीम ने बच्चे को किसी भी तरह के इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स (Immunosuppressive Drugs) देने के बजाय डोनर के शरीर से नए दिल के साथ थाइमस का नया ऊतक (Tissue) प्रत्यारोपित करने की भी योजना बनाई. यानी जिस शरीर से दिल आ रहा है, उसी शरीर से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की ग्रंथि भी. यानी रिसिवर के शरीर की इम्यूनिटी नए दिल को आसानी से स्वीकार कर लेगी. उसका विरोध नहीं करेगी. (फोटोः नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट/अन्स्प्लैश)
अगर थाइमस सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट हो जाता है तो वह डोनर के दिल को पहचान लेगा, क्योंकि वह भी उसी शरीर से आया है. इससे ईस्टन को दवाओं की जरूरत नहीं पड़ेगी. डॉक्टरों की टीम ने इस सर्जरी के लिए पहले FDA से अनुमति मांगी. ईस्टन को पिछले साल अगस्त में नया दिल और थाइमस ग्लैंड लगाया गया था. इसे लगाने की तकनीक भी ड्यूक यूनिवर्सिटी में ही विकसित की गई थी. थाइमस को खास तरीके से कल्चर और प्रोसेस किया गया था. (फोटोः गेटी)
यह सर्जरी सफल रही है. अब छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं. ईस्टन एकदम सेहतमंद है. उसके शरीर में मौजूद थाइमस ग्लैंड टी-सेल्स पैदा कर रहा है. उसके शरीर में एक हेल्दी इम्यून सिस्टम बना हुआ है. अभी उसे कुछ इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स दिए जा रहे हैं. लेकिन जल्द ही उन्हें हटा दिया जाएगा. क्योंकि ईस्टन के शरीर में नए दिल को लेकर किसी तरह का विरोध होता नहीं दिख रहा है. शरीर ने नए दिल और थाइमस ग्लैंड को स्वीकार कर लिया है. (फोटोः गेटी)
ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सर्जरी विभाग के प्रमुख एलेन डी.कर्क ने कहा कि यह एकदम नए प्रकार की सर्जरी थी. हमने बच्चे को बचाने के साथ-साथ मेडिकल साइंस में ट्रांसप्लाट के एक नए तरीके को ईजाद किया है. अगर बच्चा सेहतमंद रहता है तो हम इस तरीके को भविष्य में अन्य लोगों पर भी इस्तेमाल करके उनकी जान बचा सकते हैं. उन्हें नया जीवन दे सकते हैं. इससे इंसान की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर नहीं होगी. बाहरी अंग का विरोध भी नहीं होगा. (फोटोः गेटी)