देश के पश्चिमी तटीय इलाकों में चक्रवाती तूफान ‘बिपरजॉय’ का खतरा मंडरा रहा है. मौसम विभाग के अनुसार अगले 48 घंटों में यह और भी भयानक रूप ले सकता है. इस तूफान का असर गोवा, मुंबई, पोरबंदर और पाकिस्तान के कराची में देखने को मिल सकता है. इस दौरान यहां तेज हवाएं व बारिश होने की उम्मीद है. (फोटोः गेटी/एएफपी/पीटीआई)
मौसम विभाग की माने तो यह इस साल अरब सागर में आया पहला चक्रवात है. इसकी वजह से पश्चिमी तट पर मौजूद राज्यों के तटीय इलाकों में हल्की बारिश और गरज के साथ छींटे पड़ने की उम्मीद है. लेकिन बिपरजॉय अगले 48 घंटे में खतरनाक रूप ले सकता है.
बिपरजॉय की वजह से 10 से 12 तारीख के बीच गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात में 83 से 120 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से हवाएं चल सकती हैं. चक्रवात दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र सहित तटीय क्षेत्रों में भी हल्की बारिश और गरज के साथ छींटे ला सकता है. हालांकि ये भी हो सकता है कि तटों तक पहुंचने पर तूफान की ताकत कम हो सकती है.
अरब सागर आमतौर पर बंगाल की खाड़ी की तुलना में ज्यादा शांत रहता है. इसलिए ज्यादातर चक्रवाती तूफान बंगाल की खाड़ी में आते हैं. न कि अरब सागर में लेकिन पिछले कुछ सालों से अरब सागर में साइक्लोन के आने का दर और उनकी तीव्रता व भयावहता बढ़ती जा रही है. इसकी वजह क्या है?
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरियोलॉजी के पर्यावरण वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया कि बंगाल की खाड़ी की तरह अरब सागर गर्म नहीं है. जब बंगाल की खाड़ी में हर साल 2 या 3 चक्रवाती तूफान आते थे, तब अरब सागर में एक भी चक्रवात पैदा नहीं होता था. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. अरब सागर भी गरम हो रहा है. जिसकी वजह से यहां पर ज्यादा तीव्रता के साथ चक्रवात आ रहे हैं.
पिछले 40 सालों में हर मॉनसून से पहले अरब सागर के तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है. यह वैश्विक गर्मी यानी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रहा है. इसके अलावा हमने यह भी नोटिस किया है कि अरब सागर में चक्रवातों के आने की फ्रिक्वेंसी और तीव्रता लगातार बढ़ रही है.
इससे पहले अरब सागर में सबसे भयावह चक्रवाती तूफान ताउते था. जो साल 2021 में आया था. अरब सागर में चक्रवातों की शुरुआत तो कमजोर स्तर से शुरू होती है लेकिन ये अचानक से बढ़कर अत्यंत गंभीर स्तर पर पहुंच जाती है. आइए जानते हैं कैसे?
अरब सागर में उठने वाले कमजोर तूफान अचानक से अपनी गति बढ़ाते हैं. इसे रैपिड इंटेसीफिकेशन (Rapid Intensification) कहते हैं. यानी पहले तूफान की गति करीब कम होती है, जो 24 घंटे में बढ़कर ढाई से तीन गुना बढ़ जाती है.
चक्रवात बिपरजॉय के आने से पहले अरब सागर यानी उत्तरी हिंद महासागर का तापमान औसत से 1.5 से 2.0 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो गया था. एक तो जमीनी सतह गर्म ऊपर से समुद्र का तापमान बढ़ने की वजह से साइक्लोन की ताकत और बढ़ गई.
अगर आप IPCC की पांचवीं एसेसमेंट रिपोर्ट देखेंगे तो उसमें भी लिखा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों से निकलने वाली अतिरिक्त गर्मी का 93% हिस्सा समंदर सोखते हैं. ऐसा 1970 से लगातार हो रहा है. इसकी वजह से सागरों और महासागरों का तापमान साल-दर-साल बढ़ रहा है. ऐसे माहौल की वजह से बिपरजॉय जैसे उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफानों की आमद बढ़ गई है.
बिपरजॉय जैसे तूफान हमेशा सागरों के गर्म हिस्से के ऊपर ही बनते हैं, जहां पर औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है. ये गर्मी से ऊर्जा लेते हैं और सागरों से नमी खींचते हैं. अरब सागर और हिंद महासागर का पश्चिमी हिस्सा पिछली एक सदी से लगातार गर्म हो रहा है. गर्म होने का यह दर किसी भी अन्य उष्णकटिबंधीय इलाके से ज्यादा है.
वैज्ञानिकों ने बताया कि भारत में मौसम संबंधी आपदाओं की जानकारी पहले ही सटीकता के साथ मिल जाती है.
जिससे राहत एवं आपदा बचाव टीम लोगों को सही समय पर बचा लेती हैं. भारत में मैनग्रूव्स को बढ़ाना चाहिए. क्योंकि ये तूफानों के दौरान आने वाली बाढ़ और ऊंची लहरों से बचाते हैं.