धरती पर जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है ऑक्सीजन. इसके बगैर कोई भी जीव सांस नहीं ले सकता. पानी खत्म हो जाता. कहा जाता है कि धरती पर ऑक्सीजन बनने की प्रक्रिया 2400 करोड़ साल पहले शुरु हुई थी. लेकिन इतने दिनों तक ये टिकी कैसे रही? इसके पीछे क्या वजह है? हाल ही में हुई एक स्टडी में हैरतअंगेज दावा किया जा रहा है कि धरती के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मौजूदगी की वजह ज्वालामुखी हैं. उनसे होने वाले विस्फोट की वजह से धरती पर ऑक्सीजन लगातार टिका हुआ है. उनके फटने की वजह से ऑक्सीजन पूरे वायुमंडल में फैला हुआ है. (फोटोः गेटी)
ऑक्सीजन के पैदा होने और टिके रहने को लेकर कई थ्योरीज हैं. कई वैज्ञानिक प्रयोग भी हैं जो अलग-अलग सबूतों के जरिए ये बताने की कोशिश करते हैं कि ऑक्सीजन कैसे बनी और धरती पर आज भी मौजूद है. लेकिन हाल ही में धरती की धीमी गति को वजह बताते हुए एक रिपोर्ट छपी, जिसमें कहा गया कि वायुमंडल इसी धीमी गति की वजह से ऑक्सीजन टिका हुआ है. लेकिन एक दूसरी स्टडी आई जिसने इसके पीछे विचित्र कहानी बता दी. (फोटोः गेटी)
इस नई स्टडी में दावा किया गया है कि ज्वालामुखियों के विस्फोट की वजह से धरती के वायुमंडल में ऑक्सीजन रुका हुआ है. स्टडी में साफ तौर पर दावा किया गया है कि 2400 करोड़ साल पहले ज्वालामुखियों में हुए विस्फोट की वजह से ऑक्सीजन बना और अब तक बन रहा है. इस स्टडी में कहा गया है कि 2400 करोड़ साल पहले ऑक्सीजन बनने की बड़ी घटना से 5 से 10 करोड़ साल पहले भी ऑक्सीजन धरती पर था लेकिन बेहद कम समय के लिए. (फोटोः गेटी)
यह कम समय के लिए जो ऑक्सीजन बना था, उसी ने अपने लिए आगे का रास्ता बनाया. उसके बाद ही धरती पर धीरे-धीरे ऑक्सीजन की मात्रा बढ़नी शुरु हुई. इस नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया है कि ज्वालामुखी धरती पर ऑक्सीजन लाने की एक प्रमुख वजह थे. इनके विस्फोट की वजह से ही ऑक्सीजन अब तक धरती पर मौजूद है. इनके विस्फोट की वजह से करोड़ों-अरबों ऑक्सीजन पैदा करने वाले माइक्रोब्स बने. जिन्होंने ऑक्सीजन पैदा करके धरती के वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ाई. (फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों की टीम ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थि माउंट मैकरे शेल के निर्माण को समझने की कोशिश की. यहां पर 2500 करोड़ साल पुराने पत्थर हैं. ये पत्थर उस दौर के हैं, जब ग्रेट ऑक्सीजन इवेंट यानी धरती पर ऑक्सीजन बनने की प्रक्रिया शुरु हुई थी. इन पत्थरों में पारा (Mercury) मौजूद है. जो आमतौर पर ज्वालामुखियों के विस्फोट की वजह से बाहर निकलता है. (फोटोःरोजर बक//यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन)
ज्वालामुखियों के विस्फोट से निकलने वाले धुएं और लावे में पारा की मौजूदगी बहुत ज्यादा मात्रा में होती है. ये उस समय ऊपरी वायुमंडल में भी छोड़े गए. धरती पर गिरने से पहले पारा एक-दो साल तक वायुमंडल में घूमता रहता है. उस समय के कई भूगर्भीय डेटा और दस्तावेज हैं जो ये बताते हैं कि ग्रेट ऑक्सीजन इवेंट के समय ज्वालामुखियों ने ऑक्सीजन को वायुमंडल में बांधने का काम किया. (फोटोः गेटी)
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के साइंटिस्ट प्रोफेसर रोजर बक ने कहा कि माउंट मैकरे शेल के नीचे मिले पत्थरों के अंदर पारे की मौजूदगी है. ये अपने असली और आइसोटोप्स के रूप में प्रचुर मात्रा में मौजूद है. इसका मतलब ये है कि ग्रेट ऑक्सीजन इवेंट के समय ज्वालामुखियों में विस्फोट होता रहा था. हमारी रिसर्च से पता चलता है कि जब कम समय के लिए ऑक्सीजन बना था, तब भी पारे की मौजूदगी धरती पर थी. वह भी ज्वालामुखियों की वजह से. (फोटोःरोजर बक/यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन)
रोजर बक ने बताया कि ज्वालामुखी के विस्फोट के बाद उसमें से न्यूट्रिएंट से भरपूर लावा निकलता है. आमतौर पर हवाओं की वजह से ये पोषक तत्व यानी न्यूट्रिएंट बहकर इधर-उधर उड़ जाते हैं और समुद्री वस्तुओं पर पड़ने लगते हैं. जैसे ही इन पोषक तत्वों को सही मौसम मिलता है ये ऑक्सीजन पैदा करने वाले साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) को जन्म देने लगते हैं. आर्चियन वायुमंडल (Archaean Atmosphere) के समय करोड़ों बैसाल्टिक पत्थरों ने पिघलना शुरु किया. जिस वजह से नदियों और समुद्र में माइक्रोन्यूट्रिएंट फॉस्फोरस मिल गया. (फोटोः गेटी)
इस फॉस्फोरस को खाकर माइक्रोब्स तेजी से पनपने लगे. यानी साइनोबैक्टीरिया तेजी से फैलने लगे. इन्होंने ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ानी शुरु कर दी. इनकी जैविक गतिविधियों की वजह से पूरी धरती पर ऑक्सीजन की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ी. इसके बाद जितनी बार ज्वालामुखी फटते इन पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती. ज्यादा सूक्ष्मजीव विकसित होते. इनकी वजह से ऑक्सीजन का स्तर वायुमंडल में बढ़ता चला गया. (फोटोः गेटी)
2500 करोड़ साल पहले से लेकर अब तक धरती पर लगातार ज्वालामुखियों के विस्फोट होते आए हैं. ये बात सही है कि ज्वालामुखी फटते हैं तो उनसे काफी ज्यादा नुकसान होता है. शहरी आबादी राख के ढेर में दब जाती है. यातायात बाधित होता है लेकिन इसके साथ ही वो वायुमंडल के जरिए पूरी धरती पर पोषक तत्व फैलाते हैं, जो सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन पैदा करने की ताकत देते हैं. (फोटोः गेटी)