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साइंस न्यूज़

भारतवंशी वैज्ञानिकों ने स्पेस स्टेशन पर खोजे 3 बैक्टीरिया, ये मंगल ग्रह पर पौधे उगाने में मदद करेंगे

aajtak.in
  • ह्यूस्टन,
  • 10 मई 2021,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST
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मंगल ग्रह पर इंसानों के बसने से पहले एक बड़ी चुनौती है वहां फसल या पौधे उगाने की. ये चुनौती इंसानों के बसने या रुकने के बाद भी होगी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद वैज्ञानिकों ने ये काम आसान कर दिया है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स ने तीन ऐसे बैक्टीरिया खोजे हैं जो मंगल ग्रह पर फसल और पौधे उगाने में इंसानों की मदद करेंगे. (फोटोःगेटी)

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अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर मौजूद वैज्ञानिक हमेशा धरती और अंतरिक्ष की तस्वीरें ही नहीं लेते. बल्कि वहां पर कई अन्य तरह के प्रयोग भी चल रहे हैं. माइक्रोग्रैविटी और जीरो ग्रैविटी में पौधे कैसे उगे, इस पर भी रिसर्च चल रहा है. ऐसी कठिन परिस्थितियों में पौधे या फसलें कैसे लंबे समय तक टिके, इसे लेकर काफी रिसर्च चल रही है. कई फसलें तो उगाई भी जा रही हैं. इसके लिए साइंटिस्ट बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं. (फोटोःगेटी)

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स्पेस स्टेशन पर मौजूद वैज्ञानिक उसके अलग-अलग हिस्सों में पिछले छह सालों से पौधे उगा रहे हैं. मकसद है ऐसे सूक्ष्मजीवों की खोज करना जो फसलों और पौधों को उगाने में मदद करें. ये रिसर्च पिछले छह साल से चल रही है. आखिरकार स्पेस स्टेशन पर मौजूद साइंटिस्ट्स को बैक्टीरिया के चार अलग-अलग तरह के स्ट्रेन मिले हैं. इनमें से तीन ऐसे हैं जो मंगल ग्रह पर पौधे उगाने में मदद कर सकते हैं. इनमें से एक स्ट्रेन के बारे में तो पहले से पता था, लेकिन बाकी तीन एकदम नए हैं. (फोटोःगेटी)

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बैक्टीरिया के इन वैरिएंट्स को मिथाइलोबैक्टीरियासी (Methylobacteriaceae) कहते हैं. जो नए बैक्टीरिया स्ट्रेन खोजे गए हैं, वो रॉड के आकार के हैं और ये चलफिर सकते हैं. जब इनकी जेनेटिक जांच की गई तो पता चला कि ये मिथाइलोबैक्टीरियम इंडिकम (Methylobacterium Indicum) के नजदीकी रिश्तेदार हैं. स्पेस स्टेशन पर मौजूद एस्ट्रोनॉट्स का मानना है कि ये तीनों वैरिएंट्स मंगल ग्रह पर पौधे उगाने में मददगार साबित हो सकते हैं. (फोटोःगेटी)

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मिथाइलोबैक्टीरियम प्रजाति के बैक्टीरिया मंगल जैसे ग्रहों पर पौधे उगाने में मदद कर सकते हैं. क्योंकि ये ऐसी सतहों पर जहां पानी कम होता है या न के बराबर होता है वहां पर सतह पर मौजूद एजेंट्स को घुलनशील बनाने में मदद करते हैं. जैसे ये बैक्टीरिया मॉलिक्यूलर नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल देते हैं. या फिर अन्य नाइट्रोजन संबंधित अवयवों को मिट्टी में बढ़ाते हैं. इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation) कहते हैं. (फोटोःगेटी)

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इतना ही नहीं, मिथाइलोबैक्टीरियम प्रजाति के बैक्टीरिया पौधों पर हमला करने वाले पैथोजेन्स को रोकने में भी मदद करते हैं. नासा के वैज्ञानिक डॉ. नितिन कुमार सिंह और डॉ. कस्तूरी वेंकटेश्वरन ने बताया कि ये बैक्टीरिया भविष्य में अंतरिक्ष में फसलें और पौधे उगाने में भारी मदद करने वाले हैं. (फोटोःगेटी)

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डॉ. नितिन कुमार सिंह ने बताया कि अभी इसे लेकर और रिसर्च किया जा रहा है ताकि पूरी तरह से ये बात पुख्ता हो सके. इसके लिए मंगल ग्रह जैसा वायुमंडल विकसित किया जाएगा. उसमें इन बैक्टीरिया की मदद से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा. साथ ही फसलें भी उगाने का प्रयास किया जाएगा. (फोटोःगेटी)

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डॉ. कस्तूरी वेंकटेश्वरन ने कहा कि मिथाइलोबैक्टीरियम के तीनों जेनेटिक वैरिएंट्स बुरी से बुरी स्थिति और जलवायु में भी पौधे उगाने में सक्षम हैं. न सिर्फ पौधे उगाने में बल्कि बुरे माहौल में उन्हें बचाने में सक्षम हैं. इस समय हम दोनों वैज्ञानिक ये मांग कर रहे हैं कि स्पेस स्टेशन को थोड़ा और बड़ा किया जाए ताकि ऐसे प्रयोगों को बड़े पैमाने पर करके उनकी उपयोगिता की पुष्टि की जा सके. (फोटोःगेटी)

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डॉ. नितिन ने कहा कि स्पेस स्टेशन से बैक्टीरिया का सैंपल लेकर धरती पर आना. फिर उनकी जांच करके वापस स्पेस स्टेशन पर ले जाना, ये काफी महंगी प्रक्रिया है. इससे बेहतर है कि वहीं पर स्पेस स्टेशन को बड़ा करके प्रयोग किए जाएं. वहीं पर मॉलिक्यूलर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए. इससे भविष्य की फसलें और पौधे तैयार करने में आसानी होगी. (फोटोःगेटी)

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डॉ. नितिन और डॉ. कस्तूरी की यह खोज साइंस जर्नल फ्रंटियर्स इन माइक्रोबॉयोलॉजी में प्रकाशित हुई है. इस टीम में भारत से हैदराबाद यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट वीवी रामप्रसाद एडारा और भारतवंशी स्वाति बिजलानी भी हैं. स्वाति यूनिवर्सिटी ऑफ साउर्दन कैलिफोर्निया में साइंटिस्ट हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगर ये बैक्टीरिया किसी तरह से कुछ बीजों के साथ मंगल ग्रह पर भिजवाएं जाएं तो वहां पर कुछ दिन में ही प्रयोग करके इनकी उपयोगिता की असल जांच की जा सकती है. (फोटोःगेटी)

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