रविवार यानी 28 मार्च 2021 को आसमान में चंद्रमा अपने पूरे रूप में होगा. यानी सुपरमून...वो भी फुल. लेकिन बंसत ऋतु में दिख रहे इस फुल सुपरमून को साइंटिस्ट और कुछ लोग वॉर्म मून (Worm Moon) क्यों कह रहे हैं. शब्दों के अर्थ पर जाएं तो वॉर्म का मतलब हिंदी में कीड़ा होता है. तो क्या इसे 'कीड़ा चांद' कह सकते हैं? आइए जानते हैं कि इस सुपरमून को वॉर्म मून क्यों कहा जाता है? इसके पीछे की असल कहानी क्या है? क्या इससे धरती पर कोई असर पड़ेगा? (फोटोःगेटी)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक वॉर्म मून यानी 'कीड़ा चांद' 28 मार्च की रात्रि 12:30 के बाद दिखाई देगा. अगर किसी वजह से आप इसे रात में नहीं देख सके तो दुखी होने की जरूरत नहीं है. ये 30 मार्च तक हर रात दिखाई पड़ेगा, लेकिन इसके आकार में मामूली बदलाव होता रहेगा. ये फुल सुपरमून नहीं रहेगा. (फोटोःगेटी)
सुपरमून (Supermoon) शब्द का उपयोग सबसे पहले एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोले (Richard Nolle) ने 1979 में किया था. उनकी परिभाषा के अनुसार सुपरमून उसे कह सकते हैं जो नया हो या फिर धरती की पेरिजी से 90 फीसदी हिस्से में दिखाई देता हो. यानी धरती के नजदीक हो. (फोटोःगेटी)
जबकि एस्ट्रोनॉमर फ्रेड एस्पेनाक (Fred Espenak) का मानना इससे थोड़ा अलग है. वो कहते हैं कि जब चंद्रमा धरती के नजदीक होता है तभी उसे सुपरमन की कैटेगरी में रखना चाहिए. कुछ साइंटिस्ट्स का मानना है कि इस साल मार्च से जून तक चार सुपरमून दिखाई देंगे. जबकि कुछ कह रहे हैं कि अप्रैल से जून तक तीन ही हैं. यानी मार्च वाले को कुछ लोग सुपरमून नहीं मानते. (फोटोःगेटी)
NASA के मुताबिक सबसे बड़े सुपरमून अप्रैल और मई में दिखाई देंगे. 26 अप्रैल 2021 को सुपरमून दिखेगा. इसके बाद फिर 26 मई को दिखाई देगा. इनके आकार में 0.04% का अंतर होगा. जो पता नहीं चलेगा. ये तब होगा जब चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक होगा. (फोटोःगेटी)
वैसे तो रविवार यानी 28 मार्च को दिखने वाले सुपरमून को दुनिया में कई नामों से बुलाया जा रहा है. लेकिन सबसे हैरान करने वाला नाम है 'कीड़ा चांद' (Worm Moon). इसका ये नाम 1930 में तब जिक्र में आया था जब माएन फार्मर्स अल्मानैक (Maine Farmer's Almanac) में इसके बारे में रिपोर्ट छपी थी. (फोटोःगेटी)
नेटिव अमेरिका में रहने वाले आदिवासियों की लोक कथाओं के अनुसार मार्च महीने में दिखने वाले सुपर मून को 'कीड़ा चांद' (Worm Moon) कहते थे. ऐसा इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस समय धरती से कीड़े निकलने लगते थे. हालांकि, जिन अकशेरुकीय कीड़ों की कहानियां सुनाई जाती हैं वो 12 हजार साल पहले हिमयुग के समय खत्म हो गए थे. (फोटोःगेटी)
NASA का मानना है कि सारे कीड़े नहीं मरे थे. इनमें से कुछ वर्तमान में यूरोप और एशिया में पाए जाते हैं. जब भी यूरोप और एशिया के ग्लेशिय पिघलते हैं, तब ये कीड़े बाहर निकलकर आते हैं. इसलिए नेटिव अमेरिकी आदिवासी मार्च में निकलने वाले सुपरमून को 'कीड़ा चांद' (Worm Moon) बुलाते हैं. (फोटोःगेटी)
सुपरमून 'कीड़ा चांद' (Worm Moon) को दुनिया में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. जैसे- Crow Moon, Crust Moon, Sap Moon और Sugar Moon. अमेरिका के उत्तरपश्चिम में स्थित राज्यों में इसे Crow Moon बुलाया जाता है. क्योंकि इस समय कौवे बहुत आवाज करते हैं. सर्दियां खत्म होने लगती हैं. बर्फ की पहली परत यानी Crust पिघलने लगती है. इसलिए इसे Crust Moon भी कहा जाता है. (फोटोःगेटी)
हिंदू परंपराओं के मुताबिक फुल मून यानी पूर्णिमा 28 मार्च को है. इस दिन होलिका दहन भी है. ये बुराई पर अच्छाई के विजय का पर्व है. वहीं, श्रीलंका में इस 'कीड़ा चांद' (Worm Moon) को मेदिन या मदिन पोया (Medin Or Medin Poya) कहा जाता है. श्रीलंका में इसे भगवान बुद्ध के प्रबोधन प्राप्त करने के बाद अपने पिता से पहली मुलाकात की खुशी में मनाया जाता है. (फोटोःगेटी)