मास्क फिर से निकाल लीजिए अगर रख दिया हो. क्योंकि अब कोरोना नहीं दिल्ली का प्रदूषण आपके फेफड़ों में जहर भरने वाला है. हर साल की तरह इस साल भी. दिल्ली की सरकार पड़ोस के राज्यों पर ठीकरा फोड़ेगी. आजू-बाजू वाले राज्य अलग बहाने बनाएंगे. लेकिन सब ऐसे ही चलता रहेगा. Air Quality Index सुधारने के लिए ऑड-ईवन से कुछ नहीं होगा. दुनिया में सात ऐसे शहर थे, जहां कभी दिल्ली जैसे हालात थे. लेकिन उन्होंने अपने प्रयासों से उस पर काबू पा लिया. सरकार के साथ स्थानीय लोगों ने कड़े फैसले लिए. उसे लागू किया. तब जाकर चैन की सांस ले पा रहे हैं वहां के लोग. (फोटोः इंडिया टुडे)
Air Pollution खतरनाक क्यों है? तो ऐसे समझ लीजिए कि हर साल दुनिया में इसकी वजह से 70 लाख लोगों की मौत होती हैं. यानी प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों की वजह से. दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली का नाम हर बार आ ही जाता है. अपने देश में ही हर साल 20 लाख लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से होती है. जानते ये सात शहर कौन से हैं. (फोटोः पीटीआई)
बैंकॉक (Bangkok): थाईलैंड की राजधानी 90 के दशक में वायु प्रदूषण की समस्या से भयानक स्तर पर जूझ रही थी. तब सरकार, स्थानीय प्रशासन और लोगों ने मिलकर सख्त फैसले लिए. ज्यादा प्रदूषण वाली गड़ियों को चलाने पर रोक लगाई. कुछ दिनों के स्कूल बंद करने पड़े. ताकि बच्चे सुरक्षित रहें. प्रदूषण फैलाने वाली जगहों पर निगरानी के लिए पुलिस और सेना तैनात की गई. आसमान से प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बारिश की गई. इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मात्रा बढ़ाई गई. कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए इंडस्ट्री के लिए कड़े नियम बनाए. लागू कराया. तब राहत मिली. (फोटोः गेटी)
ज्यूरिख (Zurich): स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में प्रदूषण न फैले इसके लिए पार्किंग स्पेस को सीमित कर दिया गया. सिर्फ एक घंटे पार्किंग मुफ्त थी. उसके बाद तगड़ी फीस लगा दी गई. सड़कों पर एक समय में कितनी गाड़ियां होंगी. यह भी नियंत्रित किया गया. शहर में कई जगहों पर कार-मुक्त ज़ोन बनाए गए हैं. सार्वजनिक वाहनों जैसे ट्राम को बढ़ावा दिया गया. लोगों को सार्वजनिक वाहनों के उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है. (फोटोः गेटी)
कोपेनहेगन (Copenhagen): डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन की आबादी 19 लाख के आसपास है. यहां लोग सार्वजनिक वाहनों से ज्यादा चलते हैं. चार पहिया या दोपहिया की तुलना में लोग साइकिल पसंद करते हैं. लोग सूट-बूट में साइकिल चलाते दिख जाते हैं. प्रदूषण घटाने का इनका प्रयास बेहद अनोखा है. साइकिल से प्रदूषण होता नहीं, साथ ही सेहत भी बनी रहती है. (फोटोः गेटी)
एम्सटर्डम (Amsterdam): नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम में सार्वजनिक वाहन और साइकिलों पर ही जोर है. इस शहर में अगले तीन सालों में सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही चलेंगी. 2030 के बाद पेट्रोल-डीजल पर चलने वाली गाड़ियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की योजना है. इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है. सोलर पावर जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक उपयों को बढ़ावा दिया जा रहा है. (फोटोः गेटी)
पेरिस (Paris): यूरोपीय शहर पेरिस अपने उद्योगों की वजह से प्रदूषण से जूझ रहा था. लेकिन फ्रांस की राजधानी ने टेक्नोलॉजी और प्रकृति को साथ लेकर चलने का फैसला लिया. ऐतिहासिक जिलों और स्थलों पर वीकेंड में निजी गाड़ियों को प्रतिबंधित कर दिया. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मुफ्त कर दिया. कार और बाइक शेयरिंग को बढ़ावा देने के उपाय किए गए. इलेक्ट्रिक वाहनों और साइकिल को बढ़ावा दिया जा रहा है. (फोटोः गेटी)
मेक्सिको सिटी (Mexico City): मेक्सिको सिटी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था. यहां आबादी 90 लाख है. यानी लोग ज्यादा हैं. प्रदूषण तो होगा ही. लेकिन सरकार, स्थानीय प्रशासन और लोगों ने मिलकर इसे सुधारा. तकनीकों में बदलाव किया गया. ईंधन से शीशे की मात्रा घटाने वाली तकनीक का उपयोग किया गया. प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों को बंद किया गया. वैकल्पिक ईंधन और ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया गया. 90 के दशक में PM 2.5 का स्तर 300 µg/m3 था. चार साल पहले वह घटकर 100 के स्तर पर आ गया था. (फोटोः गेटी)
बीजिंग (Beijing): 90 के दशक में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर. चीन की राजधानी ने PM 2.5 की मात्रा को 1998 की तुलना में 98 फीसदी और 2013 की तुलना में 35 फीसदी घटाकर 58ug/m3 कर दिया है. कोयला का उपयोग घटाया गया. प्रदूषण वाली गाड़ियों में कमी की गई. साफ ईंधन के विकल्प तलाशकर उन्हें लागू किया गया. कड़े और सख्त नियम बनाए गए. वर्टिकल फॉरेस्ट बनाए गए. यानी इमारतों, ब्रिजों आदि पर प्रदूषण सोखने वाले पौधे लगाए गए. 100-100 मीटर ऊंचे स्मॉग टावर लगाए गए. ग्रीन तकनीक को बढ़ावा दिया गया. (फोटोः गेटी)