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साइंस न्यूज़

वैज्ञानिकों को पता चला कि सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा कैसे आई थी?

aajtak.in
  • कैनबरा,
  • 12 मई 2022,
  • अपडेटेड 8:58 AM IST
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लगभग 25.2 करोड़ साल पहले दुनिया ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के बेहद एक कठिन दौर से गुजर रही थी. इसकी वजह का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास घटना पर फोकस किया. साइबेरिया (Siberia) में एक ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption) हुआ था, जिससे भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) वातावरण में फैल गई थी. (सांकेतिक फोटोः Pixabay)

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हालांकि, इस बात के सबूत हैं कि जलवायु में इससे पहले से ही बदलाव हो रहे थे. हजारों सालों में समुद्र की सतह का तापमान में 6-8 ℃ से ज्यादा बढ़ गया था. ज्वालामुखी विस्फोट के बाद तापमान फिर इतना बढ़ा कि 85-95% जीवित प्रजातियां विलुप्त हो गईं. साइबेरिया के विस्फोट ने साफ तौर पर पृथ्वी पर असर डाला था, लेकिन विशेषज्ञ अब भी इस बात से परेशान थे कि इससे पहले हुई वार्मिंग का कारण क्या था. (सांकेतिक फोटो: Pixabay)

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नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए एक शोध से पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया (Australia) के प्राचीन ज्वालामुखियों की वजह से ऐसा हुआ था. साइबेरिया में हुई इस घटना से पहले, उत्तरी न्यू साउथ वेल्स (Northern New South Wales- NSW) में विनाशकारी विस्फोटों (Catastrophic Eruptions) से पूर्वी तट पर ज्वालामुखी की राख इकट्ठा हो गई थी. (सांकेतिक  फोटोः Pixabay)

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ये विस्फोट इतने बड़े थे कि इसी से दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा की शुरुआत हुई. इसके प्रमाण अब ऑस्ट्रेलिया के तलछट (Sediment) के मोटे ढेर में छिपे हुए हैं. शोध में इस बात की पुष्टि की गई है कि 25.2 से 25.6 करोड़ साल पहले, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया बार-बार हुए सुपर विस्फोटों (Super Eruptions) से हिल गया था. सुपर इरप्शन की वजह से भारी मात्रा में राख और गैस वायुमंडल में फैल गए थे. (Photo: Ian Metcalfe)

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सेडिमेंट्री चट्टानों में हमें ज्वालामुखी की राख की हल्के रंग की परतों में इस बात के सबूत दिखते हैं. ये परतें सिडनी से लेकर टाउन्सविले के पास तक, NSW और क्वींसलैंड (Queensland) के काफी बड़े इलाके में पाई जाती हैं. (सांकेतिक फोटो: Pixabay)

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40 लाख वर्षों में उत्तरी NSW ज्वालामुखियों से कम से कम 150,000 क्यूबिक किलोमीटर सामग्री निकली थी. ऑस्ट्रेलियाई विस्फोटों की वजह से पूरे पूर्वी तट राख से ढक गए होंगे. कुछ जगहों पर तो एक मीटर से भी मोटी परत रही. ग्रीनहाउस गैसों के बड़े पैमाने पर फैलने से वैश्विक जलवायु परिवर्तन (Climate Change) शुरू हो गया होगा. (सांकेतिक फोटोः Pixabay)

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प्राचीन सेडिमेंटरी चट्टानें हमें विस्फोटों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के समय के बारे में बताती हैं. पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में आज के कोयले के भंडार से पता चलता है कि इस इलाके में प्राचीन जंगल हुआ करते थे. हालांकि, सुपर विस्फोटों के बाद, ये जंगल तबाह हो गए. प्लांट मैटर दलदल में जमा हो गए और फिर सेडिमेंट्स के नीचे दब गए. गर्मी और दबाव से यह मैटर कोयले में बदल गए. जंगलों के बिना ईकोसिस्टम (Ecosystem) ध्वस्त हो गया और ज्यादातर जानवर विलुप्त हो गए. (सांकेतिक फोटो: Pixabay)

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ईकोसिस्टम (Ecosystem) का यह पतन ऑस्ट्रेलिया तक ही सीमित नहीं रहा. आपदा ने सभी प्राचीन महाद्वीपों को भी प्रभावित किया. जीवन के विकास पर इसका काफी असर पड़ा, जिसकी वजह से डायनासोर (Dinosaurs) का जन्म हुआ. (सांकेतिक फोटोः Pixabay)

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