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साइंस न्यूज़

क्या है कोरोना का 'S' gene फैक्टर, कैसे Omicron वैरिएंट का लग रहा इससे पता?

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 5:19 PM IST
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कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) का खौफ धीरे-धीरे फैल रहा है. लेकिन उसके संक्रमण की गति काफी ज्यादा तेज है. दुनिया भर के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जब ओमिक्रॉन से पीड़ित व्यक्ति की जांच की जाए तो यह जानना जरूरी है कि क्या एस जीन (S Gene) ड्रॉप आउट हुआ है. यानी वायरस में S जीन मौजूद है या नहीं. क्योंकि इससे पता चलता है कि ये ओमिक्रॉन वैरिएंट हैं या कोरोना के पुराने किसी वैरिएंट में से एक. आइए समझते हैं कि ओमिक्रॉन की जांच पद्धत्ति में S Gene फैक्टर पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है. (फोटोः गेटी)

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भारत में कई महाराष्ट्र समेत राज्यों की सरकारों ने निर्देश दिया है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले लोगों की RTPCR जांच से लिए गए सैंपल में S Gene फैक्टर का इन्वेस्टिगेशन जरूर करें. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी दुनिया भर की प्रयोगशालाओं और जीनोम सिक्वेंसिंग करने वाली वैज्ञानिक संस्थाओं को S Gene फैक्टर की जांच करने का निर्देश दिया है. ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट कितनी तेजी से फैल रहा है? इससे ओमिक्रॉन के संक्रमण से संबंधित शुरुआती और पुख्ता जानकारी मिलने लगेगी. (फोटोः गेटी)

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S Gene पर क्या कहना है WHO का?

WHO ने कहा है कि फिलहाल ओमिक्रॉन (Omicron) की जांच के लिए जरूरी किट का विकास किया जा रहा है. तब तक जीनोम सिक्वेंसिंग का सहारा लेना पड़ेगा. इसकी जांच के लिए किट में RNaseP और बीटा एक्टिन की जरूरत होगी. जैसे ही S Gene टारगेट फेल्योर (SGTF) का पता चलेगा, यानी वायरस के वैरिएंट की बाहरी परत पर मौजूद S Gene की गैर-मौजूदगी की जानकारी होगी, तुरंत यह पता चल जाएगा कि यह ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट है. (फोटोः गेटी)

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कैसे होती है Omicron की जांच?

कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट की जांच के लिए भी पीसीआर टेस्ट (PCR Test) होगा. उसके बाद स्वैब के सैंपल को प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा जाएगा. यहां पर इस बात की पुष्टि होगी कि सैंपल देने वाले व्यक्ति को संक्रमण है या नहीं. अगर होता है तब सभी पॉजिटिव सैंपल में से कुछ को लेकर जीनोम सिक्वेंसिंग करने वाली लैब जांच करेंगी. अगर सैंपल में S Gene मिसिंग है यानी आपको ओमिक्रॉन का संक्रमण हो चुका है. नहीं तो आपको पुराने कोरोना वायरस वैरिएंट में से किसी एक दबोच रखा है. (फोटोः PTI)

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कैसे पता चलता है कि कौन से वैरिएंट का संक्रमण फैला है?

ओमिक्रॉन (Omicron) वैरिएंट में 30 से ज्यादा म्यूटेशन हुए हैं. यानी यह वुहान से निकले पहले कोरोना वायरस अल्फा (Alpha) से बहुत अलग है. इसमें ऐसे बदलाव हुए हैं, जो आजतक देखे ही नहीं गए हैं. ज्यादातर कोरोना वायरस वैरिएंट्स ने म्यूटेशन के बाद अपनी बाहरी कंटीली प्रोटीन परत यानी स्पाइक प्रोटीन में बदलाव किया था. इसी स्पाइक प्रोटीन को कमजोर करने के लिए दुनियाभर की दवा कंपनियों ने वैक्सीन बनाई. जो आपने और हमने लगवाई. लेकिन यही चिंता की बात है कि अगर कोई वैरिएंट ऊपरी कंटीली परत को ही कमजोर, ताकतवर या खत्म कर दे तो आपकी वैक्सीन वायरस के स्पाइक पर कहां हमला करेगी. यानी जब स्पाइक प्रोटीन या उसके कांटे होंगे ही नहीं तो असर कहां होगा. (फोटोः गेटी)

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ओमिक्रॉन (Omicron) में क्या कंटीली परत पर होता है S Gene?

अगर आप कोरोना वायरस की इस तस्वीर को ध्यान से देखेंगे तो आपको यहां पर उसके हर हिस्से की जानकारी मिलेगी. तस्वीर में बाईं तरफ सबसे ऊपर लिखा है स्पाइक (S) यानी यही वो कंटीला प्रोटीन है जो हमारे शरीर के ACE2 प्रोटीन (दाईं तरफ) के साथ मिलकर कोशिका के अंदर प्रवेश करता है. इसी को वैज्ञानिक S Gene फैक्टर कह रहे हैं. सबसे ज्यादा म्यूटेशन कोरोना वायरस की इसी परत पर हुई है. वैज्ञानिक जीनोम सिक्वेंसिंग के दौरान सबसे ज्यादा जिन तीन जीन का अध्ययन करते हैं वो हैं- स्पाइक (S), न्यूक्लियोकैप्सिड (N) और एनवेलप (E). क्योंकि ज्यादातर वैरिएंट्स ने इसी में म्यूटेशन किया है. इन जीन्स में होने वाले बदलावों के अंतर से ही वैरिएंट का पता चलता है. (फोटोः InvivoGen)

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क्या S Gene का नहीं होना ओमिक्रॉन (Omicron) की पहचान है?

वैज्ञानिकों का दावा है कि ये जरूरी नहीं कि सभी ओमिक्रॉन (Omicron) वायरसों से S Gene लापता ही हो. इसके लिए पूरे जीनोम सिक्वेंसिग की जरूरत होगी. जो अभी तक किसी भी देश में नहीं हो पाई है. ओमिक्रॉन (Omicron) और डेल्टा वैरिएंट (Delta) में फिलहाल वैज्ञानिकों को जो सबसे बड़ा अंतर समझ में आ रहा है वो ये है कि ओमिक्रॉन में S Gene नहीं है. जबकि, डेल्टा वैरिएंट में यह मौजूद था. आज भी दुनियाभर में डेल्टा वैरिएंट के मामले सबसे ज्यादा है. (फोटोः गेटी)

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RTPCR में कैसे पता चलता है कि कौन सा वैरिएंट है?

RTPCR जांच के दौरान वैज्ञानिक प्रयोगशाला में सैंपल के तीन जीन्स यानी S, N और E पर फोकस करते हैं. लेकिन ओमिक्रॉन (Omicron) के म्यूटेशन की वजह से रूटीन RTPCR किट में S Gene का पता नहीं चल पा रहा है. इसलिए वैज्ञानिकों को आशंका है कि ये ओमिक्रॉन है, क्योंकि इसके पहले सभी 12 कोरोना वैरिएंट्स में इस जीन का पता चल जाता था. अब जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए ही इसकी पुष्टि होगी और उसके बाद RTPCR टेस्ट किट में थोड़े बहुत बदलाव किए जा सकते हैं. (फोटोः गेटी)
 

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जीनोम सिक्वेंसिंग से क्या पता चलेगा? 

जब जीनोम सिक्वेंसिंग होती है तब वैज्ञानिक यह पता करने की कोशिश करते हैं कि सैंपल में मिले कोरोना वायरस का जेनेटिक मैटेरियल यानी DNA या RNA का स्ट्रक्चर कैसा है. फिर इसके अंदरूनी हिस्सों की जांच की जाती है. यह पता किया जाता है कि इस नए वैरिएंट ने कोरोना वायरस के आधारभूत संरचना में म्यूटेशन के जरिए कहां-कहां बदलाव किया है. उसने स्पाइक को छेड़ा है या न्यूक्लियोकैप्सिड को या फिर एनवेलप को बिगाड़ा है. ये तीन बेसिक हिस्से हैं जहां पर कोरोना वायरस के वैरिएंट सबसे ज्यादा म्यूटेशन यानी बदलाव करते हैं. (फोटोः गेटी)

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