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साइंस न्यूज़

पहले ब्रह्मोस, अब राफेल का डबल शिकंजा, चीन को जवाब देने के लिए तीन तरफ से घेराबंदी

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 3:14 PM IST
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लद्दाख से लेकर उत्तर-पूर्व तक चीन भारतीय सीमा पर लगातार चुनौती दे रहा है. ऐसे में भारतीय सेना ने उसे तीनों तरफ से घेरने की तैयारी कर ली है. अंबाला एयरफोर्स स्टेशन के बाद पश्चिम बंगाल के हासीमारा वायुसेना स्टेशन पर राफेल फाइटर जेट की तैनाती कर दी गई है. उधर, करगिल में ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती पहले से है. नौसेना के नए एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रांत और मिसाइल डेस्ट्रॉयर आईएनएस विशाखापट्टनम में ब्रह्मोस और बराक मिसाइलें तैनात की जाएंगी. यानी चीन के जमीन, हवा और पानी तीनों तरफ से घेरने की तैयारी में जुटा है भारत. (फोटोः गेटी)

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सबसे पहले बात करते हैं राफेल फाइटर जेट को हासीमारा एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात करने से क्या फायदा होगा. अंबाला में तैनात राफेल फाइटर जेट के स्क्वाड्रन से चीन से सटी लद्दाख की सीमाओं और पाकिस्तान की सीमाओं की निगरानी हो सकेगी. साथ ही जरूरत पड़ने पर बचाव के लिए हमला भी किया जा सकता है. या फिर घुसपैठ रोकने के लिए रणनीतिक तौर पर डराया भी जा सकता है. इससे चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर दुश्मन किसी भी तरह की हिमाकत करने से डरेगा. (फोटोः गेटी)

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हासीमारा एयरफोर्स स्टेशन पश्चिम बंगाल में भारतीय वायुसेना का सबसे जरूरी बेस है. यह सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर स्थित है. साथ ही चुंबी वैली से नजदीक है. चुंबी वैली सिक्किम, भूटान और चीन का ट्राई-जंक्शन है. यानी यहां पर राफेल की तैनाती से पूरे उत्तर-पूर्व में चीन की हर नापाक हरकत पर भारतीय वायुसेना नजर रख सकेगी. राफेल की मल्टीरोल कॉम्बैट प्रणाली उसे ऐसे दुर्गम इलाकों में भी दुश्मन के छक्के छुड़ाने के लिए काफी है. इसके अलावा असम के तेजपुर और छाबुआ में सुखोई-30एमकेआई फाइटर जेट भी तैनात हैं. राफेल और सुखोई अगर एकसाथ आसमान में उड़ जाएं तो दुश्मन की हालत खराब हो जाती है. (फोटोः गेटी)

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रॉफेल का कॉम्बैट रेडियस 3700 KM है, जबकि चीन के स्वदेशी फाइटर जेट J-20 (फोटो में) का 3400 किलोमीटर है. यानी हमारा लड़ाकू विमान 300 किलोमीटर ज्यादा उड़ सकता है. यानी अपने बेस स्टेशन से जितनी दूर विमान जाकर सफलतापूर्वक हमला कर लौट सकता है, उसे कॉम्बैट रेडियस कहते हैं. राफेल में तीन तरह की मिसाइलें लगेंगी. हवा से हवा में मार करने वाली मीटियोर मिसाइल. हवा से जमीन में मार करने वाल स्कैल्प मिसाइल. तीसरी है हैमर मिसाइल. इन मिसाइलों से लैस होने के बाद राफेल काल बनकर दुश्मनों पर टूट पड़ेगा. 

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मीटियोर मिसाइल 150 किलोमीटर, स्कैल्फ मिसाइल 300 किलोमीटर तक मार कर सकती है. जबकि, हैमर का उपयोग कम दूरी के लिए किया जाता है. ये मिसाइल आसमान से जमीन पर वार करने के लिए कारगर साबित होती है. जबकि, चीन के J-20 जेट में सिर्फ दो प्रकार की मिसाइलें लग सकती है. पीएल-15 जो 300 किलोमीटर हमला करती है. दूसरी पीएल-21 जिसकी रेंज 400 किलोमीटर है. राफेल 300 मीटर प्रति सेकेंड की गति से हवा में सीधी उड़ान भर सकता है, जबकि चीन का जे-20 जेट 304 मीटर प्रति सेकेंड से. (फोटोः गेटी)

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चीन के जे-20 फाइटर जेट की स्पीड 2100 किलोमीटर प्रति घंटा है. जबकि, भारतीय राफेल की गति 2450 किलोमीटर प्रतिघंटा है. यानी ध्वनि की गति से दोगुनी स्पीड.  राफेल ओमनी रोल लड़ाकू विमान है. यह पहाड़ों पर कम जगह में उतर सकता है. इसे समुद्र में चलते हुए युद्धपोत पर उतार सकते हैं. राफेल चारों तरफ निगरानी रखने में सक्षम है. इसका टारगेट अचूक होगा. जबकि, चीन का जे-20 इन सुविधाओं से विहीन है. असल में चीन के पास हिमालय के पहाड़ों में तेजी से हमला करने और उड़ने वाले फाइटर जेट कम हैं.  (फोटोः विकीपीडिया)

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ब्रह्मोस मिसाइलों की ताकत से पूरी दुनिया वाकिफ है. यह भारत की सबसे घातक मिसाइल है. भारतीय सेना (Indian Army) ने इसे 21 जून 2007 में शामिल किया था. भारतीय सेना के पास ब्रह्मोस मिसाइल की तीन रेजीमेंट्स हैं. जो अलग-अलग स्थानों पर तैनात हैं, जिनमें से रेजिमेंट करगिल में है. इसके अलावा चीन की हरकतों को देखते हुए भारतीय सेना ने लंबी दूरी के निर्भय और आकाश मिसाइलों को भी लद्दाख के पास तैनात कर रखा है. 

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भारतीय नौसेना (Indian Navy) के राजपूत क्लास डेस्ट्रॉयर्स INS रणवीर और INS रणविजय में, तलवार क्लास फ्रिगेट INS तेग, INS तरकश, INS त्रिकंड में, शिवालिक क्लास फ्रिगेट में, कोलकाता क्लास विध्वंसक के INS चेन्नई में ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात हैं. इसके अलावा विशाखापट्टनम क्लास डेस्ट्रॉयर में भी ब्रह्मोस लगाए जाएंगे. भविष्य में आने वाले नीलगिरी क्लास फ्रिगेट में भी ब्रहमोस मिसाइलों को तैनात करने की तैयारी की जा रही है. 

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भारतीय वायुसेना के सुखोई-30MKI फाइटर जेट्स में भी ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात हैं. इसकी रेंज 500 किलोमीटर है. भविष्य में ब्रह्मोस मिसाइलों को मिकोयान मिग-29के, हल्के लड़ाकू विमान तेजस और राफेल में भी तैनात करने की योजना है. इसके अलावा पनडुब्बियों में लगाने के लिए ब्रह्मोस के नए वैरिएंट का निर्माण जारी है. अगले साल तक इन फाइटर जेट्स में ब्रह्मोस मिसाइलों को तैनात करने की तैयारी पूरी होने की संभावना है. 

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ब्रह्मोस मिसाइलों के एंटी-शिप वर्जन का पिछले साल दिसंबर में सफल परीक्षण हो चुका है. इसके अलावा ब्रह्मोस मिसाइलों के अलग-अलग वर्जन का परीक्षण समय-समय पर किया जा रहा है. यह एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है. यानी ऐसी मिसाइल जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़े ताकि दुश्मन के राडार को धोखा दिया जा सके. यह भारत की इकलौती ऐसी मिसाइल है, जिसे हवा, पानी, जमीन कहीं से भी दुश्मन पर दागा जा सकता है. 

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ब्रह्मोस मिसाइल हवा में ही मार्ग बदलने में सक्षम है. चलते-फिरते टारगेट को भी ध्वस्त कर सकता है. यह 10 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम हैं, यानी दुश्मन के राडार को धोखा देना इसे बखूबी आता है. सिर्फ राडार ही नहीं यह किसी भी अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में सक्षण है. इसको मार गिराना लगभगल अंसभव है. 

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ब्रह्मोस मिसाइल अमेरिका के टॉमहॉक मिसाइल की तुलना में दोगुनी अधिक तेजी से वार करती है. इसकी प्रहार क्षमता टॉमहॉक मिसाइल से कई गुना ज्यादा है. यह रैमजेट (Ramjet) तकनीक से बनी मिसाइल है, यानी उड़ते समय हवा को खींचकर अपनी गति और ऊर्जा को बढ़ा लेती है. यह मिसाइल 1200 यूनिट की ऊर्जा पैदा करती है, जो किसी भी बड़े टारगेट को मिट्टी में मिला सकता है.  (फोटोः विकीपीडिया)

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