सोचिए कि आप खुले आसमान की ओर देख रहे हों. अचानक से ढेर सारे पक्षियों का झुंड निकल रहा हो. जो सूरज की रोशनी को ढंक लेते हों. यह झुंड किसी और का नहीं बल्कि पैसेंजर पीजन्स यानी यात्री कबूतरों (Passenger Pigeons) का है. ये इतनी ज्यादा मात्रा में हैं कि आपको सूरज की अगली रोशनी कुछ घंटों के बाद दिखती है. बस, इसके बाद इंसानों से बर्दाश्त नहीं हुआ, गोली मारकर शिकार करना शुरु कर दिया. कहानी इन कबूतरों के खत्म होने की है. सिर्फ इंसान ही जिम्मेदार नहीं है...और भी वजहें हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
पैसेंजर पीजन्स (Passenger Pigeons) को विज्ञान की भाषा में एक्टोप्सिटेस माइग्रोटोरियस (Ectopistes migratorius) कहते हैं. इंसानों ने इस प्यारे कबूतरों को 19वीं सदी में शिकार करना शुरु किया. ये 1914 में पूरी तरह से धरती से खत्म हो गए. ये पक्षी किसी प्रजाति के जल्द खत्म होने का बेहतरीन उदाहरण हैं. क्योंकि इन्हें इंसानों ने खत्म कर दिया. पर क्या ऐसा भी है कि कोई नॉन ह्यूमन एनिमल यानी गैर इंसानी जीव किसी अन्य जीव की प्रजाति को खत्म कर सकता है? (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
हां...सही बात है... गैर इंसानी जीव यानी कोई जानवर दूसरे जीव की प्रजाति को खत्म कर सकता है. लेकिन इसमें भी इंसानों का शामिल होना कुछ स्तर तक है. जैसे कुछ जीवों को इंसानों ने एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया. जिसके बाद वो घुसपैठिये होते चले गए. अपनी ताकत या शिकार के दमपर उन्होंने दूसरे जीवों की प्रजाति को खत्म कर दिया. ये शिकारी जीव इकोलॉजिकली और आर्थिक तौर पर काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. उदाहरम के लिए बर्मीस पाइथन यानी बर्मा का अजगर. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
बर्मा के अजगर को एशिया से ले जाकर अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित एवरग्लेड्स में छोड़ा गया. फ्लोरिडा म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के मुताबिक इन अजगरों की संख्या वहां तेजी से बढ़ने लगी. पालतू जानवर खत्म होने लगे. गायब होने लगे. जब किसी जीव के इलाके में नया जीव आता है, तब पुराने जीव को नैइव (Naive) कहते हैं. वो अचानक से डरने लगते हैं. जैसे आप आतंकियों के आने पर डरते हैं. इसमें उनकी कोई गलती नहीं है. क्योंकि न तो वो बचने का प्रयास करते हैं, न ही भागने का. उन्हें लगता नया जीव उनके स्थान पर उनका क्या कर लेगा. लेकिन यही दृश्य बदल जाता है. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में इनवेसन बायोलॉजी के प्रोफेसर टिम ब्लैकबर्न कहते हैं कि जब भी कोई बाहरी प्रजाति का जीव किसी अन्य इकोलॉजी में जाता है, तब वहां पहले से मौजूद जीव शिकार बनने लगते हैं. क्योंकि नया जीव आमतौर पर शिकारी ही होता है. उसे नए स्थान पर खाना, रहना, सहवास आदि हर चीज की जरूरत होती है. वो उसे पूरा करता है. शिकारी घुसपैठियों की अलग-अलग प्रजातियां होती हैं. चाहे वह सांप हो, बिल्ली हो या फिर कोई अन्य जीव. ये नए इकोलॉजी में मौजूद पुरानी जीवों को खाना शुरु कर देते हैं. यहीं उस जगह से पुरानी प्रजातियां खत्म होने लगती हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
टिम ब्लैकबर्न घरेलू बिल्ली का उदाहरण देते हैं. घरेलू बिल्लियों की वजह से हजारों की संख्या में पक्षियों की प्रजातियां खत्म हुई हैं. साल 1895 में बिल्लियों की वजह से न्यूजीलैंड में स्टीफेन्स आइलैंड रेन (Stephens Island wren) नामक पक्षी खत्म हो गए. अमेरिका और कनाडा में इंसानों द्वारा पाली जा रही बिल्लियां कई तरह के पक्षियों की मौत की जिम्मेदार हैं. साधारण भाषा में कहें तो अमेरिकी पक्षी बंदूकों की बजाय बिल्लियों की शिकार होते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
बात यहीं खत्म नहीं होती...बिल्लियों को खाने वाले सांपों की प्रजाजियों को भी इंसान इधर से उधर ले गए. पूरी धरती पर सांपों की प्रजातियों को घुमाया. लेकिन तब क्या होता है जब कोई जीव एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित हो रहा हो. टिम ब्लैकबर्न कहते हैं कि जानवरों की यह प्राकृतिक आदत होती है कि वो आसपास के इलाकों में विस्थापित होते हैं. अपने व्यवहार के अनुसार ही वो नई जगह पर काम करते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
10 हजार साल से 1 करोड़ साल पहले द ग्रेट अमेरिकन बायोटिक इंटरचेंज हुआ था. यानी धरती के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों ने उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका को जोड़ दिया था. तब दोनों महाद्वीपों के जानवर एक जमीनी ब्रिज के जरिए एकदूसरे से मिले. उनका शिकार किया. दक्षिण अमेरिका में कई नए जीव आ गए. जिनमें शिकारी भालू और बड़ी बिल्लियां भी थीं. उत्तर अमेरिका में ग्रांउड स्लोथ और आर्माडिल्लो जैसे जीव पहुंच गए. लेकिन दक्षिण अमेरिका में ज्यादा जीवों उत्तरी अमेरिका से आए. इसके पीछे वजह ये थी कि दक्षिण अमेरिका में भारी मात्रा में स्तनधारी जीवों का खात्मा हो रहा था. इन महाद्वीपों में जीवों के आने-जाने और टकराव की वजह से कई प्रजातियां खत्म हो गईं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
स्विट्जरलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिबोर्ग के पैलियोबायोलॉजिस्ट जुआन कैरिलो ने कहा कि दक्षिण अमेरिका के पुराने जीव उत्तरी अमेरिका से आए शिकारी जीवों के शिकार बन गए. हालांकि यह भी एक थ्योरी ही है. लेकिन यह संभव है. ग्राउंड स्लोथ और ग्लिप्टोडोन्टस आकार में इतने बड़े थे उस समय कि वो शिकार से खुद को बचा सकते थे. और यह एक वजह हो सकती है वो उत्तर की तरफ गए. तभी उनके जीवाश्म हमें आज भी उत्तरी अमेरिका के कई इलाकों में मिलते रहते हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
जुआन कैरिलो कहते हैं कि जब बात आधुनिक घुसपैठ की होती है, तब किसी भी प्रजाति का विलुप्त होना तय है. यह धरती के इतिहास का कोई एक पन्ना नहीं है. यह हर चैप्टर में शामिल है. यह करोड़ों सालों से लगातार होता आ रहा है. अलग-अलग चरणों और तीव्रता के साथ. दक्षिण अमेरिका के जीवों का खात्मा जलवायु परिवर्तन की वजह से भी हुआ. क्योंकि उस समय धरती ठंडी हो रही थी. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)