शनि ग्रह (Saturn) के पास कई चांद हैं. लेकिन उनमें एक छोटा सा बर्फीला चांद है इंसीलेडस (Enceladus). इसके ध्रुवीय इलाके से अंतरिक्ष में पानी के बड़े-बड़े फव्वारे छूट रहे हैं. इन फव्वारों के साथ अंतरिक्ष में जैविक कण (Organic Molecules) भी अंतरिक्ष में फैल रहे हैं. सवाल ये उठ रहा है कि कैसे ये फव्वारे निकल रहे हैं. क्या वहां पर एलियन हैं. आइए समझते हैं इस हैरान करने वाली घटना की पूरी कहानी... (फोटोः NASA)
असल में इंसीलेडस (Enceladus) के क्रस्ट में मौजूद तरल बर्फीले समुद्र को सूरज की गर्मी भाप बनाती है. शनि ग्रह का गुरुत्वाकर्षण उस भाप को बाहर की ओर खींचता है. फिर चांद की सतह से अक्सर ऐसे फव्वारे छूटते दिखते हैं. साल 2008 से 2015 के बीच अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) का कैसिनी स्पेसक्राफ्ट (Cassini Spacecraft) ने इस चांद को देखा तो वैज्ञानिक हैरान रह गए. (फोटोः NASA)
कैसिनी ने इंसीलेडस (Enceladus) से पानी के फव्वारे निकलते देखे. स्पेसक्राफ्ट में लगे मास स्पेक्ट्रोमीटर ने जीवन को पैदा करने वाले जैविक कणों यानी ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स को इन फव्वारों के साथ निकलते देखा. इसके अलावा मॉलीक्यूलर हाइड्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन और पत्थरों के टुकड़े भी निकलते देखे गए. कैसिनी के ऑब्जरवेशन से पता चलता है कि इंसीलेडस (Enceladus) के समुद्र में रहने योग्य हाइड्रोथर्मल वेंट्स हैं. जैसे हमारी धरती के समुद्रों की गहराइयों और अंधेरे में कुछ गुफाएं हैं. (फोटोः NASA)
इतनी गहराइयों और अंधेरे में आमतौर पर मीथैनोजेन्स (Methanogens) रहते हैं. वो जीव जो मीथेन गैस के जरिए सर्वाइव करते हैं. क्योंकि यहां तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती. इनकी वजह से ही धरती पर भी जीवन की शुरुआत हुई थी. इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि ग्रह के चांद इंसीलेडस (Enceladus) पर भी मीथैनोजेन्स हो सकते हैं. वहां के समुद्र में भी सूक्ष्म जीव जीवित हो सकते हैं. (फोटोः NASA)
इंसीलेडस (Enceladus) एक बर्फीली दुनिया है. जो हमारे सौर मंडल के लगभग बाहरी इलाके में स्थित है. इस चांद की सतह पर समुद्र नहीं है, बल्कि सतह के नीचे हैं. ऐसी ही दुनिया बृहस्पति (Jupiter) के चांद यूरोपा और नेपच्यून (Neptune) के चांद ट्राइटन पर भी है. दुनियाभर के साइंटिस्ट को लगता है कि इन स्थानों का वायुमंडल और इलाका रहने योग्य या जीवन को विकसित करने लायक होगा. इंसानों को वहां जाकर एलियन जीवन (Alien Life) की तलाश करनी चाहिए. (फोटोः NASA)
कई बार वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे चुके हैं कि सुदूर तारों और ग्रहों पर परग्रही जीवन (Alien Life) है, जो इंसानों की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान हो सकते हैं. इंसीलेडस (Enceladus) से निकलने वाले पानी के फव्वारे हमें इस बात का सबूत देते हैं कि धरती से बाहर भी जीवन संभव है. या हो सकता है कि वहां पर जीवन हो, जिसके बारे में हमें पता नहीं है. सवाल ये भी उठता है कि इंसीलेडस बना कैसे? (फोटोः गेटी)
सूक्ष्म जीवन (Microbial Life) का मतलब हमेशा ये नहीं होता कि जैविक कण और उच्च स्तर की मीथेन वहां पर मौजूद है. इसका योगदान हो सकता है, लेकिन सिर्फ इकलौती वजह नहीं. अगर इंसीलेडस (Enceladus) के बनते समय इस पर कई धूमकेतुओं की बारिश हुई होगी तो इसके अंदर मीथेन की काफी ज्यादा मात्रा जमा हो गई होगी. जो धीरे-धीरे ग्रहीय नालियों यानी वेंट के जरिए लीक हो रही हैं. (फोटोः NASA)
मीथेन का खासियत होती है कि जब वह गर्म होती है, तब वह खत्म होने के लिए खुली जगह खोजती है. बाहर निकलना चाहती है. वायुमंडल में आते ही ये हाइड्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड और मीथेन के कणों में बिखर जाती है. अगर फिर से इंसीलेडस (Enceladus) पर नया मिशन भेजा जाए तो पता चलेगा कि यह कैसे बना? इस पर जीवन है या नहीं. फव्वारे निकलने जारी हैं, या फिर बंद हो गए. (फोटोः NASA)
इस दशक में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) अपना जूस (JUICE) स्पेसक्राफ्ट और नासा यूरोपा क्लिपर मिशन भेज रहा है. लेकिन ये दोनों ही बृहस्पति ग्रह के चंद्रमाओं पर जीवन की खोज करेंगे. ये पता करेंगे कि क्या इन चांद पर रहा जा सकता है. इस दशक के अंत तक नासा ड्रैगनफ्लाई (Dragonfly) नाम का मिशन लॉन्च कर रहा है, जो टाइटन (Titan) की सतह पर उतरेगा. ताकि वहां पर जांच करके जीवन की संभावना को तलाश सके. (फोटोः निक ओबरेग/यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रोनिजेन)
इसके अलावा नासा कैसिनी का अगला मिशन भी सोच रहा है. जैसे इंसीलेडस लाइफ फाइंडर (Enceladus Life Finder) और टाइगर (Tiger). ये मिशन शनि ग्रह के चांद इंसीलेडस (Enceladus) पर जाकर Alien जीवन की खोज करने में जुटेंगे. लेकिन इसमें अभी समय है. इसके लिए ताकतवर मास स्पेक्ट्रोमीटर बनाए जा रहे हैं. ताकि ज्यादा जैविक कणों की खोज कर सकें. (फोटोः NASA)
NASA का एक प्लान और है कि वो ऐसे स्पेसक्राफ्ट बनाएगा, जो हाइब्रिड होंगे. यानी वो ऑर्बिट में भी चक्कर लगा सकेंगे और लैंडिंग भी कर सकेंगे. जरूरत पड़ने पर वापस ग्रह से दूर कक्षा में निकल जाएंगे. ताकि उनके जीवन को कोई खतरा न हो. लेकिन इसके लिए काफी ज्यादा समय लगेगा. ऐसे स्पेसक्राफ्ट को नासा ने ऑर्बिलैंडर (Orbilander) नाम दिया है. इनकी लॉन्चिंग साल 2038 तक होने की संभावना है. इनका काम एलियन लाइफ खोजना होगा. (फोटोः गेटी)