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धोखा देकर धरती की ओर आ रहे हैं 'दुर्लभ पत्थर', उल्कापिंडों की ऐसी बारिश न कभी हुई, न होगी

aajtak.in
  • ह्यूस्टन,
  • 12 मई 2021,
  • अपडेटेड 10:10 PM IST
Finlay-id Meteor Shower
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इस साल अंतरिक्ष से बेहद दुर्लभ उल्कापिंडों की बारिश होने वाली है. इससे पहले ये उल्कापिंड कभी नहीं देखे गए. ये वैज्ञानिकों को धोखा देकर चुपके से धरती की ओर बढ़ रहे थे. लेकिन एक ताकतवर टेलिस्कोप ने इसे पकड़ लिया. अब साइंटिस्ट इन पर नजर रख रहे हैं. इन उल्कापिंडों की बारिश इससे पहले न कभी देखी गई. न ही भविष्य में दोबारा इनके धरती की तरफ आने की कोई उम्मीद है. वैज्ञानिकों का अंदाजा है कि इस साल सिंतबर या अक्टूबर में ये धरती के दक्षिणी इलाके के आसमान को आतिशबाजी से जगमग करेंगे. (फोटोःगेटी)

Finlay-id Meteor Shower
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इस उल्कापिंड की बारिश (Meteor Shower) को फिनले-आईडी (Finlay-id) कहा जा रहा है. यह धरती के दक्षिण गोलार्ध वाले देशों को ही दिखाई देगी. क्योंकि ये लगातार 10 दिनों तक होती रहेगी. इसकी आतिशबाजी थोड़ी कमजोर होगी यानी छोटे-छोटे उल्कापिंड गिरेंगे, जो वायुमंडल में आते ही जल उठेंगे. इन्हीं को हम टूटता हुआ तारा यानी शूटिंग स्टार कहते हैं. फिर मन्नतें मांगते हैं. (फोटोःगेटी)

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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (Goddard Space Flight Center) के रिसर्च एस्ट्रोफिजिसिस्ट डिएगो जान्शेच ने कहा कि ये एक दुर्लभ उल्कापात है. ऐसे उल्कापात को पकड़ना और उनके बारे में जानकारी हासिल करना बेहद मुश्किल होता है. ये कई दिनों से धरती की ओर आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन हमें हाल ही में उनके बारे में पता चला. (फोटोःगेटी)

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डिएगो की मानें तो फिनले-आईडी (Finlay-id) उल्कापिंड आरा नक्षत्र (Ara Constellation) से आ रहे हैं. इस नक्षत्र को 'द अल्टर' (The Altar) भी कहते हैं. हालांकि ये अभी तक पुख्ता नहीं हो पाया है कि इन उल्कापिंडों की उत्पत्ति कहां से हुई है. क्योंकि ये एकदम नई घटना है. इससे पहले हमने ऐसा कुछ नहीं देखा है. (फोटोःगेटी)

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डिएगो ने बताया कि हमारी गणना के अनुसार फिनले-आईडी (Finlay-id) की बारिश सितंबर महीने के अंत से लेकर 7 अक्टूबर तक होगी. हालांकि ये थोड़ा-बहुत आगे-पीछे हो सकती है. अब मुद्दा ये है कि आखिर कार ये उल्कापिंड आते कहां से हैं. धरती सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाती है. इस दौरान वह कई बार धूमकेतु (Comets) और एस्टेरॉयड्स (Asteroids) के पथरीले कचरे के बीच से निकलती है. (फोटोःगेटी)

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जब ये पथरीले कचरे धरती के वायुमंडल से टकराते हैं तो ये गुरुत्वाकर्षण के चलते जलते हुए धरती की ओर बढ़ते हैं. कई बार ये कई दिनों तक दिखते हैं कई बार ये कम समय में गायब हो जाते हैं. ये निर्भर करता है कि धरती उस समय कितने बड़े पथरीले कचरे के बादलों के बीच से निकल रही है. इसीलिए आपने देखा होगा कि साल में दो उल्कापात बेहद प्रसिद्ध हैं. ये हैं पर्सीड्स (Perseids) और जेमिनिड्स (Geminids). (फोटोःगेटी)

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डिएगो कहते हैं कि फिनले-आईडी (Finlay-id) उल्कापात हर साल नहीं होगा. ये इतिहास में होने वाली इकलौती घटना है. क्योंकि हमें ये नहीं पता कि भविष्य में ये कब होगी. ये उल्कापा धूमकेतु 15P/फिनले के गुजरने की वजह से होगी. इसके पीछे जो पूंछ होती है वो टूट-टूटकर धरती के वायुमंडल में आएगी. हालांकि ये अभी तय नहीं हो पाया है कि इस धूमकेतु की पूंछ से धूल भी धरती पर गिरेगी या नहीं. (फोटोःगेटी)

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इसके पीछे वजह ये है कि उल्कापात के पीछे धूल की पूंछ धरती के घुमाव, उल्कापिंड की गति, आकार और वजन पर भी निर्भर करता है. डिएगो ने बताया कि आमतौर पर उल्कापिंडों की कक्षा अंडाकार होती है. इसलिए जब ये धरती के करीब आते हैं तो हमें आसमानी आतिशबाजी दिखती है. अगर यही कक्षा गोलाकार हो तो इतनी ज्यादा रोशनी देखने को नहीं मिलेगी. (फोटोःगेटी)

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डिएगो ने कहा कि फिनले-आईडी (Finlay-id) धूमकेतु की गति को सूरज से चलने वाले हवाएं कम कर रही हैं. सूरज से निकलने वाली ये चार्ज्ड कण और बृहस्पति ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इसकी गति को कम कर रहे हैं. फिनले के छोटे पत्थर अगर इन दोनों ताकतवर बाधाओं को पार कर लेते हैं तो ही ये धरती के ऊपर जलते हुए दिखाई देंगे. नहीं तो ये इतने छोटे हो जाएंगे कि खुली आंखों से नहीं दिखेंगे. इन्हें देखने के लिए टेलिस्कोप की जरूरत पड़ेगी. (फोटोःगेटी)

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डिएगो ने बताया कि नासा के साइंटिस्ट ने इसकी गति का अंदाजा लगाया है. यह धरती के वायुमंडल में 11 मीटर प्रति सेकेंड यानी 39,600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आएंगे. इतनी गति में ये बहुत जल्दी जलकर खाक हो जाएंगे. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इतने छोटे पत्थरों को खुली आंखों या राडार से देखना भी मुश्किल हैं क्योंकि राडार उल्कापिंडों का आयोनाइजेशन को पकड़ता है. यानी जब पत्थरों से इलेक्ट्रॉन निकलते हैं, तब वह उसे रिकॉर्ड करता है. (फोटोःगेटी)

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इसे देखने के लिए दुनिया में एकमात्र राडार है जो सही जगह पर बना हुआ है. वो है 54 डिग्री साउथ लैटिट्यूड पर स्थित साउदर्न अर्जेंटीना एजाइल मेटियोर राडार (SAAMER). ये टियेरा डेर फ्यूजो में स्थित एस्ट्रोनॉमिकल स्टेशन रियो ग्रांदे में बना हुआ है. यह दक्षिणी अमेरिकी के आखिरी छोर पर एक द्वीप पर बनाया गया है. यहां से धरती के दक्षिणी गोलार्ध का ज्यादातार हिस्सा कवर होता है. (फोटोःगेटी)

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साउदर्न अर्जेंटीना एजाइल मेटियोर राडार (SAAMER) की मदद करने के लिए नासा को गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर, नासा इंजीनियरिंग एंड सेफ्टी सेंटर, मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर, जॉन्सन स्पेस सेंटर एकसाथ काम कर रही हैं. इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी इस मिशन में शामिल हो रही हैं. (फोटोःगेटी)

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