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साइंस न्यूज़

मंगल की डरावनी 'मकड़ियों' का रहस्य दो दशक बाद खुला, जानिए क्या है ये?

aajtak.in
  • लंदन,
  • 06 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST
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मंगल ग्रह पर बेहद डरावनी और घिनौनी 'मकड़ियां' हैं. इनकी खोज दो दशक पहले हो गई थी लेकिन ये क्या हैं? इस रहस्य से पर्दा अब उठा है. अब ये बात तो सच है कि मंगल पर मकड़ी तो जीवित नहीं रह सकती. लेकिन वैसी आकृतियां जरूर बनी हैं लाल ग्रह पर. ये तब नजर आती हैं, जब आप मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव की तरफ की तस्वीरें लें. या सैटेलाइट्स द्वारा ली गई फोटो को देखें. (फोटोः NASA/MARS Spiders)
 

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मकड़ियों जैसी आकृतियों को ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि ये कई शाखाओं वाली आकृतियां हैं. वैज्ञानिक इन्हें एरेनीफॉर्म्स (Araneiforms) कहते हैं. एरेनीफॉर्म्स का मतलब होता है स्पाइडर जैसा यानी मकड़ी जैसा. आमतौर पर इनका केंद्र गहरे रंग का होता है. काले या भूरे रंग का. जबकि शाखाएं हल्के रंग की होती हैं. हालांकि यह हमेशा नहीं होता. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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मंगल ग्रह पर मौजूद मकड़ियों जैसी आकृतियां धरती पर मौजूद किसी भी भौगोलिक आकृतियों से नहीं मिलती. मंगल की मकड़ियां करीब 3300 फीट यानी 1 किलोमीटर तक लंबी हो सकती हैं. 19 मार्च को साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम के जर्नल में इसके बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में मंगल ग्रह की मकड़ियों वाली आकृति को विकसित करने में सफलता पाई है. उन्होंने कार्बन डाईऑक्साइड आइस (Carbon Dioxide Ice) यानी जिसे ड्राई आइस (Dry Ice) का स्लैब लिया. एक मशीन बनाई जो मंगल के वायुमंडल की नकल करता है. जब ठंडी बर्फ मंगल ग्रह के गर्म मिट्टी से टकराती है तो वह तेजी से सॉलिड से गैस बनने लगता है. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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कठोर बर्फ से गैस बनने की प्रक्रिया के दौरान जो दरारें बनती हैं. जो उभार बनते हैं. ये मकड़ियों जैसी आकृतियां बनाती है. क्योंकि कठोर बर्फ के अंदर से गैस तेजी से निकलती है. इससे मकड़ियों जैसी आकृतियों वाली शाखाएं बनती हैं. इंग्लैंड की ओपन यूनिवर्सिटी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट लॉरेन मैककियोन ने कहा कि मंगल ग्रह के ध्रुवीय लैंडस्केप का यह पहली लैब निर्मित सतह है. जिसपर हमने यह प्रयोग किया है. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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लॉरेन ने बताया कि प्रयोगशाला में हमने जो पैटर्न देखा वो मंगल ग्रह के सतह पर दिखने वाली मकड़ियों की आकृतियों जैसी ही थी. ये बताता है कि वहां मौजूद ड्राई आइस जब तेजी से गैस में बदलती है तो ये आकृतियां बनने लगती हैं. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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NASA के मुताबिक मंगल ग्रह के वायुमंडल में 95 फीसदी कार्बन डाईऑक्साइड है. इसलिए सर्दियों के मौसम में जब लाल ग्रह के ध्रुवों पर बर्फ जमती है, वह भी कार्बन डाईऑक्साइड से बनती है. साल 2003 में की गई एक स्टडी के मुताबिक मंगल ग्रह की मकड़ियां बसंत ऋतु में दिखाई देती हैं. जब बर्फ गर्म होती है तो वह टूटने लगती है. इससे मकड़ियों जैसी आकृतियां बनने लगती हैं. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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मकड़ियों के पैर जैसी शाखाओं से कार्बन डाईऑक्साइड तेजी से निकलने लगती है. जिसकी वजह से वो स्थान गहरे रंग का हो जाता है. लेकिन 2003 की थ्योरी थी. इसका परीक्षण आज की तारीख में वैज्ञानिक धरती पर कर नहीं सकते. इसलिए बाद में धरती पर मंगल ग्रह के वायुमंडल और सतह बनाने की तैयारी की गई. इसके लिए एक यंत्र बनाया गया जिसका नाम है ओपन यूनिवर्सिटी मार्स सिमुलेशन चेंबर (Open University Mars Simulation Chamber). (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रकार की मिट्टी को चैंबर में रखा. इसके ऊपर ड्राई आइस का एक स्लैब रखा गया. चैंबर का वातावरण मंगल ग्रह के अनुरूप बनाया गया. जैसे ही तापमान बढ़ा कार्बन डाईऑक्साइड बर्फ के अंदर से निकलने लगी. इससे मकड़ी के पैरों की तरह आकृतियां बनने लगीं. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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बड़े पैमाने पर ऐसे प्रयोग होते हैं तो ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं. लेकिन फिलहाल लैब में हुए प्रयोग से एक बात तो साफ हो जाती है कि मंगल ग्रह की मकड़ियों का रहस्य आखिरकार दो दशक के बाद खुल गया है. (फोटोः NASA/MARS Spiders)

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