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पेट में मिलने वाले कीड़े की दवा से Covid का इलाज संभव, नई स्टडी में खुलासा

aajtak.in
  • लंदन,
  • 09 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 12:23 PM IST
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फीता कृमि (Tapeworm) को ठीक करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवा से कोरोना वायरस का इलाज किया जा सकता है. एक नई स्टडी में यह दावा किया गया है. वैज्ञानिकों ने बताया है कि टेपवर्म की दवा में ऐसा मिश्रण है, जो कोविड-19 को ठीक करने में मददगार साबित हो सकता है. यह बात प्रयोगशाला में पुख्ता हो चुकी है. हाल ही यह स्टडी ACS इंफेक्शियस डिजीस नाम के जर्नल में प्रकाशित भी हुई है. (फोटोःगेटी)

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कैलिफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च में वॉर्म इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड मेडिसिन के प्रोफेसर किम जांडा और जूनियर प्रोफेसर एली आर. कैलावे ने फीता कृमि (Tapeworm) को ठीक करने वाली दवा से कोविड-19 को ठीक करने का दावा किया है. उनका कहना है कि फीता कृमि की दवा में सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) वर्ग का एक रसायन होता है जो कोरोना को रोकने में कारगर है. (फोटोःगेटी)

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किम जांडा ने कहा कि पिछले 10-15 सालों से यह बात पुख्ता थी कि सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) अलग-अलग तरह के वायरसों के खिलाफ सक्रियता से काम करता है. हालांकि यह आंतों से संबंधित और इसका टॉक्सिक असर भी हो सकता है. इसलिए हमने चूहों और कोशिकाओं पर अलग-अलग प्रकार प्रयोगशाला में परीक्षण किए. ताकि अपनी बात को पुख्ता तौर पर पुष्ट कर सकें. (फोटोःगेटी)
 

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किम जांडा ने कहा कि सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) एंटी-इंफ्लामेटरी ड्रग है. इसकी खोज सबसे पहले 1950 में जर्मनी में हुई थी. ताकि मवेशियों को फीता कृमि की बीमारी न हो. बाद में इसके कई प्रकार दवा बाजार में विकसित किए गए. जो अलग-अलग जीवों के लिए थे. एक प्रकार है निक्लोसैमाइड (Niclosamide) जिसका उपयोग इंसानों और जानवरों दोनों में किया जाता है. यह फीता कृमि के संक्रमण से लोगों को बचाता है. (फोटोःगेटी)

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जांडा और कैलावे ने सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) का नया कंपाउंड बनाया है. क्योंकि जांडा को पता था कि इस कंपाउंड में एंटीवायरस खूबियां हैं. जांडा ने पहले भी इस कंपाउंड पर काम किया था. उन्होंने पहले अपने आर्काइव से सारे डेटा निकाले. द यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच और सोरेंटे थेराप्यूटिक्स के साथ मिलकर कोरोना संक्रमित कोशिकाओं में सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) का उपयोग किया. यह असरदार साबित हुआ. (फोटोःगेटी)

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चूहों पर परीक्षण स्क्रिप्स रिसर्च के इम्यूनोलॉजिस्ट जॉन तीजारो कर रहे थे. उन्होंने कोरोना संक्रमित चूहों के शरीर में सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) को डाला. जब यह चूहों की आंतों में गया तो डर था कि इसका टॉक्सिक असर न हो. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह खून की नलियों में जाकर वायरस से लड़ने में मदद कर रहा था. किम ने कहा कि निक्लोसैमाइड (Niclosamide) आहार नाल में जाकर काम करता है. यहीं पर पैरासाइट रहते हैं. (फोटोःगेटी)

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सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) ने कोरोना संक्रमण पर दो तरह से असर डाला. पहला उसने वायरस के जेनेटिक मेटेरियल को संक्रमित कोशिकाओं से अलग किया. जिसे एंडोसाइटोसिस (Endocytosis) कहते हैं. एंडोसाइटोसिस में वायरस के अंदर मौजूद वायरल जील के बाहर एक लिपिड की परत चढ़ जाती है. जिससे वह निष्क्रिय हो जाता है. अगर वह कोशिका में चला भी जाता है तो वह आगे चलकर खुद को रेप्लिकेट नहीं कर पाएगा. (फोटोःगेटी)

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किम जांडा ने कहा कि फिलहाल हमें यह नहीं पता है कि सैलीसाइलैनिलिड्स (Salicylanilides) डेल्टा और लैम्ब्डा वैरिएंट पर असरदार होगा या नहीं. क्योंकि इसका मैकेनिज्म वायरस के प्रोटीन स्पाइक पर काम नहीं करता. यह वायरस के अंदर एक लिपिड की लेयर बनाने की कोशिश करता है. दूसरा ये है कि यह कपांउड शरीर में टॉक्सिक इन्फ्लेमेशन को कम करता है. यानी आपके शरीर में एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस से संबंधित समस्याएं फैलने से रुकेंगी. (फोटोःगेटी)

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