एक तो कोरोना वायरस के लक्षण जटिल. वैरिएंट के नाम कठिन उसपर बीमारी का दर्द अलग. अलग-अलग लोगों को अलग-अलग कोरोना वैरिएंट ने जकड़ रखा है. इनके नाम की जगह अंग्रेजी के अक्षर, संख्याएं और दशमलव लगाकर लोगों को और कन्फ्यूज किया जाता है. आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर में फैले कोविड-19 वैरिएंट्स के लिए लेबल निकाला है. साधारण भाषा में कहे तो इन वैरिएंट्स का नामकरण किया गया है. इनमें वो वैरिएंट भी शामिल है, जिसे पिछले साल अक्टूबर में भारत में दर्ज किया गया था. अब इसके नाम को लेकर देश और दुनिया में कोई विवाद नहीं होगा. आइए जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन्हें क्या और कैसे नाम दिया? (फोटोःगेटी)
पहले यह जान लें कि कोरोना वायरस का वैरिएंट अलग हो सकता है लेकिन उसका असली नाम SARS-CoV-2 है. इसकी वजह से आपको जो संक्रमण होता है उसे Covid-19 कहते हैं. लेकिन ये वायरस लगातार खुद को बदल रहा है. म्यूटेट हो रहा है. डबल और ट्रिपल म्यूटेट हो रहा है. अपनी बाहरी और अंदरूनी परतों को बदल रहा है. इसके बदलते ही बदल जाती है दवा, इलाज का तरीका और जांच की प्रणाली भी. भले ही ये बदलाव मामूली हों लेकिन बदलाव तो हैं. फिर कोरोना वायरस के वैरिएंट के नाम को लेकर भी बदलाव होना जरूरी थी. इसलिए WHO ने यह कदम उठाया. (फोटोःगेटी)
WHO अपने पार्टनर्स, एक्सपर्ट नेटवर्क, नेशनल अथॉरिटीज, वैज्ञानिक संस्थान और शोधकर्ताओं के साथ मिलकर SARS-CoV-2 वायरस और उसके सभी वैरिएंट्स पर जनवरी 2020 से नजर रखे हुए है. साल 2020 के अंत में कोरोना वायरस के नए-नए वैरिएंट्स यानी बदले हुए रूप और म्यूटेशन वाले स्ट्रेन आने लगे. इससे पूरी दुनिया को खतरा था. तब WHO ने इन कोरोना वैरिएंट्स को दो श्रेणियों में बांटा. पहला- वैरिएंट ऑफ इंट्रेस्ट (Variants of Interest - VOIs) और दूसरा - वैरिएंट ऑफ कंसर्न (VOCs). ताकि दुनिया भर में कोरोना वायरस के वैरिएंट के अनुसार इलाज और स्वास्थ्य संबंधी प्रबंधन की व्यवस्था की जा सके. (फोटोःगेटी)
WHO के एक्सपर्ट्स की टीम लगातार दुनियाभर में कोरोना वायरस के नए-नए वैरिएंट्स पर नजर रख रही थी. कोरोना वायरस के म्यूटेशन पर अलग-अलग देश तो WHO को सूचित कर ही रहे थे, साथ ही इस अंतरराष्ट्रीय संगठन के एक्सपर्ट भी देशों को नए वैरिएंट के हिसाब से ट्रीटमेंट से लेकर कोविड मैनेजमेंट तक के गाइलाइंस बता रहे थे. हालांकि कोरोना वायरस वैरिएंट को VOIs में रखना है या VOCs में, यह फैसला वैरिएंट की संक्रामकता के अनुसार देश की सरकार भी कर सकती है. अब WHO ने जो कोरोना वायरस वैरिएंट को नाम दिए हैं, वो ग्रीक (Greek) अक्षरों से दिए हैं. जैसे- अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा आदि. (फोटोःगेटी)
WHO ने 31 मई 2021 को इन वैरिएंट्स के नाम अपनी वेबसाइट पर डाले हैं. ताकि इनकी भयावहता के अनुरूप इन्हें बुलाया जा सके. सिंतबर 2020 में यूनाइटेड किंगडम में मिले B.1.1.7 वैरिएंट को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अल्फा (Alpha) नाम दिया है. मई 2020 में दक्षिण अफ्रीका में मिले वैरिएंट B.1.351 को बीटा (Beta) का लेबल मिला है. नवंबर 2020 में ब्राजील में मिले कोविड-19 वैरिएंट P.1 को गामा (Gamma) बुलाया जाएगा. जबकि, भारत में अक्टूबर 2020 में मिले वैरिएंट B.1.617.2 को डेल्टा (Delta) नाम दिया गया है. WHO ने इन सभी कोरोना वैरिएंट्स को VOCs यानी वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न की श्रेणी में रखा है. (फोटोःगेटी)
VOCs कोरोना वायरस के वो स्ट्रेन हैं जिनकी संक्रामकता और खतरनाक म्यूटेशन की वजह से बहुत सारे लोग बीमार हुए हैं. क्लीनिकल डिजीस प्रेजेंटेशन में बदलाव और वायरूलेंस में लगातार बढ़ोतरी भी इनकी पहचान है. ये ऐसे वायरस हैं जिनसे जांच, वैक्सीन, इलाज के तरीकों, सामाजिक और सार्वजिनक स्वास्थ्य प्रणाली पर काफी असर होता है. यानी इनकी वजह से इन सभी कोरोना रोधी तैयारियों में समस्या आती है. (फोटोःगेटी)
अब बात आती है वैरिएंट्स ऑफ इंट्रेस्ट यानी VOIs की. ये ऐसे कोरोना वायरस वैरिएंट्स हैं जो सामुदायिक स्तर पर या बहुस्तरीय संक्रमण फैलाते हैं. लेकिन ये वैरिएंट्स गुच्छों या समूहों में लोगों को संक्रमित करते हैं. ये एकसाथ कई देशों में मिल सकते हैं. मार्च 2020 में अमेरिका में मिले B.1.427/B.1.429 वैरिएंट को एप्सीलोन (Epsilon) नाम दिया गया है. अप्रैल 2020 में ब्राजील में मिले P.1 वैरिएंट को जेटा (Zeta) बुलाया जाएगा. दिसंबर 2020 में कई देशों में मिले कोरोना वैरिएंट B.1.525 को एटा (Eta) पुकारा जाएगा. फिलिपींस में जनवरी 2021 में मिले P.3 कोरोना वैरिएंट को थेटा (Theta) का नाम दिया गया है. नवंबर 2020 में अमेरिका में मिले कोरोना वैरिएंट B.1.526 को आयोटा (Iota) कहा जाएगा. जबकि, अक्टूबर 2020 में भारत में मिले वैरिएंट B.1.617.1 को कप्पा (Kappa) पुकारा जाएगा. (फोटोःगेटी)