हमारा तारा कौन सा है? आप कहेंगे सूरज (Sun). ये किससे बना है...आप कहेंगे हाइड्रोजन और हीलियम. आमतौर पर तारे इसी से बनते हैं. या फिर ऐसा कह लें कि इंसानों की फिलहाल इतना ही पता था. अब वैज्ञानिकों ने एक नए प्रकार का तारा खोजा है जिसके चारों तरफ कार्बन-ऑक्सीजन (Carbon-Oxygen) की परत है. अब इस नए प्रकार के तारे ने वैज्ञानिकों को कनफ्यूज करके रखा हुआ है. (फोटोः निकोल रीन्डेल/क्रिएटिव कॉमन्स)
असल में होता ये है कि तारे अपने पूरे जीवन में हाइड्रोजन (Hydrogen) एटम को फ्यूज करके हीलियम (Helium) का निर्माण करते हैं. जब हाइड्रोजन खत्म हो जाता है, तब यह तारा रेड जायंट (Red Giant) बन चुका होता है. इसके बाद हीलियम फ्यूजन की प्रक्रिया करके कार्बन और ऑक्सीजन पैदा करता है. लेकिन यह घटना सिर्फ अत्यधिक बड़े तारे में होती है. अगर तारा छोटा है तो वह हीलियम का व्हाइट ड्वार्फ (White Dwarf) बन जाता है. जिसमें कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और हीलियम के जलने के राख बचते हैं. (फोटोः गेटी)
ऐसा ही रेड जायंट के साथ होता है. अगर ये बहुत बड़े नहीं होते तो फ्यूजन की अगली कड़ी में चले जाते हैं. जहां पर कार्बन-ऑक्सीजन से भरपूर व्हाइट ड्वार्फ छूट जाता है. लेकिन नई स्टडी से वैज्ञानिक हैरान है. क्योंकि इस तारे के चारों तरफ कार्बन-ऑक्सीजन की मात्रा 20-20 फीसदी है. इन दोनों की परत के नीचे दो तारे हैं, जो हीलियम से भरपूर हैं. यह स्टडी हाल ही में मंथली नोटिसेस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी लेटर्स में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)
तुबिनजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्लॉस वर्नर और इस स्टडी के प्रमुख वैज्ञानिक ने एक बयान में कहा कि आमतौर पर जब हीलियम किसी तारे के कोर में जलना बंद कर देता है, तब वह व्हाइट ड्वार्फ बन जाता है. लेकिन इन दोनों नए तारों ने हमारी समझ को चुनौती दी है. इसने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अंतरिक्ष की उत्पत्ति किस तरह से हुई है. क्या हमें इस बारे में नए तरीके से सोचना और खोजना है. (फोटोः गेटी)
इस स्टडी से संबंधित एक रिपोर्ट ला-प्लाटा यूनिवर्सिटी और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों ने भी तैयार किया है. यह पेपर भी मंथली नोटिसेस ऑफ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी लेटर्स में प्रकाशित हुई है. जिसमें वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह दो व्हाइट ड्वार्फ के मिलने का नतीजा है. जिसकी वजह से ऐसे तारों की खोज हुई है. (फोटोः गेटी)
ला-प्लाटा यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के डॉक्टर मिलर बर्टोलामी ने कहा कि हमारे जर्मन दोस्तों ने खोज की है, वह दो व्हाइट ड्वार्फ के मिलने की वजह से हो रहा है. आमतौर पर दो व्हाइट ड्वार्फ के मिलने पर ऐसा नहीं होता है. न ही वो ऐसा कुछ बनाते हैं जो कार्बन और ऑक्सीजन का निर्माण करते हों. लेकिन यहां पर दो एक बाइनरी सिस्टम बन रहा है, जो हो सकता है कि भविष्य में हीलियम से भरपूर तारे के तौर पर खत्म हो जाएगा. (फोटोः गेटी)
उत्पत्ति के अन्य मॉडल्स की स्टडी करने पर पता चलता है कि अंतरिक्ष में ऐसा कोई मैकेनिज्म है ही नहीं. लेकिन इन दोनों तारों के निर्माण और उनके चारों तरफ जमा कॉर्बन-ऑक्सीजन की परत वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर कर दे रही है कि भविष्य में ऐसे तारे और मिल सकते हैं. इन दोनों तारों का नाम है- PG1654+322 और PG1528+025. इन दोनों को लेकर और स्टडी करने की जरूरत है. (फोटोः गेटी)