ओरंगुटान (Orangutan's) की अपनी भाषा होती है. अपने शब्द होते हैं. अलग-अलग भावनाओं में ये अलग-अलग तरीके से निकलते हैं. इंसानों की तरह ये भी अपने शब्दों को एक ही सामाजिक मुलाकात में बदल सकते हैं. जैसे कि इंसान किसी नई जगह जाते ही कुछ नया शब्द या चीज सीख कर आता है. ओरंगुटानों के बारें में यह रोचक खुलासा हाल ही में भाषा की उत्पत्ति को लेकर किए गए रिसर्च में सामने आया है. (फोटोः पिक्सेल)
ओरंगुटानों की भाषा और शब्दावली (Vocabularies) को लेकर हाल ही में एक स्टडी जर्नल Nature Ecology and Evolutions में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी में दक्षिणपूर्व एशिया में स्थित बॉर्नियो और सुमात्रा के 70 ओरंगुटानों पर अध्ययन किया गया. उनकी बातचीत की रिकॉर्डिंग की गई. कई बार सुनी गई. यह स्टडी की है डॉ. एड्रियानो आर. लैमीरा और उनके साथियों ने. इस स्टडी में बहुत ज्यादा आवाजों के सैंपल जमा किए गए. (फोटोः पिक्सेल)
ओरंगुटानों के आवाजों की बड़ी प्लेलिस्ट और उनके अंदर मौजूद अलग-अलग तरह की आवाजों से पता चलता है कि वह किस समय किस तरह की आवाज निकालते हैं. उनकी तीव्रता, मधुरता, लहर आदि कैसी होती है. कई बार ये अपनी ओरिजिनल आवाज में नए तरह का मिक्स करते हैं. ताकि किसी और को इनकी भाषा समझ में न आए. सिर्फ वही समझे जिसे समझना चाहिए. (फोटोः पिक्साबे)
कई बार ओरंगुटान पूरा शब्द नहीं बोलते. वो एक तय तीव्रता के साथ शब्दों का उच्चारण करते-करते बीच में रोक देते हैं. जब उसे सुनने वाला ओरंगुटान देखता है, तब वो इशारे करते हैं या फिर नए शब्दों को बोलते हैं. संदेश पूरा हो जाता है. इसका बड़ा असर ओरंगुटानों की आबादी पर भी निर्भर करता है. अगर आबादी कम है और वो ज्यादा बड़े इलाके में फैले हैं तो उनकी शब्दावली छोटी और सीमित होगी. (फोटोः पिक्साबे)
अगर ओरंगुटान घने इलाके में ज्यादा आबादी के साथ हैं, तो उनकी शब्दावली ज्यादा विभिन्नताओं के साथ होगी. लेकिन कई बार इकलौता ओरंगुटान ज्यादा आबादी वाले समूह की शब्दावली से अधिक शब्द सीख लेता है. बोल लेता है. नई तरह की आवाजें निकाल लेता है. इसलिए आपको कई बार कुछ ओरंगुटान अकेले में बैठे दिखाई देंगे. अपने समूह से थोड़ा दूर. लेकिन कई बार बाकी ओरंगुटानों से ज्यादा समझदार और बोलने वाले भी. (फोटोः पिक्साबे)
वैज्ञानिकों की यह स्टडी यह पता कर रही है कि आखिरकार बोलचाल, भाषा और शब्दों की शुरुआत कैसे हुई. कैसे किसी वस्तु को कोई नाम दिया गया. या किसी भावना को. इसकी शुरुआत तो हमारे पूर्वजों ने ही की थी. यानी वानरों ने. एप्स ने. ओरंगुटानों और चिम्पैन्जी ने. ओरंगुटान काफी बोलने वाले जीव होते हैं. ये अपनी भावनाओं को बोलकर जताते हैं. (फोटोः पिक्साबे)
डॉ. एड्रियानो ने अपने बयान में कहा कि इंसानों की तरह ही ओरंगुटान अपने भावनाओं को शब्दों का रूप देते हैं. प्रेम, गुस्सा, लाड, दुत्कार को शब्दों में बयान करते हैं. खतरा होने पर चिल्लाते हैं. जंगली वानर हो या किसी चिड़ियाघर में कैद. वो अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए शब्दों का उपयोग करते हैं. नए शब्दों को गढ़ते हैं. सीखते हैं. बदलते हैं. (फोटोः अनस्प्लैश)
डॉ. एड्रियानो ने कहा कि अब हम उस स्टेज पर पहुंच गए है कि यह पता कर सके कि वानरों ने बोलचाल कब शुरु की थी. चेहरे के हाव-भाव के साथ शब्दों का उपयोग कैसे शुरु हुआ होगा. कैसे वानरों में अत्याधुनिक संज्ञान शक्ति बढ़ी होगी. कैसे जेनेटिक जैकपॉट लगा और हम इंसान बोलने लगे. (फोटोः अनस्प्लैश)
ओरंगुटानों की शब्दावली पर स्टडी करने से यह पता चलता है कि हमें अपने पूर्वजों को बचाने के लिए क्या जरूरी कदम उठाने हैं. क्योंकि अगर ये जीव धरती से खत्म हो गए तो इनकी भाषा और शब्दावली को बचाना मुश्किल हो जाएगा. ये हमारे बीच जीवित इतिहास हैं. हमें इनके लिए काम करना होगा. (फोटोः अनस्प्लैश)