इंसानों और जानवरों की तरह टमाटर में भी 'नर्वस सिस्टम' होता है. जैसे ही पौधे में लगे एक टमाटर को कोई कीड़ा काटता है, तुरंत वह पौधे के बाकी हिस्से में इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजकर अलर्ट कर देता है. इस सिग्नल से पौधे के अन्य हिस्सों को हमले के प्रकार और तत्काल हुए नुकसान का पता चल जाता है. इससे टमाटर का पौधा अपनी सुरक्षा की व्यवस्था कर लेता है. (फोटोःगेटी)
एक टमाटर (Tomatoes) पर जैसे ही कीड़े या बीमारी का हमला होता है, उससे निकले इलेक्ट्रिकल सिग्नल पौधे के बाकी हिस्से को मैसेज कर देते हैं. तुरंत पौधे से अंदरूनी हिस्सों से हाइड्रोजन परॉक्साइड (Hydrogen Peroxide) रिलीज होता है ताकि चोट लगे हिस्से या संक्रमित टमाटर से माइक्रोबियल संक्रमण न फैले. यह खुलासा हाल ही में हुई एक स्टडी में किया गया है. (फोटोःगेटी)
इंसानों के शरीर में बेहद आधुनिक और जटिल नर्वस सिस्टम होता है. जिसमें न्यूरॉन्स (Nerurons) शरीर के अलग-अलग हिस्सों में इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजते हैं. पौधों में न्यूरॉन्स नहीं होते. लेकिन उनमें पतली-पतली ट्यूब्स होती हैं. इन्हें जायलम (Xylem) और फ्लोएम (Phloem) कहते हैं. जैसे ही कहीं कोई चोट या संक्रमण होता है, ये पतली ट्यूब्स तेजी से जड़ों, पत्तियों और अन्य फलों को संदेश भेज देती हैं. जो एक तरल पदार्थ के रूप में होता है. (फोटोःगेटी)
इन पतली ट्यूब्स में चार्ज्ड आयन (Charged Ions) का बहाव होता है, जो टमाटर के पौधे में अलग-अलग हिस्सों तक संदेश पहुंचाते हैं, जैसे हमारे शरीर में न्यूरॉन्स ये काम करते हैं. हालांकि पौधों में संदेशों का आवागमन कैसे होता है, इसकी पूरी जानकारी अभी तक वैज्ञानिकों के पास नहीं है. लेकिन टमाटर के पौधे पर अध्ययन करने के बाद इस बात की पुष्टि हो गई है कि इसके पास इंसानों जैसा 'नर्वस सिस्टम' होता है. (फोटोःगेटी)
इससे पहले कई स्टडीज हुई हैं, जिनमें इस बात का पता चला था कि जब पत्तियों को कोई नुकसान पहुंचता है तब वो अन्य पत्तियों को इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजती है. लेकिन टमाटर पर अध्ययन पहली बार किया गया है. यह स्टडी की है ब्राजील के फेडरल पेलोटास यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता गैब्रिएला नीमेयर रीसिग और उनके साथियों ने. इन लोगों का अध्ययन ये भी बताता है कि यह प्रक्रिया फलों के साथ भी होती है. (फोटोःगेटी)
गैब्रिएला कहती हैं कि हमने चेरी टमाटर के पौधों का अध्ययन किया है. वनस्पति विज्ञान की भाषा में टमाटर एक फल है. हमने इन टमाटरों को फैराडे केज में रखा. इससे बाहरी इलेक्ट्रिकल फील्ड का असर खत्म हो जाता है. इसके बाद हमने इसमें एक कैटरपिलर डाल दिया. ये हेलिकोवेर्पा आर्मेगेरा (Helicoverpa Armigera) प्रजाति के मोथ थे. इन्हें फल की सतह पर पन्नी में लपेटकर बांध दिया गया. (फोटोःगेटी)
पौधे के तनों को इलेक्ट्रोड्स से जोड़ा गया जो ये बता रहे थे कि पौधे में इलेक्ट्रिकल फ्लो है. जैसे ही कैटरपिलर ने टमाटर को खाना शुरू किया, तुरंत ही पौधे में इलेक्ट्रिकल फ्लो बढ़ गया. इलेक्ट्रिकल फ्लो का तीव्रता और बहाव पौधे के अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होता है. (फोटोःगेटी)
गैब्रिएला ने बताया कि पौधे में सड़न पैदा होती तो अलग इलेक्ट्रिक फ्लो होता है. फल को कोई कीड़ा काटता है तो अलग और तने या पत्तियों में कुछ होता है तो अलग इलेक्ट्रिकल सिग्नल निकलते हैं. ये हर सेकेंड बदलता रहता है. सिर्फ इतना ही नहीं, अलग-अलग कीड़ों के काटने पर अलग-अलग इलेक्ट्रिकल सिग्नल का फ्लो होता है. (फोटोःगेटी)
जैसे ही चेतावनी का इलेक्ट्रिकल सिग्नल पौधे में फ्लो होता है, तुरंत ही बाकी साफ-सुथरे पौधे और पत्तियां हाइड्रोजन परॉक्साइड रिलीज करने लगते हैं, ताकि बाकी पौधे में किसी तरह का नुकसान न हो. गैब्रिएला कहती हैं कि इस रिलीज की वजह से पौधे में माइक्रोबियल इंफेक्शन रुकता है. साथ ही पौधे की कोशिकाएं और ऊतक सुरक्षित बच जाते हैं. इसके अलावा अन्य पैथोजेंस को रोकने में आसानी होती है. (फोटोःगेटी)